Monday, June 27, 2022
Monday, June 20, 2022
MATA Kheerbhawani Kashmir
Around
the temple is an area covered with smooth and beautiful stones. In it
are large, old-growth chinar trees beneath which the pilgrims sit or
sleep on mats of grass. While most of the colours do not have any
particular significance, the colour of the spring water changes
occasionally. When black or darkish, its believed to be an indication of
inauspicious times for Kashmir. In 1886, Walter Lawrence, the-then
British settlement commissioner for land, during his visit to the
spring, reported the water of the spring to have a violet tinge.
Kashmiris claim to have observed a darkish or murky tinge to the water
just before the assassination of Indira Gandhi and the 1989 insurgency
in the valley.....Pandit Prasad Joo Parimoo, a Kashmiri pandit, is
believed to have been a grahasta (house-holder) saint of tall order and
as such his peers would call him Jada Bharata, who was a legendary saint
of Puranas times. He used to live in Sekidafer area of Srinagar in
Kashmir. He was married but didn't have any children so he is said to
have finally adopted a son named Madhav Joo. He would regularly meditate
at this holy spring and during one such occasion, while being in a
meditative trance (samadhi), he is said to have had a vision of the
deity of Mata Kheer Bhawani, who reprimanded him for his hasty decision
of going for an adoption when she was herself desirous of taking birth
in his family as his daughter. Nonetheless, she is said to have blessed
him with the boon and eventually Pandit Prasad Joo Parimoo's wife did
give birth to a daughter, who was named Haar Maal. Approximate year of
her birth would be 1870-1880 (see notes). In the course of time, Smt
Haar Maal got married to Pandit Narayan Joo Bhan and gave birth to a son
in 1898 who later came to be called Bhagwan Gopinath during his
lifetime..
क्यूँ हमारे धार्मिक ग्रंथों में पूजन विधि में कहीं भी ‘अगरबत्ती’ का उल्लेख नहीं मिलता?
हम अक्सर शुभ अवसर जैसे हवन, पूजा-पाठ और अशुभ दाह संस्कार आदि कामों के लिए विभिन्न प्रकार की लकड़ियों को जलाने में प्रयोग करते है, लेकिन क्या आपने कभी किसी काम के दौरान बांस (bamboo) की लकड़ी जलती देखी है? नहीं ना!
भारतीय संस्कृति,परंपरा और धार्मिक महत्व के अनुसार, हमारे शास्त्रों में बांस की लकड़ी को जलाना वर्जित माना गया है।यहाँ तक की हम ‘अर्थी’ के लिए बांस की लकड़ी का उपयोग तो करते है, लेकिन उसे चिता में जलाते नहीं शास्त्र के अनुसार बांस जलाने से पितृ दोष लगता है वहीं जन्म के समय जो नाल माता और शिशु को जोड़ के रखती है, उसे भी बांस के वृक्षो के बीच मे गाड़ते है ताकि वंश सदैव बढ़ता रहे
क्या इसका कोई वैज्ञानिक कारण है?
बांस में लेड (lead) व हेवी मेटल (heavy metals) प्रचुर मात्रा में पाई जाती है लेड जलने पर लेड ऑक्साइड (lead oxide) बनाता है जो कि एक खतरनाक नीरो टॉक्सिक (neurotoxic) है और brain damage का एक कारण भी होता है
heavy metal भी जलने पर oxides बनाते हैं
लेकिन जिस बांस की लकड़ी को जलाना शास्त्रों में वर्जित है।यहाँ तक कि चिता में भी नही जला सकते,उस बांस की लकड़ी को हमलोग रोज़ अगरबत्ती में जलाते हैं
अगरबत्ती के जलने से उतपन्न हुई सुगन्ध के प्रसार के लिए Phthalates नाम के विशिष्ट chemical का प्रयोग किया जाता है। यह एक phthalate acid ester (फेथलिक एसिड ईस्टर) होता है जो कि श्वांस के साथ शरीर में प्रवेश करता है, इस प्रकार अगरबत्ती की तथाकथित सुगन्ध neurotoxic एवम hepatotoxic को भी स्वांस के साथ शरीर मे पहुंचाती है। इसकी लेशमात्र उपस्थिति कैंसर अथवा मष्तिष्क आघात ( brain damage) का कारण बन सकती है। hepatotoxic की थोड़ी सी मात्रा भी Liver को damage करने के लिए पर्याप्त है। शास्त्रों में पूजन विधान में कही भी अगरबत्ती का उल्लेख नही मिलता, हर स्थान पर धूप, दीप, नैवेद्य का ही वर्णन है।
अगरबत्ती का प्रयोग भारतवर्ष में इस्लाम के आगमन के साथ ही शुरू हुआ है।
Mu-स्लिम लोग अगरबत्ती मज़ारों में जलाते है, हम हमेशा अंधानुकरण ही करते है, जब कि हमारे धर्म की हर एक बातें वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अनुसार मानवमात्र के कल्याण के लिए ही बनी है। कृपा करके उनका ही अनुसरण करें
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