Friday, June 22, 2018

ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात्…

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ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् , पूर्ण मुदच्यते, 
पूर्णस्य पूर्णमादाय, पूर्ण मेवा वशिष्यते। 
ॐ शांति: शांति: शांतिः 

वह जो दिखाई नहीं देता है, वह अनंत और पूर्ण है। यह दृश्यमान जगत भी अनंत है। उस अनंत से विश्व बहिर्गत हुआ। यह अनंत विश्व उस अनंत से बहिर्गत होने पर भी अनंत ही रह गया।


मन्त्र का अर्थ: ऋषिकेश से दूर जंगल में एक योगी रहते थे। वहां उस समय मात्र ५-७ लोग ही थे। जंगल होने के कारण शेर, भालू और हाथी प्राय: आ जाते थे। एक शिष्य योगाभ्यासी प्रति दिन सूर्योदय के पहले ही गुरूजी के नदी में स्नान करने के पहले एक पेड़ से दातुन तोड़ कर मुंह धो लेते थे। योगी काफी वृद्ध हो चले थे।

शिष्य गुरूजी के दातुन के लिए वृक्ष पर चढ़ने लगे। उस पेड़ पर एक मधुमख्खी का छत्ता था। शिष्य ने चिल्ला कर गुरूजी को पेड़ से दूर जाने का आग्रह करते हुए कहा की दूर चले जाइये, नहीं तो मखियाँ काटेंगी। दूर जाना तो दूर रहा योगी मख्खी के पास जा कर कुछ बोलने लगे। शिष्य दातुन तोड़ कर पास आया, देखा की मख्खियाँ शांत हो कर दूर चली गयी थी।

शिष्य ने पूछा की गुरूजी आप मधुमख्खियों से कैसे बच गएँ। कौन सा मन्त्र आपने पढ़ा। मुझे भी बताईए। 
गुरूजी बोलें की पेड़ पर चढो और चढते रहो फिर मंत्रोंपदेश करूँगा। तब शिष्य पेढ पर चढने लगा। गुरूजी ने मंत्रोपदेश देना प्रारंभ करने लगे. . .  ” अंतरात्मा से में योग क्रिया कर रहा हूँ, हे मधुमखियौं मैं तुम्हारा कोई अहित नहीं करूँगा। तूम भी मेरा अपकार नहीं करना।”  

शिष्य ने कहा की यह तो मन्त्र नहीं है। गुरूजी ने कहा कि तुम निष्कपट यह बात मधुमख्खियों से धीरे से बोलो। हृदय की भाषा वे समझतीं है। केवल दिल खोल कर वार्तालाप करो। 

शिष्य ने ऐसा ही किया. . .  आश्चर्य की मधुमखियों ने उसकी भाषा को समझते हुए कोई अपकार नहीं किया, शांत थीं।

उनके तथा हमारे में एक ही आत्मा का निवास है, इसे जानना चाहिए। भलाई की बात सोचना ही महा मन्त्र है। नकारात्मक सोच हम न सोचें, तो सदैव हमारा मन्त्र फलीभूत होगा।
इसी प्रकार के मंत्रोच्चारण से दैव उपासना करने का प्रयत्न प्रत्येक साधक को करना चाहिए।./


POSTED BY VIPUL KOUL

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