श्री
अमरनाथ की पवित्र गुफा में भगवान शंकर ने शिव धाम की प्राप्ति करवाने वाली
परम पवित्र ‘अमर कथा’ भगवती पार्वती को सुनाई थी। जिसके लिए वे इस पवित्र
गुफा में गए, जहां बर्फ से बने शिवलिंग से जुड़ी कथा को सुनाने के लिए माता
पार्वती जी भगवान सदाशिव से कहती हैं, ‘‘प्रभो! मैं अमरेश महादेव की कथा
सुनना चाहती हूं। मैं यह भी जानना चाहती हूं कि महादेव गुफा में स्थित होकर
अमरेश क्यों और कैसे कहलाए?’’
सदाशिव भोलेनाथ माता पार्वती का प्रश्र सुनकर कहने लगे आदिकाल में ब्रह्मा, प्रकृति, अहंकार, स्थावर (पर्वतादि) जंगल (मनुष्य) संसार की उत्पत्ति हुई। इस क्रमानुसार देवता, ऋषि, पितर, गंधर्व, राक्षस, सर्प, यक्ष, भूतगण, कूष्मांड, भैरव, गीदड़, दानव आदि की उत्पत्ति हुई। इस तरह नए प्रकार के भूतों की सृष्टि हुई परंतु इंद्र आदि देवता सहित सभी मृत्यु के वश में थे।
देवता, भगवान सदाशिव के पास आए क्योंकि उन्हें मृत्यु का भय था। भय से त्रस्त सभी देवताओं ने भगवान भोलेनाथ की स्तुति की और कहा हमें मृत्यु बाधा करती है। आप कोई ऐसा उपाय बतलाएं जिससे मृत्यु हम लोगों को बाधा न करे। देवताओं की बात सुनकर भोलेनाथ स्वामी बोले मैं आप लोगों की मृत्यु के भय से रक्षा करूंगा। यह कहते हुए सदाशिव ने अपने सिर पर से चंद्रमा की कला को उतार कर निचोड़ा और देवगणों से बोले, यह आप लोगों के मृत्यु रोग की औषधि है।
उस चंद्रकला के निचोड़ने से पवित्र अमृत की धारा बह निकली और वह धारा बाद में अमरावती नदी के नाम से विख्यात हुई। चंद्रकला को निचोड़ते समय भगवान सदाशिव के शरीर पर जो अमृत बिंदु गिरे वे सूख कर पृथ्वी पर गिर पड़े। पावन गुफा में जो भस्म है वह इसी अमृत बिंदु के कण हैं।
कहते हैं सदाशिव भगवान देवताओं पर प्रेम न्यौछावर करते समय स्वयं द्रवीभूत हो गए। देवगण सदाशिव को जल स्वरूप देखकर उनकी स्तुति में लीन हो गए और बारम्बार नमस्कार करने लगे। भोलेनाथ ने दयायुक्त वाणी से देवताओं से कहा, तुमने मेरा बर्फ का लिंग शरीर इस गुफा में देखा है। इस कारण मेरी कृपा से आप लोगों को मृत्यु का भय नहीं रहेगा। अब तुम यहीं पर अमर होकर शिव रूप को प्राप्त हो जाओ। आज से मेरा यह अनादिलिंग शरीर तीनों लोकों में अमरेश के नाम से विख्यात होगा।
भगवान सदाशिव देवताओं को ऐसा वर देकर उस दिन से लीन होकर गुफा में रहने लगे। भगवान सदाशिव महाराज ने अमृत रूप सोमकला को धारण करके देवताओं की मृत्यु का नाश किया इसलिए तभी से उनका नाम अमरेश्वर प्रसिद्ध हुआ है।
सदाशिव भोलेनाथ माता पार्वती का प्रश्र सुनकर कहने लगे आदिकाल में ब्रह्मा, प्रकृति, अहंकार, स्थावर (पर्वतादि) जंगल (मनुष्य) संसार की उत्पत्ति हुई। इस क्रमानुसार देवता, ऋषि, पितर, गंधर्व, राक्षस, सर्प, यक्ष, भूतगण, कूष्मांड, भैरव, गीदड़, दानव आदि की उत्पत्ति हुई। इस तरह नए प्रकार के भूतों की सृष्टि हुई परंतु इंद्र आदि देवता सहित सभी मृत्यु के वश में थे।
देवता, भगवान सदाशिव के पास आए क्योंकि उन्हें मृत्यु का भय था। भय से त्रस्त सभी देवताओं ने भगवान भोलेनाथ की स्तुति की और कहा हमें मृत्यु बाधा करती है। आप कोई ऐसा उपाय बतलाएं जिससे मृत्यु हम लोगों को बाधा न करे। देवताओं की बात सुनकर भोलेनाथ स्वामी बोले मैं आप लोगों की मृत्यु के भय से रक्षा करूंगा। यह कहते हुए सदाशिव ने अपने सिर पर से चंद्रमा की कला को उतार कर निचोड़ा और देवगणों से बोले, यह आप लोगों के मृत्यु रोग की औषधि है।
उस चंद्रकला के निचोड़ने से पवित्र अमृत की धारा बह निकली और वह धारा बाद में अमरावती नदी के नाम से विख्यात हुई। चंद्रकला को निचोड़ते समय भगवान सदाशिव के शरीर पर जो अमृत बिंदु गिरे वे सूख कर पृथ्वी पर गिर पड़े। पावन गुफा में जो भस्म है वह इसी अमृत बिंदु के कण हैं।
कहते हैं सदाशिव भगवान देवताओं पर प्रेम न्यौछावर करते समय स्वयं द्रवीभूत हो गए। देवगण सदाशिव को जल स्वरूप देखकर उनकी स्तुति में लीन हो गए और बारम्बार नमस्कार करने लगे। भोलेनाथ ने दयायुक्त वाणी से देवताओं से कहा, तुमने मेरा बर्फ का लिंग शरीर इस गुफा में देखा है। इस कारण मेरी कृपा से आप लोगों को मृत्यु का भय नहीं रहेगा। अब तुम यहीं पर अमर होकर शिव रूप को प्राप्त हो जाओ। आज से मेरा यह अनादिलिंग शरीर तीनों लोकों में अमरेश के नाम से विख्यात होगा।
भगवान सदाशिव देवताओं को ऐसा वर देकर उस दिन से लीन होकर गुफा में रहने लगे। भगवान सदाशिव महाराज ने अमृत रूप सोमकला को धारण करके देवताओं की मृत्यु का नाश किया इसलिए तभी से उनका नाम अमरेश्वर प्रसिद्ध हुआ है।
अमरनाथ गुफा में हैं अमर कबूतरों का जोड़ा, दर्शन मात्र से मिलता है पुण्य
धरती का स्वर्ग कही जाने वाली कश्मीर घाटी में स्थित श्री अमरनाथ जी की
पवित्र गुफा में प्रतिवर्ष बर्फ से बनने वाले प्राकृतिक हिमशिवलिंग की पूजा
की जाती है। श्री अमरनाथ की पवित्र गुफा में भगवान शंकर ने शिव धाम की
प्राप्ति करवाने वाली परम पवित्र ‘अमर कथा’ भगवती पार्वती को सुनाई थी।
मान्यता है की अमरनाथ गुफा एक ऐसा स्थान है जहां भगवान शिव माता पार्वती के
साथ कबूतर रूप में निवास करते हैं। इसी पवित्र गुफा में भगवान शिव और माता
पार्वती कई युगों से कबूतर के रूप में विराजमान हैं। इस संदर्भ में कथा यह
है कि एक समय माता पार्वती द्वारा अमर होने की कथा सुनने की जिद्द करने पर
भगवान शिव शंकर पार्वती को लेकर इस स्थान पर आए।
अमरत्व की कथा माता पार्वती के अलावा कोई अन्य न सुन सके इसलिए भगवान शिव
ने मार्ग में अपने गले में सुशोभित नाग, माथे पर सजे हुए चंद्र को उतार कर
रख दिया। इसके बाद पार्वती जी को साथ लेकर गुफा में प्रवेश किया।
शिव जी से अमर होने की कथा सुनते-सुनते माता पार्वती को नींद आ गई। इस
दौरान उस गुफा में कबूतर के दो बच्चों ने जन्म लिया और उसने शिव जी से पूरी
कथा सुन ली। जब शिव जी को इस बात का ज्ञान हुआ कि अमर होने की कथा कबूतरों
ने सुन ली है तब उन्हें मारने के लिए आगे बढ़े।
कबूतरों ने शिव जी से कहा कि अगर आपने हमें मार दिया तो अमर होने की कथा
झूठी साबित हो जाएगी। शिव जी ने तब उन कबूतरों को वरदान दिया कि तुम
युगों-युगों तक इस स्थान पर शिव-पार्वती के प्रतीक बनकर निवास करोगे।
अमरनाथ की गुफा में जिसे भी तुम्हारे दर्शन होंगे उन्हें शिव-पार्वती के
दर्शन का पुण्य मिलेगा।
EDITED BY :ASHOK KOUL

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