Sunday, June 22, 2025
िव शब्द का अर्थ
शिव शब्द का अर्थ "शुभ" "स्वाभिमानिक" "अनुग्रहशील" "सौम्य" "दयालु" "उदार" "मैत्रीपूर्ण" होता है।
लोक व्युत्पत्ति में "शिव" की जड़ "शि" है।
जिसका अर्थ है जिन में सभी चीजें व्यापक है।
और "व" इसका अर्थ है "अनुग्रह के अवतार"।
ऋगवेद में "शिव" शब्द एक विशेषण के रूप में प्रयोग किया जाता है।
रुद्र सहित कई ऋग्वेदिक देवताओं के लिए एक विशेषण के रूप में।
शिव शब्द ने "मुक्ति, अंतिम मुक्ति" और "शुभ व्यक्ति" का भी अर्थ दिया है।
इस विशेषण का प्रयोग विशेष रूप से साहित्य के वैदिक परतों में कई देवताओं को संबोधित करने हेतु किया गया है।
यह शब्द वैदिक रुद्र शिव से महाकाव्यों और पुराणों में नाम शिव के रूप में विकसित हुआ।
एक शुभ देवता के रूप में जो "निर्माता प्रजनक और संहारक" होता है।
महाशक्तिशाली महामृत्युंजय मन्त्र।
शब्द की शक्ति, शब्द वही है और उनकी शक्ति निम्न प्रकार से है:
शब्द शक्ति
"त्र" त्र्यम्बक त्रि-शक्ति तथा त्रिनेत्र
"य" यम तथा यज्ञ
"म" मंगल
"ब" बालार्क तेज
"कं" काली का कल्याणकारी बीज
"य" यम तथा यज्ञ
"जा" जालंधरेश
"म" महाशक्ति
"हे" हाकिनी
"सु" सुगन्धि तथा सुर
"गं" गणपति का बीज
"ध" धूमावती का बीज
"म" महेश
"पु" पुण्डरीकाक्ष
"ष्टि" देह में स्थित षटकोण
"व" वाकिनी
"र्ध" धर्म
"नं" नंदी
"उ" उमा
"र्वा" शिव की बाईं शक्ति
"रु" रूप तथा आँसू
"क" कल्याणी
"व" वरुण
"बं" बंदी देवी
"ध" धनदा देवी
"मृ" मृत्युंजय
"त्यो" नित्येश
"क्षी" क्षेमंकरी
"य" यम तथा यज्ञ
"मा" माँग तथा मन्त्रेश
"मृ" मृत्युंजय
"तात" चरणों में स्पर्श
यह पूर्ण विवरण "देवो भूत्वा देवं यजेत" के अनुसार पूर्णतः सत्य प्रमाणित हुआ है।
रजोगुण-तमोगुण
जो बारंबार ध्यान-अभ्यास करता है, उसका मन विषयों से छूटता है। रजोगुण-तमोगुण से छूटकर सतोगुण की ओर वृत्ति होती है। उससे फिर पाप नहीं होता। घमंड और तिरस्कार से किया हुआ पुण्य कर्म तामसी है, मायिक फलों को प्राप्त करने के लिए किया हुआ पुण्य कर्म राजस है। इन दोनों तरहों से बचते हुए किया हुआ पुण्य-कर्म सात्विक है। जो ध्यान-अभ्यास की ऊर्ध्वगति में अपना बंधक प्रभाव कुछ नहीं रख सकता है, समझना चाहिए कि ध्यान में एकओरता होती है। एकओरता में सिमटाव होता है, सिमटाव में ऊर्ध्वगति होती है। मन के सिमटाव के कारण मन की भी ऊर्ध्वगति होती है। मन केवल मन नहीं है, मन के साथ चेतन भी है। मन के साथ चेतन की भी ऊर्ध्वगति होती है। स्थूल से ऊंचे दर्जे में- सूक्ष्मता में प्रवेश होता है। स्थूल में सिमटाव होने से सूक्ष्म में गति होती है, इसी को पिंड से ब्रह्मांड में जाना कहते हैं। इससे जहां तक कर्मफल पाना है यानी प्रारब्ध का भोग है- उस मंडल को पार किया जाता है......... संत सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंसजी महाराज।शिव शब्द का अर्थ "शुभ" "स्वाभिमानिक" "अनुग्रहशील" "सौम्य" "दयालु" "उदार" "मैत्रीपूर्ण" होता है।
लोक व्युत्पत्ति में "शिव" की जड़ "शि" है।
जिसका अर्थ है जिन में सभी चीजें व्यापक है।
और "व" इसका अर्थ है "अनुग्रह के अवतार"।
ऋगवेद में "शिव" शब्द एक विशेषण के रूप में प्रयोग किया जाता है।
रुद्र सहित कई ऋग्वेदिक देवताओं के लिए एक विशेषण के रूप में।
शिव शब्द ने "मुक्ति, अंतिम मुक्ति" और "शुभ व्यक्ति" का भी अर्थ दिया है।
इस विशेषण का प्रयोग विशेष रूप से साहित्य के वैदिक परतों में कई देवताओं को संबोधित करने हेतु किया गया है।
यह शब्द वैदिक रुद्र शिव से महाकाव्यों और पुराणों में नाम शिव के रूप में विकसित हुआ।
एक शुभ देवता के रूप में जो "निर्माता प्रजनक और संहारक" होता है।
महाशक्तिशाली महामृत्युंजय मन्त्र।
शब्द की शक्ति, शब्द वही है और उनकी शक्ति निम्न प्रकार से है:
शब्द शक्ति
"त्र" त्र्यम्बक त्रि-शक्ति तथा त्रिनेत्र
"य" यम तथा यज्ञ
"म" मंगल
"ब" बालार्क तेज
"कं" काली का कल्याणकारी बीज
"य" यम तथा यज्ञ
"जा" जालंधरेश
"म" महाशक्ति
"हे" हाकिनी
"सु" सुगन्धि तथा सुर
"गं" गणपति का बीज
"ध" धूमावती का बीज
"म" महेश
"पु" पुण्डरीकाक्ष
"ष्टि" देह में स्थित षटकोण
"व" वाकिनी
"र्ध" धर्म
"नं" नंदी
"उ" उमा
"र्वा" शिव की बाईं शक्ति
"रु" रूप तथा आँसू
"क" कल्याणी
"व" वरुण
"बं" बंदी देवी
"ध" धनदा देवी
"मृ" मृत्युंजय
"त्यो" नित्येश
"क्षी" क्षेमंकरी
"य" यम तथा यज्ञ
"मा" माँग तथा मन्त्रेश
"मृ" मृत्युंजय
"तात" चरणों में स्पर्श
यह पूर्ण विवरण "देवो भूत्वा देवं यजेत" के अनुसार पूर्णतः सत्य प्रमाणित हुआ है।
*बाबा काशी विश्वनाथ मंदिर से जुड़े 11 रहस्य*
1. काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग दो भागों में है। दाहिने भाग में शक्ति के रूप में मां भगवती विराजमान हैं। दूसरी ओर भगवान शिव वाम रूप (सुंदर) रूप में विराजमान हैं। इसीलिए काशी को मुक्ति क्षेत्र कहा जाता है।
2. देवी भगवती के दाहिनी ओर विराजमान होने से मुक्ति का मार्ग केवल काशी में ही खुलता है। यहां मनुष्य को मुक्ति मिलती है और दोबारा गर्भधारण नहीं करना होता है। भगवान शिव खुद यहां तारक मंत्र देकर लोगों को तारते हैं। अकाल मृत्यु से मरा मनुष्य बिना शिव अराधना के मुक्ति नहीं पा सकता।
3. श्रृंगार के समय सारी मूर्तियां पश्चिम मुखी होती हैं। इस ज्योतिर्लिंग में शिव और शक्ति दोनों साथ ही विराजते हैं, जो अद्भुत है। ऐसा दुनिया में कहीं और देखने को नहीं मिलता है।
4. विश्वनाथ दरबार में गर्भ गृह का शिखर है। इसमें ऊपर की ओर गुंबद श्री यंत्र से मंडित है। तांत्रिक सिद्धि के लिए ये उपयुक्त स्थान है। इसे श्री यंत्र-तंत्र साधना के लिए प्रमुख माना जाता है।
5. बाबा विश्वनाथ के दरबार में तंत्र की दृष्टि से चार प्रमुख द्वार इस प्रकार हैं :-
1. शांति द्वार. 2. कला द्वार 3. प्रतिष्ठा द्वार 4. निवृत्ति द्वार
इन चारों द्वारों का तंत्र में अलग ही स्थान है। पूरी दुनिया में ऐसा कोई जगह नहीं है जहां शिवशक्ति एक साथ विराजमान हों और तंत्र द्वार भी हो।
6. बाबा का ज्योतिर्लिंग गर्भगृह में ईशान कोण में मौजूद है। इस कोण का मतलब होता है, संपूर्ण विद्या और हर कला से परिपूर्ण दरबार। तंत्र की 10 महा विद्याओं का अद्भुत दरबार, जहां भगवान शंकर का नाम ही ईशान है।
7. मंदिर का मुख्य द्वार दक्षिण मुख पर है और बाबा विश्वनाथ का मुख अघोर की ओर है। इससे मंदिर का मुख्य द्वार दक्षिण से उत्तर की ओर प्रवेश करता है। इसीलिए सबसे पहले बाबा के अघोर रूप का दर्शन होता है। यहां से प्रवेश करते ही पूर्व कृत पाप-ताप विनष्ट हो जाते हैं।
8. भौगोलिक दृष्टि से बाबा को त्रिकंटक विराजते यानि त्रिशूल पर विराजमान माना जाता है। मैदागिन क्षेत्र जहां कभी मंदाकिनी नदी और गौदोलिया क्षेत्र जहां गोदावरी नदी बहती थी। इन दोनों के बीच में ज्ञानवापी में बाबा स्वयं विराजते हैं। मैदागिन-गौदौलिया के बीच में ज्ञानवापी से नीचे है, जो त्रिशूल की तरह ग्राफ पर बनता है। इसीलिए कहा जाता है कि काशी में कभी प्रलय नहीं आ सकता।
9. बाबा विश्वनाथ काशी में गुरु और राजा के रूप में विराजमान है। वह दिनभर गुरु रूप में काशी में भ्रमण करते हैं। रात्रि नौ बजे जब बाबा का श्रृंगार आरती किया जाता है तो वह राज वेश में होते हैं। इसीलिए शिव को राजराजेश्वर भी कहते हैं।
10. बाबा विश्वनाथ और मां भगवती काशी में प्रतिज्ञाबद्ध हैं। मां भगवती अन्नपूर्णा के रूप में हर काशी में रहने वालों को पेट भरती हैं। वहीं, बाबा मृत्यु के पश्चात तारक मंत्र देकर मुक्ति प्रदान करते हैं। बाबा को इसीलिए ताड़केश्वर भी कहते हैं।
11. बाबा विश्वनाथ के अघोर दर्शन मात्र से ही जन्म जन्मांतर के पाप धुल जाते हैं। शिवरात्रि में बाबा विश्वनाथ औघड़ रूप में भी विचरण करते हैं। उनके बारात में भूत, प्रेत, जानवर, देवता, पशु और पक्षी सभी शामिल होते हैं।
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