यह मंदिर न होता तो कुछ और ही होता 1965 भारत-पाक युद्ध का परिणाम
यह मंदिर न होता तो कुछ और ही होता 1965 भारत-पाक युद्ध का परिणाम
जोधपुर। राजस्थान की धरती पर अनेक सांस्कृतिक रंग पग-पग पर नजर आते हैं।
वीर सपूतों की इस धरती पर धर्म और अध्यात्म के भी कई रंग दिखाई देते हैं।
कहीं बुलट वाले बाबा की पूजा होती है तो कहीं तलवारों के साये में मां की
आरती की जाती है। dainikbhaskar.com धर्म-यात्रा सीरीज में आज हम एक ऐसे
मंदिर के बारे में बता रहे हैं, जिसने 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में
भारत की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
1947 में भारत को
अंग्रेजों के चंगुल से आजादी तो मिली, लेकिन साथ में बंटवारे का दर्द भी
मिला। बंटवारा होते ही पाकिस्तान ने भारत पर अपने बुरी नजरें गड़ा दी।
बंटवारे के तुरंत बाद ही कश्मीर में घुसपैठ हुई। पाकिस्तान को बुरी तरह हार
मिली। लेकिन पाकिस्तान के नापाक इरादे खत्म नहीं हुए।1965 में उसने दोबारा
भारत पर हमला किया।
इस युद्ध में भी भारत को जीत मिली। इस
युद्ध के दौरान हुई एक घटना ने साबित किया कि मां के द्वार पर भक्तों को
रक्षा खुद मां करती हैं। जैसलमेर से करीब 130 किमी दूर यह मंदिर यहां के
निवासियों के लिए हमेशा से पूजनीय रहा है, परंतु 1965 को भारत-पाक युद्ध के
दौरान जो चमत्कार देवी ने दिखाए, उसके बाद तो भारतीय सैनिकों और सीमा
सुरक्षा बल के जवानों की श्रद्धा का विशेष केंद्र बन गई।
सितंबर 1965
में पाकिस्तान ने अचानक भारत पर हमला कर दिया। इस हमले के लिए भारत तैयार
नहीं था। उसे शुरुआत में भारी नुकसान हुआ। राजस्थान के जैसलमेर बार्डर पर
भी भीषण युद्ध चल रहा था। पाकिस्तानी सेना ने तनोट पर आक्रमण से पहले पूर्व
में किशनगढ़ से 74 किमी दूर बुइली तक पश्चिम में साधेवाला से शाहगढ़ और
उत्तर में अछरी टीबा से 6 किमी दूर तक कब्जा कर लिया था। तनोट तीन दिशाओं
से घिरा हुआ था।
यदि शत्रु तनोट पर कब्जा कर लेता तो वह रामगढ़
से लेकर शाहगढ़ तक के इलाके पर अपना दावा कर सकता था। अत: तनोट पर अधिकार
जमाना दोनों सेनाओं के लिए महत्वपूर्ण बन गया था। भारतीय सैनिक तीन ओर से
घिरे हुए पूरी हिम्मत के साथ दुश्मनों का सामना कर रहे थे। दुश्मन की तोपें
आग उगल रही थीं। मेजर जय सिंह के कमांड में 13 ग्रेनेडियर की एक कंपनी और
सीमा सुरक्षा बल की दो कंपनियां दुश्मन की पूरी ब्रिगेड का सामना कर रही
थी।
शत्रु ने जैसलमेर से तनोट जाने वाले मार्ग को घंटाली देवी के
मंदिर के समीप एंटी पर्सनल और एंटी टैंक माइन्स लगाकर सप्लाई चेन को काट
दिया था। इसके बाद शुरू हुई तनोट माता मंदिर को ध्वस्त करने के लिए बारूद
की बारिश।
पाकिस्तानी सेना ने मंदिर के आसपास के क्षेत्र में करीब 3
हजार गोले बरसाये, पंरतु अधिकांश गोले अपने निर्धारित स्थान पर नहीं गिरे।
अकेले मंदिर को निशाना बनाकर करीब 450 गोले दागे गए, परंतु चमत्कारी रूप से
एक भी गोला अपने निशाने पर नहीं लगा और मंदिर परिसर में गिरे गोलों में से
एक भी नहीं फटा। ये गोले आज भी मंदिर परिसर में रखे हुए हैं।ये चमत्कार
देखने के बाद भारतीय सेना के जवान अभिभूत हो गए और दोगुने उत्साह के साथ
लड़ना शुरू किया। कम संख्या में होने के बाद भी दुश्मनों के छक्के छुड़ा
दिए। पाकिस्तानी सेना के पैर उखड़ गए। उसे भागने के लिए मजबूर होना पड़ा
कहते हैं कि सैनिकों को माता ने स्वप्न में आकर कहा था कि जब तक तुम मेरे
मंदिर के परिसर में हो, मैं तुम्हारी रक्षा करूंगी। 1965 के युद्ध के बाद
सीमा सुरक्षा बल ने यहां अपनी चौकी स्थापित कर इस मंदिर की पूजा-अर्चना व
व्यवस्था की जिम्मेदारी संभाली। वर्तमान में मंदिर का प्रबंधन और संचालन
सीमा सुरक्षा बल के एक ट्रस्ट द्वारा किया जा रहा है। मंदिर में एक छोटा
संग्रहालय भी है, जहां पाकिस्तान सेना द्वारा मंदिर परिसर में गिराए गए वे
बम रखे हैं जो नहीं फटे थे।
ये हैं राजेश कुमार मिश्रा जो तनोट माता मंदिर में पुजारी का हैं। मिश्रा मूलत: बीएसएफ के जवान हैं।
तनोट माता के इस मंदिर के बारे में एक प्राचीन कहानी भी प्रचलित है। उसके बारे में हम आपको धर्म-यात्रा की अगली कड़ी में बताएंगे
यह मंदिर न होता तो कुछ और ही होता 1965 भारत-पाक युद्ध का परिणाम
POSTED BY; VIPUL KOUL EDITED BY ; ASHOK KOUL
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