Tuesday, April 17, 2018

जानिए गोरखनाथ का रहस्य, इसी संप्रदाय से आते हैं योगी आदित्यनाथ


  

Posted by : vipul Koul and edited by ashok koul
महायोगी गोरखनाथ : माना जाता है कि जितने भी देवी-देवताओं के साबर मंत्र है उन सभी के जन्मदाता श्री गोरखनाथ ही है। नाथ और दसनामी संप्रदाय के लोग जब आपस में मिलते हैं तो एक दूसरे से मिलते वक्त कहते हैं- आदेश और नमो नारायण। की परंपरा की शुरुआत गुरु गोरखनाथ के कारण ही शुरु हुई थी। शंकराचार्य के बाद गुरु गोरखनाथ को भारत का सबसे बड़ा संत माना जाता है। गोरखनाथ की परंपरा में ही आगे चलकर कबीर, गजानन महाराज, रामदेवरा, तेजाजी महाराज, शिरडी के साई आदि संत हुए। माता ज्वालादेवी के स्थान पर तपस्या करने उन्होंने माता को प्रसंन्न कर लिया था।
गोरखनाथ शरीर और मन के साथ नए-नए प्रयोग करते थे। उन्होंने योग के कई नए आसन विकसित किए थे। जनश्रुति अनुसार उन्होंने कई कठिन (आड़े-तिरछे) आसनों का आविष्कार भी किया। उनके अजूबे आसनों को देख लोग अ‍चम्भित हो जाते थे। आगे चलकर कई कहावतें प्रचलन में आईं। जब भी कोई उल्टे-सीधे कार्य करता है तो कहा जाता है कि 'यह क्या गोरखधंधा लगा रखा है।' 
 
गोरखनाथ का मानना था कि सिद्धियों के पार जाकर शून्य समाधि में स्थित होना ही योगी का परम लक्ष्य होना चाहिए। शून्य समाधि अर्थात समाधि से मुक्त हो जाना और उस परम शिव के समान स्वयं को स्थापित कर ब्रह्मलीन हो जाना, जहाँ पर परम शक्ति का अनुभव होता है। हठयोगी कुदरत को चुनौती देकर कुदरत के सारे नियमों से मुक्त हो जाता है और जो अदृश्य कुदरत है, उसे भी लाँघकर परम शुद्ध प्रकाश हो जाता है। 
 
नवनाथ परंपरा : गोरखनाथ के हठयोग की परम्परा को आगे बढ़ाने वाले सिद्ध योगियों में प्रमुख हैं:- चौरंगीनाथ, गोपीनाथ, चुणकरनाथ, भर्तृहरि, जालन्ध्रीपाव ( जालंधर या जालिंदरनाथ) आदि। 13वीं सदी में इन्होंने गोरख वाणी का प्रचार-प्रसार किया था। यह एकेश्वरवाद पर बल देते थे, ब्रह्मवादी थे तथा ईश्वर के साकार रूप के सिवाय शिव के अतिरिक्त कुछ भी सत्य नहीं मानते थे। कुछ लोग नौ नाथ का क्रम ये बताते हैं:- मत्स्येन्द्र, गोरखनाथ, गहिनीनाथ, जालंधर, कृष्णपाद, भर्तृहरि नाथ, रेवणनाथ, नागनाथ और चर्पट नाथ।
 
।।मच्छिंद्र गोरक्ष जालीन्दराच्छ।। कनीफ श्री चर्पट नागनाथ:।।
श्री भर्तरी रेवण गैनिनामान।। नमामि सर्वात नवनाथ सिद्धान।।  
 
गोरखनाथ की परंपरा : नाथ शब्द का अर्थ होता है स्वामी। कुछ लोग मानते हैं कि नाग शब्द ही बिगड़कर नाथ हो गया। भारत में नाथ योगियों की परंपरा बहुत ही प्राचीन रही है। नाथ समाज का एक अभिन्न अंग है। भगवान शंकर को आदिनाथ और दत्तात्रेय को आदिगुरु माना जाता है। इन्हीं से आगे चलकर नौ नाथ और 84 नाथ सिद्धों की परंपरा शुरू हुई। आपने अमरनाथ, केदारनाथ, बद्रीनाथ आदि कई तीर्थस्थलों के नाम सुने होंगे। आपने भोलेनाथ, भैरवनाथ आदि नाम भी सुने ही होंगे। साईनाथ बाबा (शिरडी) भी नाथ योगियों की परंपरा से थे। गोगादेव, बाबा रामदेव आदि संत भी इसी परंपरा से थे। तिब्बत के सिद्ध भी नाथ परंपरा से ही थे।
 
नौ नाथों की परंपरा से 84 नाथ हुए। नौ नाथों के संबंध में विद्वानों में मतभेद हैं। सभी नाथ साधुओं का मुख्‍य स्थान हिमालय की गुफाओं में है। नागा बाबा, नाथ बाबा और सभी कमंडल, चिमटा धारण किए हुए जटाधारी बाबा शैव और शाक्त संप्रदाय के अनुयायी हैं, लेकिन गुरु दत्तात्रेय के काल में वैष्णव, शैव और शाक्त संप्रदाओं का समन्वय किया गया था। की एक शाखा जैन धर्म में है तो दूसरी शाखा बौद्ध धर्म में भी मिल जाएगी। यदि गौर से देखा जाए तो इन्हीं के कारण इस्लाम में सूफीवाद की शुरुआत हुई।
 
सिद्धों की भोग-प्रधान योग-साधना की प्रतिक्रिया के रूप में आदिकाल में नाथपंथियों की हठयोग साधना आरम्भ हुई। इस पंथ को चलाने वाले (मछंदरनाथ) तथा गोरखनाथ (गोरक्षनाथ) माने जाते हैं। इस पंथ के साधक लोगों को योगी, अवधूत, सिद्ध, औघड़ कहा जाता है। कहा यह भी जाता है कि सिद्धमत और नाथमत एक ही हैं। गुरु और शिष्य दोनों ही को 84 सिद्धों में प्रमुख माना जाता है। दोनों गुरु और शिष्य को तिब्बती बौद्ध धर्म में महासिद्धों के रुप में जाना जाता है।
 
नाथ परम्परा की शुरुआत बहुत प्राचीन रही है, किंतु गोरखनाथ से इस परम्परा को सुव्यवस्थित विस्तार मिला। गोरखनाथ ने इस सम्प्रदाय के बिखराव और इस सम्प्रदाय की योग विद्याओं का एकत्रीकरण किया। पूर्व में इस समप्रदाय का विस्तार असम और उसके आसपास के इलाकों में ही ज्यादा रहा, बाद में समूचे प्राचीन भारत में इनके योग मठ स्थापित हुए। आगे चलकर यह सम्प्रदाय भी कई भागों में विभक्त होता चला गया। गोरखनाथ से पहले अनेक सम्प्रदाय थे, जिनका नाथ सम्प्रदाय में विलय हो गया। शैव एवं शाक्तों के अतिरिक्त बौद्ध, जैन तथा वैष्णव योग मार्गी भी उनके सम्प्रदाय में आ मिले थे।
 
भारत के 84 सिद्धों की परंपरा में से एक थे गुरु गोरखनाथ जिनका नेपाल से घनिष्ठ संबंध रहा है। नेपाल नरेश महेन्द्रदेव उनके शिष्य हो गए थे। उस काल में नेपाल के एक समूचे क्षेत्र को 'गोरखा राज्य' इसलिए कहा जाता था कि गोरखनाथ वहां डेरा डाले हुए थे। वहीं की जनता आगे चलकर 'गोरखा जाति' की कहलाई। यहीं से गोरखनाथ के हजारों शिष्यों ने विश्वभर में घूम-घूमकर धूना स्थान निर्मित किए। इन्हीं शिष्यों से नाथों की अनेकानेक शाखाएं हो गईं।
 
नाथ संप्रदाय के प्रवर्तक गोरक्षनाथजी के बारे में लिखित उल्लेख हमारे पुराणों में भी मिलते हैं। विभिन्न पुराणों में इससे संबंधित कथाएं मिलती हैं। इसके साथ ही साथ बहुत-सी पारंपरिक कथाएं और किंवदंतियां भी समाज में प्रसारित हैं। उत्तरप्रदेश, उत्तरांचल, बंगाल, पश्चिमी भारत, सिन्ध तथा पंजाब में और भारत के बाहर नेपाल में भी ये कथाएं प्रचलित हैं। काबुल, गांधार, सिन्ध, बलोचिस्तान, कच्छ और अन्य देशों तथा प्रांतों में यहां तक कि मक्का-मदीना तक श्री ने दीक्षा दी थी और नाथ परंपरा को विस्तार दिया था।
 
गोरखनाथ का साहित्य : गोरखनाथ नाथ साहित्य के आरम्भकर्ता माने जाते हैं। गोरखपंथी साहित्य के अनुसार आदिनाथ स्वयं भगवान शिव को माना जाता है। शिव की परम्परा को सही रूप में आगे बढ़ाने वाले गुरु मत्स्येन्द्रनाथ हुए। ऐसा नाथ सम्प्रदाय में माना जाता है। गोरखनाथ ने अपनी रचनाओं तथा साधना में योग के अंग क्रिया-योग अर्थात तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणीधान को अधिक महत्व दिया है। इनके माध्‍यम से ही उन्होंने हठयोग का उपदेश दिया।

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