Sunday, January 12, 2025

!! जनेऊ का चमत्कार !!

!! जनेऊ का चमत्कार !! मुझे उच्च रक्तचाप था विशेषज्ञ को दिखाया उन्होंने जांच करके दवा लिख दी 4 दिन दवाखाने के बाद भी रक्तचाप कम नहीं हुआ पुनः संपर्क करने पर उन्हें एक दवा और बढ़ा दी फिर भी चलता रहा, उसी मेरे एक मित्र ने फोन करके समाचार पूछे तो उन्हें स्थिति बताई तब उन्होंने कहा कि आप जनेऊ को किसी भी कान में 15 मिनिट लपेटकर रखिए और फिर BP नाप लीजिए मैने वैसा ही किया और फिर BP चैक किया तो जैसे चमत्कार हो गया 145/90 हो गया। आज समझ में आया कि हमारे पूर्वज क्यों सभी को जनेऊ धारण करने को कहते थे और क्यों तब उच्च रक्तचाप रोग नहीं होता था। धन्य है सनातन को। मुझे उच्च रक्तचाप था विशेषज्ञ को दिखाया उन्होंने जांच करके दवा लिख दी 4 दिन दवाखाने के बाद भी रक्तचाप कम नहीं हुआ पुनः संपर्क करने पर उन्हें एक दवा और बढ़ा दी फिर भी चलता रहा, उसी मेरे एक मित्र ने फोन करके समाचार पूछे तो उन्हें स्थिति बताई तब उन्होंने कहा कि आप जनेऊ को किसी भी कान में 15 मिनिट लपेटकर रखिए और फिर BP नाप लीजिए मैने वैसा ही किया और फिर BP चैक किया तो जैसे चमत्कार हो गया 145/90 हो गया। आज समझ में आया कि हमारे पूर्वज क्यों सभी को जनेऊ धारण करने को कहते थे और क्यों तब उच्च रक्तचाप रोग नहीं होता था। धन्य है सनातन को।

अपने जन्म नक्षत्र के अनुसार जानिए किस क्षेत्र में होंगे आप सफल

🌿🌼 अपने जन्म नक्षत्र के अनुसार जानिए किस क्षेत्र में होंगे आप सफल 1. अश्विनी नक्षत्र अश्विनी नक्षत्र में जन्मे लोग अगर यातायात से जुड़ा कोई कार्य करेंगे तो उन्हें सफलता मिलेगी। इसके अलावा खेल, दवाइयां, कृषि, जिम, जौहरी, सुनार आदि से संबंधित क्षेत्र भी फायदा पहुंचाएंगे। 2. भरणी नक्षत्र भरणी नक्षत्र में जन्मे जातकों को जन्म देने वाली दाई, गृह सेवक, शवगृह अधिकारी, दाह-संस्कार से संबंधित कार्य करने चाहिए। वे बच्चों का ध्यान रखने वाले या नर्सरी स्कूल के अध्यापक के तौर पर भी कार्य कर सकते हैं। तम्बाकू, कॉफी, चाय से जुड़े क्षेत्र भी लाभ पहुंचाएंगे। 3. कृत्तिका नक्षत्र कृत्तिका नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग ऐसे क्षेत्र में सफल हो सकते हैं, जो नुकीली चीज या तेज धार से जुड़े हों। आप चाकू, तलवार के निर्माण से जुड़ सकते हैं या फिर अच्छे लोहार या वकील भी साबित हो सकते हैं। अगर आप ऐसे किसी कार्य से जुड़ते हैं जिसके अनुसार नशे के आदी लोगों को सुधारा जाता है तो अवश्य सफलता मिलेगी। 4. रोहिणी नक्षत्र रोहिणी नक्षत्र से संबंधित लोग खानपान के कार्य से जुड़ेंगे तो सफलता मिलेगी। खाना बनाना हो या फिर बांटना, ये कार्य आपके लिए उत्तम हैं। इसके अलावा कला का क्षेत्र भी आपके लिए है। आप अच्छे कलाकार, गायक, संगीतकार भी हो सकते हैं। इस नक्षत्र में जन्मे लोग रचनात्मक होते हैं। 5. मृगशिरा नक्षत्र यात्रा से जुड़े कार्य में अगर आप संलग्न हैं तो आपको अवश्य ही सफलता मिलेगी। इसके अलावा शिक्षा, खगोलशास्त्र, पैसे का हिसाब-किताब रखना, ये सभी क्षेत्र भी आपको लाभ दिलवाएंगे। कपड़े के काम में लिप्त लोगों को भी लाभ मिलेगा। 6. आर्द्रा नक्षत्र बिजली के उपकरण या बिजली से संबंधित कोई अन्य कार्य करना आपके लिए फायदेमंद रहेगा। कम्प्यूटर, तकनीक, गणित, वैज्ञानिक, गैमिंग आदि से संबंधित क्षेत्र आपके लिए हैं। इसके अलावा डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ का काम भी आपको सूट करेगा। अगर आप जासूस हैं या रहस्य सुलझाने जैसे कार्य कर रहे हैं तो भी आपको सफलता मिलेगी। 7. पुनर्वसु नक्षत्र काल्पनिक कहानियां लिखने या खरीदने-बेचने से संबंधित कोई कार्य करना, ये आपके लिए फायदेमंद साबित होंगे। यात्रा और रखरखाव से संबंधित कार्य भी आप कर सकते हैं। अगर आप होटल मैनेजमेंट में कार्यरत हैं या फिर दीक्षा देने का काम करते हैं तो आपको फायदा मिलेगा। इतिहासकार या भेड़-बकरियों को पालने वाले लोग भी सफलता प्राप्त करेंगे। 8. पुष्य नक्षत्र दूध से संबंधित व्यापार करने वाले लोग सफलता प्राप्त करेंगे। कैटरिंग करने वाले और होटल चलाने वाले लोग भी अच्छे व्यवसाय में हैं। नेता, शासक, धार्मिक कार्य करने वाले लोग, शिक्षक और अध्यापक आदि लोग लाभ प्राप्त करते हैं। 9. आश्लेषा नक्षत्र पेट्रोलियम, सिगरेट, कानूनी, दवाइयों से संबंधित इंडस्ट्री से जुड़े लोग अवश्य लाभ प्राप्त करेंगे। इस नक्षत्र में जन्मे लोग तांत्रिक, सांप का जहर, बिल्ली पालने वाले, सीक्रेट सर्विस करने वाले, मनोवैज्ञानिक होते हैं। ये पोंगे पंडित और आत्माओं को बुलाने वाले भी होते हैं। 10. मघा नक्षत्र इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग शाही तो नहीं होते लेकिन उनका शाही घरानों से सीधा संपर्क रहता है। वे उनके मैनेजर भी हो सकते हैं और महत्वपूर्ण कर्मचारी भी। इसके अलावा सरकार के अधीन बड़े पदों में काम करने वाले, बड़े वकील, जज, नेता, वक्ता, ज्योतिष, पुरातत्व वैज्ञानिक भी इसी नक्षत्र में जन्म लेने वाले होते हैं। 11. पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र इस नक्षत्र में जन्मे लोग अगर महिलाओं से संबंधित सामान या बहुमूल्य रत्नों का व्यापार करते हैं तो उन्हें अवश्य ही सफलता मिलती है। ब्यूटीशियन, गायक, घर की साज-सज्जा या अन्य रचनात्मक क्षेत्र से जुड़े लोग अवश्य ही सफलता प्राप्त करते हैं। विवाह से संबंधित हर करियर भी आप ही के लिए हैं। 12. उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र मनोरंजन, खेल और कला से संबंधित क्षेत्रों में कार्य करने वाले लोग अवश्य ही सफलता प्राप्त करते हैं। इस नक्षत्र में जन्मे धार्मिक संस्थानों के मुखिया या पुजारी, परोपकार करने वाले, दान-पुण्य के कार्य से जुड़े, शादी-विवाह से संबंधित सलाह देने वाले या अंतरराष्ट्रीय मसलों से संबंधित लोग भी सफलता प्राप्त करते हैं। 13. हस्त नक्षत्र गहने बनाने वाले लोग, सेहत से संबंधित कार्य करने वाले, हास्य कलाकार, काल्पनिक कहानियां लिखने वाले, उपन्यासकार, रेडियो या टेलीविजन इंडस्ट्री से जुड़े लोगों का संबंध अगर हस्त नक्षत्र से है तो उन्हें अवश्य ही सफलता मिलती है। 14. चित्रा नक्षत्र अपना बिजनेस चलाने वाले, घर की साज-सज्जा, गहने बनाने, फैशन डिजाइनर, मॉडल्स, कॉस्मेटिक, वास्तु-फेंगशुई, ग्राफिक आर्टिस्ट, सर्जन, प्लास्टिक सर्जन, स्टेज आर्टिस्ट, गायक, इन क्षेत्रों में कार्यरत लोग सफलता प्राप्त अवश्य करते हैं। 15. स्वाति नक्षत्र व्यवसाय चलाने वाले, गायक, वाद्य यंत्र बजाने वाले, अध्ययन कार्य में संलिप्त, स्वतंत्र कार्य करने वाले, सामाजिक सेवा में लिप्त लोग सफल होते हैं। इसके अलावा न्यूज रीडर, कम्प्यूटर्स और सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री में काम करने वाले लोग सफलता पाते हैं। 16. विशाखा नक्षत्र शराब, फैशन, कला और साथ ही बोलने संबंधित क्षेत्रों में कार्य करने वाले ओग सफलता हासिल करते हैं। इसके अलावा सफल राजनेता, खिलाड़ी, धार्मिक नेता, नर्तक, सैनिक, आलोचक, अपराधियों का संबंध भी इसी नक्षत्र से है। 17. अनुराधा नक्षत्र सम्मोहन क्रिया में लिप्त, ज्योतिष शास्त्री, सिनेमा संबंधित क्षेत्र, फोटोग्राफर, फैक्टरी में काम करने वाले मजदूर, औद्योगिक क्षेत्र से संबंधित, वैज्ञानिक, गणितज्ञ, डेटा एक्सपर्ट, अंकशास्त्र विशेषज्ञ, खदानों में काम करने वाले, विदेश व्यापार से संबंधित लोग सफलता प्राप्त करते हैं। 18. ज्येष्ठा नक्षत्र नीति निर्माण से संबंधित क्षेत्रों में कार्य करने वाले लोग, सरकारी अधिकारी, रिपोर्टर्स, रेडियो जॉकी, न्यूज रीडर, टॉक शो होस्ट, वक्ता, काला जादू करने वाले, जासूस, माफिया, सर्जन, हस्त कारीगर, एथलीट्स आदि क्षेत्रों से संबंधित लोग सफलता प्राप्त करते हैं। 19. मूल नक्षत्र इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोगों के लिए दवाइयों से संबंधित क्षेत्र, न्याय, जासूसी, रक्षा, अध्ययन जैसे कार्य सफलता दिलवाएंगे। इसके अलावा वक्ता, सार्वजनिक नेता, सब्जियों के व्यापारी, अंगरक्षक, मल्लयुद्ध करने वाले, गणितज्ञ, सोने की खदान में काम करने वाले, घुड़सवार भी सफल होते हैं। 20. पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र शिप संबंधी उद्योग में काम करने वाले प्रेरण, अध्यापक, भाषण देने वाले, फैशन एक्सपर्ट्स, कच्चे सामान का विक्रय करने वाले, बालों की सजावट देखने वाले, तरल पदार्थों का कार्य करने वाले लोग सफलता प्राप्त करते हैं। 21. उत्तराषाढ़ा नक्षत्र ज्योतिष, वकील, सरकारी अधिकारी, सेना में कार्यरत, अध्ययनकर्ता, सुरक्षा कार्य, व्यापारी, प्रबंधक, क्रिकेट खिलाड़ी, राजनेता और उत्तरदायित्व निभाने वाले कार्यों को करने वाले लोग सफल होते हैं। 22. श्रवण नक्षत्र किसी भी क्षेत्र में काम करने वाले अध्यापक, वक्ता, बौद्धिक, छात्र, भाषाविद, कहानीकार, हास्य अभिनेता, गायन से संबंधित क्षेत्र से जुड़े लोग, टेलीफोन ऑपरेटर्स, मनोवैज्ञानिक, यातायात से संबंधित क्षेत्र में कार्यरत लोग सफलतम होते हैं। 23. धनिष्ठा नक्षत्र गायन, वादन, नृत्य, म्यूजिक बैंड इन सबसे संबंधित क्षेत्र के लोग सफलता पाते हैं। इसके अलावा मनोरंजन उद्योग, रचनात्मक क्षेत्र, कवि, ज्योतिष शास्त्री, प्रेत आत्माओं को बुलाने वाले लोग सफलता हासिल करते हैं। 24. शतभिषा नक्षत्र ड्रग्स या दवाइयों से संबंधित क्षेत्र में काम करने वाले लोग सफलता प्राप्त करते हैं। सर्जन, मदिरा से जुड़े क्षेत्रों में कार्यरत लोग भी सफलता पाते हैं। 25. पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र मृत्यु से संबंधित किसी भी व्यवसाय से जुड़े लोग सफल होते हैं। कॉफिन बनाने वाले, कब्र खोदने वाले, अंतिम संस्कार से संबंधित सामान का व्यापार करने वाले सफलता पाते हैं। इसके साथ-साथ आतंकवादी, हथियार बनाने वाले, काला जादू करने वाले लोग भी सफलता पाते हैं। 26. उत्तराभाद्रपद नक्षत्र योग और ध्यान से संबंधित क्षेत्रों में कार्यरत लोग सफलता प्राप्त करते हैं। तंत्र-मंत्र करने वाले और रूहानी ताकतों से संपर्क स्थापित करने वाले लोगों को सफलता अवश्य मिलती है। इसके अलावा दान-पुण्य करने वाले लोग भी सफल होते हैं। 27. रेवती नक्षत्र सम्मोहन क्रिया करने वाले लोग, जादूगर, गायक, कलाकार, आर्टिस्ट, हास्य कलाकार, मनोरंजन करने वाले, कंस्ट्रक्शन बिजनेस से जुड़े लोग सफलता पाते हैं। धार्मिक संस्थानों में कार्यरत लोग भी सफल होते हैं

Sunday, December 29, 2024

Swami Ramji

"Immersed in Samadhi, he never moved out for 20 long years" - Jankinath Kaul 'Kamal' Swami Ramji Swami Ramji In the middle of the l9th century AD there lived a Brahmin named Shukdev at Chinkral Mohalla, Srinagar. The Brahmin was a Purohit and lived a pious life. Around 1852 AD (1910 Bikrami), a son was born to him. According to his horoscope, it was predicted at his birth that the baby would grow to be a great saint. Nobody could imagine at that time the great spiritual heights that Swami Ramji would attain in his life later. The boy Ramji received instruction as Purohit; in those days modem education on Western lines was in its very infancy in this country. In his youth he came in contact with Shri Lala Joo Kokru, who was well-versed in Kashmir Shaivism through reflective heredity. Since Ramji also had a spiritual bent of mind, to which heredity and environment again must have contributed, he took to the study of Shaiva philosophy under Shri Lala Joo. His intelligence and interest brought to him a clear comprehension of this school of philosophy. As the adage goes, when you deserve the desire in you gets fulfilled by itself. When you really need help, it must come. Later, Ramji met his guru, Sri Manas Ram Monga (or Maneh Kak as he was called) who was a great mystic saint of the time in Kula system of Kashmir Shaivism. He had great spiritual attainments and wanted that philosophy to spread through a line of disciples. Being a Siddha Yogi and eager to transmit the knowledge to a capable person who understood this subtle philosophy, the master found the true disciple in Ramji and transmitted Yoga to him by his divine touch. Ramji devoted himself to the practice of Yoga in right earnest. He did not undergo the formal renunciation as a Vedantin usually does. He continued with his work of Purohit in a professional course and regularly attended Yajman's houses for conducting worship and religious rites for quite some time of his early life. Naveh Naran Swami Ramji had a great devotee in Pandit Narayan Das Raina, a merchant and houseboat owner of Srinagar at that time. In fact, Shri Narayan Das was the first to introduce houseboats in Kashmir. Among Kashmiris he was, therefore, known as 'Naveh Naran'. He was a man of high ideals. His simple habits, loving nature and cheerful behavior had earned a name for him. Swami Ramji is said to have been his family priest. The family honored Swamiji and all his requirements were met with pleasure by Sri Narayan Das. Swami Ramji, with his comprehensive study of Kashmir Shaivism and severe practice of Yoga, got well established in the system. Now he wanted a secluded place. He found a congenial one at a fellow-disciple's home at Safakadal. When a flower is in full bloom, it gives out fragrance. Swami Ramji was now a Siddha Yogi. Discerning people who could recognize his worth came to him. Common people too thronged round him to invoke his blessings. This disturbed the family life of his fellow-disciple. Realizing this, Swami Ramji one evening called on his admirer and worthy Yajman, Sri Narayan Das, at Fatehkadal. "Naran Joo: I want to be in seclusion. Will you provide me with a place to -live? " he told his trusted Yajman. The noble Pandit was simply pleased to welcome the sage and offered a small three-storied house, which he owned, just 300 metres from his residence. The second storey of the small house was furnished. In a few days Swami Ramji moved to this room. Here he carried out his spiritual practice (Sadhana) and taught the Shaiva-Agama (Advaita Kashmir Shaivism popularly known as Trika philosophy) to worthy disciples like Swami Mahtab Kak, Swami Vidyadhar and Swami Govind Kaul who had been his personal devotees and received inspiration and his personal guidance to rise to their full stature in their time. Scholarly Exposition Many more devotees and admirers, mostly householders, were attracted towards him by his scholarly expositions of the Agama and Yogic wonders. He was the greatest Yogi of his time in Kashmir. His mere look or touch was bound to make a person a changed one. He wielded a wonderful Shaktipata. Even Maharaja Pratap Singh, the then ruler of Kashmir and a discerning devotee, is said to have approached him for blessings. In his later years Swami Ramji is said to have sat, with knees to his breast, at his Asana (seat) and did not move out for 20 long years. Here the saint-philosopher imparted Yogic instructions to deserving disciples and delivered discourses on Trika philosophy for hours together to his listeners who were spell-bound to see him immersed in undisturbed Samadhi. (To enlighten his own disciples he (Swami Ramji) openly displayed, even while in body, his own Shaivahood, by remaining in Samadhi continuously for four hours daily). Stories about his Siddhis are still current in the valley The separate house where Swami Ramji lived is now the famous Shri Rama-Trika- Shaivashrama. Devotees and admirers are heard chanting devotional hymns and recitations from Shaiv-Agamas up to this time. Shaivashrama Shri Narayan Das and his wife, Srimati Arnyamali, were greatly devoted to Swami Ramji, who from the* family priest had now evolved to be their spiritual Guru. They had been serving him and looking to all his needs and convenience with great love and devotion. On May 9, 1907 (about 1964 Bikrami), the couple was blessed with a son. When the news of the birth of this baby was instantly conveyed to Swami Ramji, it is reported that he got up to dance and uttered: "I am Rama and the child be named Lakshmana." (Even in his old age, Swami Ramji lost his body- consciousness out of divine joy at the auspicious birth of my Master (Shri Lakshman Joo), singing 'I am Rama and he (the new born) be named Lakshman' and danced in joy). Divine Being He believed that a divine being had taken birth in the form of the child. Truly so, the child, who was named Lakshman, showed signs of abnormality as he grew up. Swami Ramji encouraged the anxious parents and conferred blessings on this divine child. He had recognized divine features in the child who would often go into fits. Once when the parents approached Swami Ramji to express their anxiety about the child he sent them back with a remark. "..What happens to him, may be graced unto me." Thus the child, Lakshman, entered boyhood under the spiritual care of this great sage, who later initiated him into Gayatri Mantra, Pranayama and certain Yogic practices. (There lived the renowned saint, his Holiness Swami Ramji, the Shaiva teacher of my Master - Swami Lakshman Joo). Knowing that he would not be in the mortal coil L till the divine boy attained maturity, the sage L entrusted his future initiation into the-Shaiva order to his chief disciple, Swami Mahtab Kak. Entrusting his craving disciples and the seven- year old Shri Lakshmana to the charge of Swami Mehtab Kak, his principal disciple, he (Swami Ramji) entered the real abode of Shiva by giving up his body). After a few years, Swami Ramji left the body in 1915 AD (1971 Bikrami Magha Krishnapaksha Chaturdashi) to merge in the Divine Universal Self of which he had been an embodiment. Divine Rapture Swami Ramji was sometimes heard by his close disciples uttering in divine rapture his experiences of Supreme-Consciousness and here is given a verse (Shloka) from his pen: (On accepting the Truth from the mouth of the Master, whose word is the sacred text, all my ignorance got dispelled. The mind (Chitta) dived deep in the ocean of consciousness eager to taste the loving nectar of equality. The web of thought calmed down in the state of unqualified meditation. Thus the Supreme-Consciousness inexpressible is revealed to me in its perfectness.) Source: Koshur Samachar

Saturday, December 21, 2024

KHEER BHAWANI TEMPLE IN KASHMIR

KHEER BHAWANI TEMPLE IN KASHMIR Kheer Bhawani Temple is a celebrated Hindu shrine, situated in the Tulla Mulla village near Srinagar. The temple is constructed above a sacred spring, which is said to change its colours. Kheer Bhawani Temple is a celebrated Hindu shrine, situated in the Tulla Mulla village near Srinagar. The temple is constructed above a sacred spring, which is said to change its colours. Goddess Ragnya Devi – an incarnation of Goddess Durga – is the presiding deity of this temple. The temple attributes its unique name to the famous Indian dessert kheer, which is the main offering to the goddess. Maharaja Pratap Singh built this temple in 1912, which was later renovated by Maharaja Hari Singh. The shrine has a hexagonal spring and a small marble shrine where the goddess' idol is installed. According to legends, Lord Rama worshipped the goddess during his exile. He expressed his desire of shifting the holy seat to Shadipora, which was fulfilled by Lord Hanuman. The temple was shifted to its present site after the goddess appeared in the dream of a local pundit named Rugnath Gadroo. On the eighth day of the full moon in May, devotees gather at the Kheer Bhawani Temple and observe fasts. It is believed that Goddess Ragnya changes the spring's colour on this auspicious day. If the colour changes to black, it is considered a bad omen that would result in a disaster in the valley. The temple organises fairs and yagnas during its annual festival and navratras, which attract a large number of devotees. Hawans on Shukla Paksh Ashtami are also common in this temple. History of Kheer Bhawani Temple: Located amidst the beautiful Chinar trees and rippling rivers, lies the Kheer Bhawani Temple is the abode of Goddess Ragnya Devi. The idol is kept in a white marble temple. According to the Hindu mythology, Lord Rama worshipped Ragnya Devi during his exile and after the exile was over he shifted her abode to Shadipora from where it was shifted here according to the wish of Ragnya Devi. There is a beautiful spring located near the temple.

Wednesday, December 11, 2024

ीता जयंती

श्रीमद्भगवत् गीता जयंती के पावन अवसर पर (अंक -२) महाभारत में कुल तेरह गीताओं का उल्लेख है- शान्ति पर्व में दस , आश्वमेधिक पर्व में दो एवं भीष्म पर्व में एक गीता । भीष्म पर्व की गीता ही " भगवद्गीता " कहलाती है । श्री मद्भगवद्गीता की बहिरंग विशेषता - १. इसमें कुल १८ (अठारह) अध्याय हैं । २. इसमें कुल ७००(सात सौ) श्लोक हैं। ३. इसका प्रत्येक अध्याय ही एक योग है। यथा - कर्म योग , भक्ति योग, पुरुषोत्तम योग , विश्वरूपदर्शन योग आदि। ४. इसमें ४ (चार) ऐसे पात्र हैं, जिनके नाम के बाद ' उवाच ' लिखा हुआ है। शुरु में धृतराष्ट्र , फिर संजय , तत्पश्चात् अर्जुन और अंत में "भगवान " उवाच आया है। ५. पहला अध्याय धृतराष्ट्र उवाच से , दूसरा अध्याय संजय उवाच से , तीसरा अध्याय अर्जुन उवाच से तथा चौथा अध्याय श्रीभगवान उवाच से प्रारंभ होता है। ६. भगवत् गीता का प्रारंभ " धृतराष्ट्र उवाच " से हुआ है। धृतराष्ट्र ने केवल एक श्लोक ही कहा है। ७. धृतराष्ट्र से अधिक संजय ने , संजय से अधिक अर्जुन ने एवं सर्वाधिक श्लोक भगवान श्रीकृष्ण ने कहे हैं। ८. चार पात्रों में तीन पात्रों के ही नाम का उल्लेख हुआ है। चौथे पात्र श्रीकृष्ण के नाम के बदले श्रीभगवान उवाच का उल्लेख हुआ है। कुरुक्षेत्र के रंगमंच पर तीनों पात्र हैं , पर भगवान श्रीकृष्ण तो पात्र नहीं वरन् निर्देशक हैं। ९. गीता में एकमात्र पहला अध्याय ही ऐसा है , जिसका नामकरण एक पात्र-विशेष अर्जुन पर ही रखा गया है - अर्जुन विषाद योग। १०. श्रीमद्भगवद्गीता का अकेला ऐसा अध्याय - प्रथम अध्याय ही है, जिसमें सभी चारों ( धृतराष्ट्र , संजय , अर्जुन एवं भगवान श्रीकृष्ण) ने कहा है। ११. धृतराष्ट्र उवाच से आरंभ होनेवाले अध्याय की संख्या एक है - पहला। संजय उवाच से शुरु होने वाला अध्याय भी एक ही है- दूसरा अध्याय। अर्जुन उवाच से शुरु होनेवाले अध्याय सात हैं - ३,५,८,११,१२,१७, एवं १८ वां। श्रीभगवान उवाच से शुरु होनेवाले अध्याय नौ हैं - ४,६,७,९,१०,१३,१४,१५ एवं १६ वां‌ । १२. सर्वाधिक श्लोकों वाला अध्याय - १८वां है , जिसमें ७८ श्लोक हैं। न्यूनतम श्लोकों की संख्या-२० है ,जो १२ वें तथा १५ वें अध्याय में है। १३. सर्वाधिक " उवाच " लिखा जाने वाला अध्याय - ११ वां है, जिसमें ११ बार उवाच लिखा गया है - चार बार अर्जुन उवाच , चार बार श्री भगवानुवाच एवं तीन बार संजय उवाच। १४. प्रथम श्लोक धृतराष्ट्र ने तथा अंतिम श्लोक संजय ने कहा है। यह भी अद्भुत संयोग है कि भगवत् गीता का प्रारंभ और समापन दोनों पांडव पक्ष से नहीं बल्कि कौरव पक्ष से हुआ है। १५. गीता संस्कृत भाषा में वर्णिक छन्द में है। १६. गीता में दो संवाद हैं - धृतराष्ट्र-संजय संवाद एवं अर्जुन-भगवान संवाद। धृतराष्ट्र-संजय का संवाद हस्तिनापुर के राजमहल में हुआ था , जबकि भगवान श्री कृष्ण-अर्जुन का संवाद कुरुक्षेत्र के युद्धक्षेत्र में हुआ था। १७. भगवान ने निरंतर सर्वाधिक कहा है - ७३(तिहत्तर) श्लोक। १२ वें अध्याय के दूसरे श्लोक से १४ वें अध्याय के बीसवें श्लोक तक (१९+३४+२०)। १८. भगवत् गीता का ११वां अध्याय चमत्कारी अध्याय है , जहां भगवान श्रीकृष्ण ने अपने विश्वरूप का दिव्य दर्शन अपने भक्त अर्जुन को कराया था। मिथिलेश ओझा की ओर से आपको नमन एवं वंदन । ।। योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण की जय।। ।। भगवत् गीता की जय ।।

Rishi Durvasa

When Draupadi had nothing to feed hungry Rishi Durvasa and his shishyas. ...then how Shri Krishna helped his devotee Draupadi.Once Durvasa Rishi visited Duryodhna, Durvasa being pleased by Duryodhana’s patronage decided to reward him and Duryodhana asks him to visit Yudhishthara after Draupadi had taken her meal. Pandavas had the Aksha Patra which enabled them to feed the huge contingent with them.But once Draupadi had her meal for the day, it would not produce food. Durvasa Rishi reached to the place of Yudhishthira during their Vanprashtha with thousands of shishya and asked for food. He went to nearby river to have sacred bath before food with his shishyas.Draupadi had finished her meal for that day and Akshya Patra would not produce food anymore. Draupadi prayed to Krishna to protect them from the anger of Sage Durvasa. Krishna heard the plea and arrived in front of Draupadi. He said, "I'm quite hungry. Please give me some food.Draupadi begged Krishna, instead of assisting me, you are merely adding to my misery. You know there is no food left, and the pot cannot make any more food for the day." Krishna, on the other hand, insisted, "I won't believe it unless I see it for myself. Please bring the vessel.When they peeked into the vessel, they noticed a grain of rice and a little of cooked vegetable stuck to the side. Krishna ate them greedily and with enjoyment. Krishna instructed Bhima to go and inform the sage that food was ready and that he may come with his pupils.When Bhima arrived at the river and delivered the message, the sage remarked, "Bhima, we have already finished our full meals and are really satisfied. We seek Yudhishthira's forgiveness." Durvasa and his disciples then left the site. Pandavas were greatly relieved...............Jay Shree Krishna 🙏

Significance of Darbhtuj (Darbha Grass)

Significance of Darbhtuj (Darbha Grass) ____________________________________________ Darbha Grass or Kusha Grass is scientifically known as Desmostachya Bipinnata, commonly known in English by the names Halfa grass, Big cordgrass, and Salt reed-grass, is an Old World perennial grass, long known and used in human history. 👉 In Ayurveda, Darbha grass is also used as a medicine to treat dysentery, menorrhagia, skin diseases, renal calculi, dysmenorrhea, Anti obesity, Diabetes, Antipyretic, improving breast milk during lactation, and used as a diuretic (to promote free flow of urine). 👉 Since Vedic age, Darbha grass is treated as sacred plant and according to early Buddhist accounts, it was the material used by Buddha for his meditation seat when he attained enlightenment under Bodhi tree. 👉 This grass was mentioned in the Rig Veda for use in sacred ceremonies and also to prepare a seat for priests and the gods. 👉 Darbha or Kusha grass is specifically recommended by Lord Krishna in the Bhagavad Gita as part of the ideal seat for meditation. It is believed to block energy generated during meditation from being dischared through our body (mostly through legs and toes) into ground. 👉 In recent medical research, Darbha or Kusha grass has been observed to block X-Ray radiation. 👉 Darbha is used by hindus as mat, ring on right hand ring finger while chanting vedic mantras in all religious rituals. 👉 For ceremonies related to death only Single leafed Darbha is used; for Auspicious and daily routine a ring made of two leaves is used; for inauspicious but not death related functions, (like Amavasya Tharpanam, Pithru Pooja etc) a three leaf Dharbham ring (Pavitram) is used and for the prayers in a temple, a Four-leaf Darbha ring is used. 👉 Darbha has the highest value in conducting the phonetic vibrations through its tip. Priests in India dip this tip in water and sprinkle all over the house or temple to purify the place. 👉 During Fire-ritual, darbha is placed on all 4 sides of fire to help block all negative radiations. During eclipses, darbha are placed on vessels containing water and food, so that negative effect of rays from eclipse does not spoil them. 👉 Darbha is not cultivated everywhere but it grows naturally in selective places and is available in northeast and west tropical, and northern Africa (in Algeria, Chad, Egypt, Eritrea, Ethiopia, Libya, Mauritania, Somalia, Sudan, and Tunisia); and countries in the Middle East, and temperate and tropical Asia (in Afghanistan, China, India, Iran, Iraq, Israel, Myanmar, Nepal, Pakistan, Saudi Arabia, Thailand). 👉 For religious purposes, it is not cut or plucked on everyday, but only on Krishna Paksha Padyami (Next day after FullMoon day).