शासन की मनमानी से आक्रोशित लकड़ी विक्रेताओं ने शवों को जलाने के लिए लकड़ी देना बंद कर दिया तो डोमराजा का भी साथ मिलने से चिता के लिए आग नहीं मिली। ऐसे में शवों की लाइन लग गई और दूर दराज से शवदाह के लिए आए लोग परेशान रहे। मामले का हल नहीं निकलते देख लोग शवों को हरिश्चंद्र घाट ले गए।
मोक्ष नगरी काशी के महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर शनिवार को शवदाह बंद हो जाने से हड़कंप मचा है। प्रशासन की कार्रवाई के विरोध में लकड़ी विक्रेता जहां हड़ताल पर चले गए हैं, वहीं डोमराजा ने चिता जलाने के आग देने से इनकार कर दिया है। ऐसा पहली बार हुआ है जब महाशमशान पर चिताएं जलाने पर रोक लगी है।
काशी विश्वनाथ मंदिर विस्तारीकरण के तहत बनने वाले विश्वनाथ धाम में मणिकर्णिका घाट के आसपास की काफी आबादी वाले एरिया को भी शामिल किया गया है। घाट के पास स्थित लकड़ी की टालें भी धाम की जद में हैं। शनिवार दोपहर विश्वनाथ मंदिर के सीईओ विशाल सिंह, नगर निगम और जिला प्रशासन के अधिकारी फोर्स के साथ घाट पर पहुंचे और अवैध कब्जा बता लकड़ी की टालों को हटाने लगे। लकड़ी विक्रेताओं ने एकजुट होकर विरोध किया, लेकिन भारी फोर्स के सामने किसी की एक न चली। लकड़ी हटवाकर भवन को ध्वस्त करने का काम रात तक चलता रहा।
उधर, प्रशासन की मनमानी से आक्रोशित लकड़ी विक्रेताओं ने शवों को जलाने के लिए लकड़ी देना बंद कर दिया तो डोमराजा का भी साथ मिलने से चिता के लिए आग नहीं मिली। ऐसे में शवों की लाइन लग गई और दूर दराज से शवदाह के लिए आए लोग परेशान रहे। मामले का हल नहीं निकलते देख लोग शवों को हरिश्चंद्र घाट ले गए।
नजूल की जमीन को लेकर विवाद
मणिकर्णिका घाट के पास स्थित जिस जमीन से कब्जा हटाया जा रहा है, उसे नगर निगम ने नजूल की जमीन बताया है। सूत्रों के मुताबिक नगर निगम ने यह जमीन पट्टे पर लकड़ी विक्रेताओं को दी थी। बगैर किसी सूचना और पक्ष को सुने पट्टा निरस्त कर दिया गया।
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