Tuesday, September 24, 2024

श्री रूपा भवानी! श्री मातृदेवी अलखेश्वरी!

Inline imageInline image courtesy: Google photo श्री रूपा भवानी! श्री मातृदेवी अलखेश्वरी! निवेदक--- चमन लाल रैना है वो स्वयं शारिका देवी चेतन में अवचेतन में भी स्थायी भाव में अवस्थित एक शक्ति स्वरूपिणी योगिनी शारिका स्वयमेव प्राग्वलित श्रेयस्करी आत्मा में करती थी जो निवास थी ऐसी भवानी क्षेमंकरी साक्षात्कार में श्लोकदेवी रूपा भवानी हमारी क्षणिक दृष्टि में भी समा गई। अमृत कुण्ड से उपजी थी वो योगिनी त्रिक रहस्य उपदेश वाग्वादिनी ! इंगित किरण, सुवर्ण जिसका प्रकरण उनका जन्म एक प्रतीक था अभ्योदय विवरण और एक संकेत अब भी चेतन रहस्य उपदेश का अनुसरण शक्ति साधना में तल्लीन शब्द , दिव्या अवलोकन बीजाक्षर शक्ति संपन्न है निमित्त , श्रीचक्र मेरु यंत्र उपासना सेआत्मसात प्रेरित कूटस्थ भाव में देती है नव चेतना मानवीय व्यक्तित्व है जीवन की अवधारणा थी एक योगिनी,शक्ति तत्त्व की प्रेरणा 'मातृ हस्तेन भोजनं' की भांति देती दुलार निश्चित मार्गों पर एक बनी थी शिवतत्व के सर्वज्ञ स्वरूप को अभिन्न समझती 'ह्रीं' बीज से श्लोक प्रस्फुटित हुआ जो अदृश्य सिद्धियों का नेतृत्व करता चन्द्र कला के संबोधन से सँवारता साहिबा सप्तमी की पुण्यतिथि पर झूमता दिव्य ज्योति में स्वाहाकार १४६ श्लोकों में रमी वाणी में उपहार देता भक्तो को ॐ शब्द सद्विचार ।।

Shyam Lal Bhat.

Shri Shyam Lal Bhat..(1900 to 1983) A philosopher, well read , polished gentleman and a Hakim.(Habba Kadal) He was among the first few graduates of Jammu and Kashmir. He qualified as Tabib-i-Hazik from Lahore in the Unani Medicines. He would often hum the great revolutionary poet AHSAN-BIN-i-DANISH. His another favourite poet was Rawaish Siddiqui. Out of persian poets he respected HAFIZ. He was blessed with "barkat-i-gaab ti das-ti-shafa" by Great Mystic Khwaja Lassa Sahib. God bestowed Hakim Saheb with SHAFA , the healing touch and his patients had a great faith in him and would get cured. He practiced Unani Medicine for more than fifty years. Hakim Saheb left for heavenly abode on 25-12-1983. Photograph and details... With kind inputs from Sh DK Bhat (Hakim Sahebs Son). pdrnosotSe820969t9a21i9p70:4P g0te8h ct70tmlhre1b 190aSaif heM1 · Shri Shyam Lal Bhat..(1900 to 1983) A philosopher, well read , polished gentleman and a Hakim.(Habba Kadal) He was among the first few graduates of Jammu and Kashmir. He qualified as Tabib-i-Hazik from Lahore in the Unani Medicines. He would often hum the great revolutionary poet AHSAN-BIN-i-DANISH. His another favourite poet was Rawaish Siddiqui. Out of persian poets he respected HAFIZ. He was blessed with "barkat-i-gaab ti das-ti-shafa" by Great Mystic Khwaja Lassa Sahib. God bestowed Hakim Saheb with SHAFA , the healing touch and his patients had a great faith in him and would get cured. He practiced Unani Medicine for more than fifty years. Hakim Saheb left for heavenly abode on 25-12-1983. Photograph and details... With kind inputs from Sh DK Bhat (Hakim Sahebs Son). See less

Thursday, September 19, 2024

‼️🙏जय श्री हरि 🙏‼️

· ‼️🙏जय श्री हरि 🙏‼️ ✍️माँ पृथ्वी! अब समझ में आया, हो-न-हो तुम्हें भगवान श्रीकृष्ण की याद आ रही होगी; क्योंकि उन्होंने तुम्हारा भार उतारने के लिये ही अवतार लिया था और ऐसी लीलाएँ की थीं, जो मोक्ष का भी अवलम्बन हैं। अब उनके लीला-संवरण कर लेने पर उनके परित्याग से तुम दुःखी हो रही हो। देवी तुम तो धन-रत्नों की खान हो। तुम अपने क्लेश का कारण, जिससे तुम इतनी दुर्बल हो गयी हो, मुझे बतलाओ। मालूम होता है, बड़े-बड़े बलवानों को भी हरा देने वाले काल ने देवताओं के द्वारा वन्दनीय तुम्हारे सौभाग्य को छीन लिया है। पृथ्वी ने कहा- धर्म! तुम मुझसे जो कुछ पूछ रहे हो, वह सब स्वयं जानते हो। जिन भगवान के सहारे तुम सारे संसार को सुख पहुँचाने वाले अपने चारों चरणों से युक्त थे, जिनमें सत्य, पवित्रता, दया, क्षमा, त्याग, सन्तोष, सरलता, शम, दम, तप, समता, तितिक्षा, उपरति, शास्त्रविचार, ज्ञान, वैराग्य, ऐश्वर्य, वीरता, तेज, बल, स्मृति, स्वतन्त्रता, कौशल, कान्ति, धैर्य, कोमलता, निर्भीकता, विनय, शील, साहस, उत्साह, बल, सौभाग्य, गम्भीरता, स्थिरता, आस्तिकता, कीर्ति, गौरव और निरहंकारता- ये उनतालीस अप्राकृत गुण तथा महत्त्वकांक्षी पुरुषों के द्वारा वाञ्छनीय (शरणागत वत्सलता आदि) और भी बहुत-से महान् गुण उनकी सेवा करने के लिये नित्य-निरन्तर निवास करते हैं, एक क्षण के लिये भी उनसे अलग नहीं होते- उन्हीं समस्त गुणों के आश्रय, सौन्दर्यधाम भगवान श्रीकृष्ण ने इस समय इस लोक से अपनी लीला संवरण कर ली और यह संसार पापमय कलियुग की कुदृष्टि का शिकार हो गया। यही देखकर मुझे बड़ा शोक हो रहा है। अपने लिये, देवताओं में श्रेष्ठ तुम्हारे लिये, देवता, पितर, ऋषि, साधु और समस्त वर्णों तथा आश्रमों के मनुष्यों के लिये मैं शोकग्रस्त हो रही हूँ। जिनका कृपाकटाक्ष प्राप्त करने के लिये ब्रह्मा आदि देवता भगवान के शरणागत होकर बहुत दिनों तक तपस्या करते रहे, वही लक्ष्मी जी अपने निवासस्थान कमलवन का परित्याग करके बड़े प्रेम से जिनके चरणकमलों की सुभग छत्रछाया का सेवन करती हैं, उन्हीं भगवान के कमल, वज्र, अंकुश, ध्वजा आदि चिह्नों से युक्त श्रीचरणों से विभूषित होने के कारण मुझे महान् वैभव प्राप्त हुआ था और मेरी तीनों लोकों से बढ़कर शोभा हुई थी; परन्तु मेरे सौभाग्य का अब अन्त हो गया। भगवान ने मुझ अभागिनी को छोड़ दिया। मालूम होता है, मुझे अपने सौभाग्य पर गर्व हो गया था, इसीलिये उन्होंने मुझे यह दण्ड दिया है। तुम अपने तीन चरणों के कम हो जाने से मन-ही-मन कुढ़ रहे थे; अतः अपने पुरुषार्थ से तुम्हें अपने ही अन्दर पुनः सब अंगों से पूर्ण एवं स्वस्थ कर देने के लिये वे अत्यन्त रमणीय श्यामसुन्दर विग्रह से यदुवंश में प्रकट हुए और मेरे बड़े भारी भार को, जो असुरवंशी राजाओं की सैकड़ों अक्षौहिणियों के रूप में था, नष्ट कर डाला। क्योंकि वे परम स्वतन्त्र थे। जिन्होंने अपनी प्रेम भरी चितवन, मनोहर मुस्कान और मीठी-मीठी बातों से सत्यभामा आदि मधुमयी मानिनियों के मान के साथ धीरज को भी छीन लिया था और जिनके चरणकमलों के स्पर्श से मैं निरन्तर आनन्द से पुलकित रहती थी, उन पुरुषोत्त भगवान श्रीकृष्ण का विरह भला कौन सह सकती है। धर्म और पृथ्वी इस प्रकार आपस में बातचीत कर ही रहे थे कि उसी समय राजर्षि परीक्षित पूर्ववाहिनी सरस्वती के तट पर आ पहुँचे। सप्तदश अध्यायः महाराज परीक्षित के द्वारा कलियुग का दमन सूत जी कहते हैं- शौनक जी! वहाँ पहुँचकर राजा परीक्षित ने देखा कि एक राज वेषधारी शूद्र हाथ में डंडा लिये हुए है और गाय-बैल के जोड़े को इस तरह पीटता जा रहा है, जैसे उनका कोई स्वामी ही न हो। वह कमलतन्तु के समान श्वेत रंग का बैल एक पैर से खड़ा काँप रहा था तथा शूद्र की ताड़ना से पीड़ित और भयभीत होकर मूत्र-त्याग कर रहा था। धर्मोपयोगी दूध, घी आदि हविष्य पदार्थों को देने वाली वह गाय भी बार-बार शूद्र के पैरों की ठोकरें खाकर अत्यन्त दीन हो रही थी। एक तो वह स्वयं ही दुबली-पतली थी, दूसरे उसका बछड़ा भी उसके पास नहीं था। उसे भूख लगी हुई थी और उसकी आँखों से आँसू बहते जा रहे थे। स्वर्णजटित रथ पर चढ़े हुए राजा परीक्षित ने अपना धनुष चढ़ाकर मेघ के समान गम्भीर वाणी से उसको ललकारा। अरे! तू कौन है, जो बलवान् होकर भी मेरे राज्य के इन दुर्बल प्राणियों को बलपूर्वक मार रहा है? तूने नट की भाँति वेष तो राजा का-सा बना रखा है, परन्तु कर्म से तू शूद्र जान पड़ता है। हमारे दादा अर्जुन के साथ भगवान श्रीकृष्ण के परमधाम पधार जाने पर इस प्रकार निर्जन स्थान एन निरपराधों पर प्रहार करने वाला तू अपराधो है, अतः वध के योग्य है। उन्होंने धर्म से पूछा- कमल-नाल के समान आपका श्वेतवर्ण है। तीन पैर न होने पर भी आप एक ही पैर से चलते-फिरते हैं। यह देखकर मुझे बड़ा कष्ट हो रहा है। बतलाइये, आप क्या बैल के रूप में कोई देवता हैं? अभी यह भूमण्डल कुरुवंशी नरपतियों के बाहुबल से सुरक्षित है। इसमें आपके सिवा और किसी भी प्राणी की आँखों से शोक के आँसू बहते मैंने नहीं देखे। धेनुपुत्र! अब आप शोक न करें। इस शूद्र से निर्भय हो जायें। गोमाता! मैं दुष्टों को दण्ड देने वाला हूँ। अब आप रोयें नहीं। आपका कल्याण हो। देवी जिस राजा के राज्य में दुष्टों के उपद्रव से सारी प्रजा त्रस्त रहती है, उस मतवाले राजा की कीर्ति, आयु, ऐश्वर्य और परलोक नष्ट हो जाते हैं। राजाओं का परम धर्म यही है कि वे दुःखियों का दुःख दूर करें। यह महादुष्ट और प्राणियों को पीड़ित करने वाला है। अतः मैं अभी इसे मार डालूँगा। सुरभिनन्दन! आप तो चार पैर वाले जीव हैं। आपके तीन पैर किसने काट डाले? श्रीकृष्ण के अनुयायी राजाओं के राज्य में कभी कोई भी आपकी तरह दुःखी न हो। वृषभ! आपका कल्याण हो। बताइये, आप-जैसे निरपराध साधुओं का अंग-भंग करके किस दुष्ट ने पाण्डवों की कीर्ति में कलंक लगाया है? जो किसी निरपराध प्राणी को सताता है, उसे चाहे वह कहीं भी रहे, मेरा भय अवश्य होगा। दुष्टों का दमन करने से साधुओं का कल्याण ही होता है। (श्रीमद्भागवत महापुराण, से )

Monday, September 16, 2024

Manimahesh Kailash Peak

The Manimahesh Kailash Peak, 5,653 metres (18,547 ft), also known as Chamba Kailash, which stands towering high over the Manimahesh Lake, is believed to be the abode of Lord Shiva, the Hindu deity. It is located in the Bharmour subdivision of the Chamba district in the Indian state of Himachal Pradesh.[3][4] It is the fifth most important peak among the group of five separate peaks in Himalayas in separate locations collectively known as the Panch Kailash or "Five Kailashas", other being Mount Kailash in first place, Adi Kailash in second, Shikhar Kailash (Shrikhand Mahadev Kailash) in third, and Kinnaur Kailash in fouth place in terms of importance.[5] The peak is 26 kilometres (16 mi) from Bharmour in the Budhil valley. It is one of the major pilgrimage sites as well as a popular trekking destination in Himachal Pradesh. The Manimahesh Lake is at the base of the Kailash peak at 3,950 metres (12,960 ft) and is also held in deep veneration by people of Himachal Pradesh, particularly the Gaddi tribe of the region. In the month of Bhadon, on the eighth day of the new moon period a fair is held in the precincts of the lake that attracts thousands of pilgrims.[6][7][8][9] Manimahesh Kailash has not been successfully summitted by mountaineers and is thus remains a virgin peak. An attempt to climb the peak in 1968 by an Indo–Japanese team led by Nandini Patel was aborted. This failure is attributed to the divine prowess of the peak since it is revered as the holy mountain of Chamba according to the staunch devotees of the Manimahesh Lake and the peak. The peak is visible from near Manimahesh Lake. There are two trekking routes to the lake. One is from Hadsar village that is mostly frequented by pilgrims and trekkers. The other route, village Holi, climbs up further and then descends to the lake. There is no other habitation, except for a small village on this route Legends There are several mythical legends narrated on the sanctity of this peak and the lake at its base. In one popular legend, it is believed that Lord Shiva created Manimahesh after he married Goddess Parvati, who is worshipped as Mata Girija. There are many other legends narrated linking Lord Shiva and his show of displeasure through avalanches and blizzards that occur in the region.[3][7] According to a local myth, Lord Shiva is believed to reside in Manimahesh Kailash. A rock formation in the form of a Shivling on this mountain is considered as the manifestation of Lord Shiva. The snow field at the base of the mountain is called by the local people as Shiva's Chaugan (play field). It is also believed that Manimahesh Kailash is invincible as no one has so far scaled it, in spite of claims to the contrary[1] and the fact that much taller peaks have been scaled, including Mount Everest. According to one legend, a local tribe, a Gaddi, tried to climb along with a herd of sheep and is believed to have been turned into stone along with his sheep. The series of minor peaks around the principal peak are believed to be the remnants of the shepherd and his sheep. Another legend narrated is that a snake also attempted to climb the mountain but failed and was converted into stone. Devotees believe that they can view the peak only if the Lord wishes so. Bad weather covering the peak with clouds is also explained as a displeasure of the Lord.[6][7] Geography Manimahesh Kailash or Mountain Kailash is in the watershed of the Budhil valley, which forms part the mid-Himalayan range of hills near Kugti pass and at Harsar. The perpetually snow-covered glacial peak, at the head of its own range, is the source of the sacred lake of Manimahesh situated beneath it. Manimahesh Ganga River originates in a cascade from the lake and joins the Budhil River on its left bank. This hill range is a contiguous spur that conjoins the main range near the Bara Banghal pass of the Pir Panjal range. After the Budhal River rises from the slopes of the Kukti (Kugati) pass and Bada Bangal pass, the watershed formed by the Budhil and Ravi rivers takes the form of an inverted triangle with its base at Khadamukh. Budhil itself is formed by several streams which rise from different faces of the Manimahesh Kailas peak. The streams which rise from the peak are: the 'Bhujla' (derived from Bhuja meaning the arm) from the left flank of the peak, which meets Bhudil (also spelt Budhal) below Kukti village; the Dhancho nala, rising from the snowy ranges of the southern flank of the peak, flows in northward direction; Androl stream carrying holy waters of the Manimahesh Lake flowing to the north of the peak and through the Barachundi Meadow, the Siv Karotar stream rises from the foot of the peak and joins Androl; and the Gauri stream from the Gauri Kund joins Androl. All these streams constitute the Dhancho nala that has a confluence with Budhil at Hadsar. In view of so many streams originating from the Manimhesah Peak and the Manimhaesh Lake, and all of which are also linked to legends and the annual yatra pilgrimage, the Budhal or Budhil River is also highly venerated by the Gaddi elders and is nicknamed as 'Bhujl'.[8][9][11][12] Pir Pinjal lies in the lesser Himalayan Zone, which forms the central part of the state of Himachal Pradesh. The peak lies along the water shed between the Chenab River on the one side and Ravi and Beas on the other side.[13] A research study has been carried out on the glacial status of this peak and its range by the Geological Survey of India. It indicated that the Manimahesh Kailash peak is part of the range, which is 4.6 kilometres (2.9 mi) long. The average elevation of the studied peaks is 4,960 metres (16,270 ft). The glacial melt from this range flows towards the north and extends over an area of 4.58 square kilometres (1.77 sq mi). The ice content of the glacier has been assessed as 0.137 cubic km.[14] The composition of this proglacial region is reported to be a mixture of ground/recessional moraines with linear country outcrops protruding out. The glaciation must have extended up to a little downstream of Dhanchu as revealed by the terminal moraine hump. During the last 37 years, the glacier receded by 1,075 metres (3,527 ft) with an average retreat of 29.05 metres (95.3 ft)/year. The area vacated is estimated at 0.679 square kilometres (0.262 sq mi).[14] Climb It is said that no one could climb this pure peak because it is said to be abode by Lord Shiva. Once a Gaddi tried to climb the peak it was believed that he dreamt of Lord Shiva calling him on the peak and Lord Shiva asked him to cut the sheep on every step he takes but asked not to look back. He started to climb the peak steps after steps he kept cutting the lambs he was carrying with him but few steps before reaching the peak he got confused that he was not carrying many sheep he killed and turned back. As soon as he looked back he turned into stone and couldn't climb. Since then, no one has ever tried to climb this peak and thus it is a virgin peak.

Friday, September 13, 2024

*ये 16 मंत्र है जो हर बच्चों को सिखाना चाहिए*

1. Gayatri Mantra ॐ भूर्भुवः स्वः, तत्सवितुर्वरेण्यम् भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ॥ 2. Mahadev ॐ त्रम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् , उर्वारुकमिव बन्धनान्, मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् !! 3. Shri Ganesha वक्रतुंड महाकाय, सूर्य कोटि समप्रभ निर्विघ्नम कुरू मे देव, सर्वकार्येषु सर्वदा !! 4. Shri hari Vishnu मङ्गलम् भगवान विष्णुः, मङ्गलम् गरुणध्वजः। मङ्गलम् पुण्डरी काक्षः, मङ्गलाय तनो हरिः॥ 5. Shri Brahma ji ॐ नमस्ते परमं ब्रह्मा, नमस्ते परमात्ने । निर्गुणाय नमस्तुभ्यं, सदुयाय नमो नम:।। 6. Shri Krishna वसुदेवसुतं देवं, कंसचाणूरमर्दनम्। देवकी परमानन्दं, कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम। 7. Shri Ram श्री रामाय रामभद्राय, रामचन्द्राय वेधसे । रघुनाथाय नाथाय, सीताया पतये नमः ! 8. Maa Durga ॐ जयंती मंगला काली, भद्रकाली कपालिनी । दुर्गा क्षमा शिवा धात्री, स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु‍ते।। 9. Maa Mahalakshmi ॐ सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो, धन धान्यः सुतान्वितः । मनुष्यो मत्प्रसादेन, भविष्यति न संशयःॐ । 10. Maa Saraswathi ॐ सरस्वति नमस्तुभ्यं, वरदे कामरूपिणि। विद्यारम्भं करिष्यामि, सिद्धिर्भवतु मे सदा ।। 11. Maa Mahakali ॐ क्रीं क्रीं क्रीं, हलीं ह्रीं खं स्फोटय, क्रीं क्रीं क्रीं फट !! 12. Hanuman ji मनोजवं मारुततुल्यवेगं, जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं। वातात्मजं वानरयूथमुख्यं, श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये॥ 13. Shri Shanidev ॐ नीलांजनसमाभासं, रविपुत्रं यमाग्रजम । छायामार्तण्डसम्भूतं, तं नमामि शनैश्चरम्।। 14. Shri Kartikeya ॐ शारवाना-भावाया नम:, ज्ञानशक्तिधरा स्कंदा , वल्लीईकल्याणा सुंदरा। देवसेना मन: कांता, कार्तिकेया नामोस्तुते। 15. Kaal Bhairav ji ॐ ह्रीं वां बटुकाये, क्षौं क्षौं आपदुद्धाराणाये, कुरु कुरु बटुकाये, ह्रीं बटुकाये स्वाहा। 16. Bharat Mata नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे त्वया हिन्दुभूमे सुखद् वर्धितोऽहम् महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे पतत्वेष काथो नमस्ते-नमस्ते।। जय श्रीराम परिवार के सभी सदस्य सीखें और बच्चों को भी सिखायें...

Sunday, August 18, 2024

*✡रक्षाबंधन

· *🌹🙏जय जय श्री राधेश्याम शरणागतम् 🙏🌹* *🌻🙏जय देव ऋषि नारद भगवान शरणागतम् 🙏🌻* *✡रक्षाबंधन 19 अगस्त शुभ मुहूर्त व पौराणिक कथा ✡* रक्षा बंधन का पर्व हर साल सावन माह की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है. इस दिन बहनें अपने भाइयों को राखी बांधती हैं और उनकी लंबी उम्र की कामना करती हैं। रक्षा बंधन के दिन बहनें शुभ मुहूर्त पर अपने भाइयों की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधती हैं ताकि उनका जीवन धन-धान्य से भरा रहे और उन्हें किसी भी तरह के संघर्ष का सामना ना करना पड़े. वहीं भाई, बहनों को उनकी रक्षा का वचन देते हैं. *✡ रक्षा बंधन का शुभ मुहूर्त ✡* इस साल 19 अगस्त 2024 को पूर्णिमा तिथि सुबह 03 बजकर 38 मिनट पर शुरू होगी और और 19 अगस्त 2024 को ही रात्रिकाल 11 बजकर 55 मिनट पर समाप्त होगी। ➡️19 अगस्त को पूर्णिमा के साथ ही भद्रा काल आरम्भ हो जायेगा तथा भद्रा काल मे रक्षाबंधन❌ वर्जित होता है। ➡️रक्षाबंधन पर भद्रा का समय सुबह सूर्योदय से दोपहर 1:32 तक रहेगा। ➡️शुभ मुहूर्त-:- दोपहर 2•07 से 8•20 तक रहेगा। इस दौरान किसी भी समय रक्षाबंधन कर सकते है। ✡भद्रा में क्यों नहीं बांधी जाती राखी?✡ रक्षाबंधन पर भद्राकाल में राखी नहीं बांधनी चाहिए। इसके पीछे एक पौराणिक कथा भी है। लंकापति रावण की बहन ने भद्राकाल में ही उनकी कलाई पर राखी बांधी थी और एक वर्ष के अंदर उसका विनाश हो गया था। भद्रा शनिदेव की बहन थी।भद्रा को ब्रह्मा जी से यह श्राप मिला था कि जो भी भद्रा में शुभ या मांगलिक कार्य करेगा, उसका परिणाम अशुभ ही होगा। ❌रक्षाबंधन में भूलकर भी ना लें ऐसी राखी रक्षा बंधन से कई दिन पहले ही मार्केट में राखियां बिकने लगती हैं. इस दौरान मार्केट में अलग-अलग प्रकार की राखियां बिकती हैं. ऐसे में अगर आप भी अपने भाइयों के लिए राखी खरीदने जा रही हैं तो कुछ बातों का खास ख्याल रखें. आप अपने भाई को ऐसी राखियां ना बाधें जिससे उनकी लम्बी उम्र के बजाय उन पर मुसीबत आ जाए। ✡❌रक्षाबंधन पर भूलकर भी कौन-सी राखी नहीं लेनी चाहिए. राखी लेते समय हर बहन यह सोचती हैं कि वह अपने भाई के लिए ऐसी राखी ले जो बहुत सुंदर हो और राखी को देखते ही भाई खुश हो जाए. लेकिन क्या आप जानते हैं राखी के कुछ नकारात्मक प्रभाव भी हो सकते हैं. राखी लेते समय इस बात का ध्यान रखें कि ज्यादा बड़े आकार की राखी खरीदने से बचें. आकार में बड़ी होने के कारण यह राखी आसानी से टूट भी सकती है जिससे आपके भाई को अपने जीवन में कई तरह के कष्टों का सामना करना पड़ सकता है. इससे आप दोनों के रिश्ते पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है. राखी लेते समय इस बात का भी ख्याल रखें कि राखी में काला रंग ना हो. काले रंग को सकारात्मकता और नकारात्मकता दोनों का ही प्रतीक माना जाता है लेकिन पूजा सामग्री में काले रंग का इस्तेमाल करना वर्जित होता है. ऐसे में जिन राखियों में काला रंग होता है, उन्हें शुभ नहीं माना जाता . इसलिए कोशिश करें कि राखी में काला रंग ना हो. आप अपने भाई के लिए चांदी की छोटे आकार की राखी ले सकती हैं. साथ ही आप ऐसी राखी भी ले सकती हैं जिसमें ओम या स्वास्तिक का चिह्न बना हो। अगर आपके घर में कोई पुरानी राखी पड़ी है तो उसे ऐसे ही फेंकने की गलती ना करें, ऐसा करना राखी का अपमान माना जाता है. आप राखी को उतारकर बहती हुई नदी या पानी में प्रवाहित करे। *✡रक्षाबंधन (पौराणिक कथा)✡* पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, माता लक्ष्मी ने राजा बलि को सबसे पहले राखी बांधी थी। एक बार राजा बलि ने 100 यज्ञ पूरा करके स्वर्ग पर आधिपत्य का प्रयास किया, इससे इंद्र डर गए। वे भगवान विष्णु के पास गए और उनसे रक्षा का निवेदन किया। तब भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण किया। वे वामन अवतार में राजा बलि के पास गए और भिक्षा में तीन पग जमीन मांगी। बलि ने उनको तीन पग देने का वचन दिया। तब भगवान विष्णु ने दो पग में सारा भूलोक और ब्रह्मलोक नाप लिया। यह देखकर राजा बलि समझ गए कि यह वामन व्यक्ति कोई साधारण नहीं हो सकता है। उन्होंने अपना सिर आगे कर दिया। यह देखकर भगवान विष्णु राजा बलि से प्रसन्न हुए और उनसे वर मांगने को कहा। साथ ही बलि को पाताल लोक में रहने को कहा। तब राजा बलि ने कहा कि हे प्रभु! पहले आप वचन दें कि जो वह मांगेंगे, वह आप उनको प्रदान करेंगे। उनसे छल न करेंगे। भगवान विष्णु ने उनको वचन दिया। तब बलि ने कहा कि वह पाताल लोक में तभी रहेंगे, जब आप उनके आंखों के सामने हमेशा प्रत्यक्ष रहेंगे। यह सुनकर विष्णु भगवान दुविधा में पड़ गए। उन्होंने सोचा कि राजा बलि ने तो उनको वचन बन्धन में बाँध दिया। अपने वचन में बंधे भगवान विष्णु भी पाताल लोक में राजा बलि के यहां रहने लगे। इधर माता लक्ष्मी विष्णु भगवान का इंतजार कर रही थीं। काफी समय बीतने के बाद भी नारायण नहीं आए। इसी बीच नारद जी ने बताया ​कि वे तो अपने दिए वचन के कारण राजा बलि के पास रह रहे हैं। माता लक्ष्मी ने नारद से उपाय पूछा, तो उन्होंने कहा कि आप राजा बलि को भाई बना लें और उनसे रक्षा का वचन लें। तब माता लक्ष्मी ने एक महिला का रूप धारण किया और राजा बलि के पास गईं। रोती हुई महिला को देखकर बलि ने कारण पूछा। उन्होंने कहा कि उनका कोई भाई नहीं है। इस पर बलि ने उनको अपना धर्म बहन बनाने का प्रस्ताव दिया। जिस पर माता लक्ष्मी बलि को रक्षा सूत्र बांधीं और रक्षा का वचन लिया। दक्षिणा में उन्होंने बलि से भगवान विष्णु को मांग लिया। इस प्रकार माता लक्ष्मी ने बलि को रक्षा सूत्र बांधकर भाई बनाया, साथ ही भगवान विष्णु को भी अपने दिए वचन से मुक्त करा लिया

यज्ञोपवीत में तीन लड़, नौ तार और 96 चौवे ही क्यों

यज्ञोपवीत में तीन लड़, नौ तार और 96 चौवे ही क्यों? ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ यज्ञोपवीत के तीन लड़, सृष्टि के समस्त पहलुओं में व्याप्त त्रिविध धर्मों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करते हैं। तैत्तिरीय संहिता 6, 3, 10, 5 के अनुसार तीन लड़ों से तीन ऋणों का बोध होता है। ब्रह्मचर्य से ऋषिऋण, यज्ञ से देवऋण और प्रजापालन से पितृऋण चुकाया जाता है। ब्रह्मा, विष्णु और महेश यज्ञोपवीतधारी द्विज की उपासना से प्रसन्न होते हैं। त्रिगुणात्मक तीन लड़ बल, वीर्य और ओज को बढ़ाने वाले हैं, वेदत्रयी, ऋक, यजु, साम की रक्षा करती हैं। सत, रज व तम तीन गुणों की सगुणात्मक वृद्धि करते हैं। यह तीनों लोकों के यश की प्रतीक हैं। माता, पिता और आचार्य के प्रति समर्पण, कर्तव्यपालन, कर्तव्यनिष्ठा की बोधक हैं। सामवेदीय छान्दोग्यसूत्र में लिखा है-ब्रह्माजी ने तीन वेदों से तीन लड़ों का सूत्र बनाया विष्णु ने ज्ञान, कर्म, उपासना इन तीनों कांडों से तिगुना किया और शिवजी ने गायत्री से अभिमंत्रित कर उसमें ब्रह्म गांठ लगा दी। इस प्रकार यज्ञोपवीत नौ तार और ग्रंथियां समेत बनकर तैयार हुआ। यज्ञोपवीत के नौ सूत्रों में नौ देवता वास करते हैं-1. ओंकार-ब्रह्म, 2. अग्नि - तेज, 3. अनंत-धैर्य, 4. चंद्र-शीतल प्रकाश, 5. पितृगण-स्नेह, 6. प्रजापति-प्रजापालन, 7. वायु-स्वच्छता 8. सूर्य-प्रताप, 9. सब देवता- समदर्शन। इन नौ देवताओं के, नौ गुणों को धारण करना भी नौ तार का अभिप्राय है। यज्ञोपवीत धारण करने वाले को देवताओं के नौ गुण-ब्रह्म, परायणता, तेजस्विता, धैर्य, नम्रता, दया, परोपकार, स्वच्छता और शक्ति संपन्नता को निरंतर अपनाने के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए। यज्ञोपवीत के नौ धागे नौ सद्गुणों के प्रतीक भी माने जाते हैं। ये हृदय में प्रेम, वाणी में माधुर्य, व्यवहार में सरलता, नारी मात्र के प्रति पवित्र भावना, कर्म में कला और सौंदर्य की अभिव्यक्ति, सबके प्रति उदारता और सेवा भावना, शिष्टाचार और अनुशासन, स्वाध्याय एवं सत्संग, स्वच्छता, व्यवस्था और निरालस्यता माने गए हैं, जिन्हें अपनाने का निरंतर प्रयत्न करना चाहिए। वेद और गायत्री के अभिमत को स्वीकार करना और यज्ञोपवीत पहनकर ही गायत्री मंत्र का जाप करना। 96 चौवे (चप्पे) लगाने का अभिप्राय है, क्योंकि गायत्री मंत्र में 24 अक्षर हैं और वेद 4 हैं। इस प्रकार चारों वेदों के गायत्री मंत्रों के कुल ग