चातुर्मास में भगवान विष्णु योगनिद्रा में लीन रहते हैं. इस अवधि में हमें भी भगवान विष्णु जी की तरह संयम का अभ्यास करना चाहिए. गौरतलब है कि इस अवधि में अपनी प्रिय वस्तु के त्याग का विधान ऋषि-मुनियों ने मनुष्य को संयम का अभ्यास कराने के उद्देश्य से ही बनाया था. ऋषि-मुनि अच्छी तरह से जानते थे कि संयम के बिना व्यक्ति अपने मन का गुलाम हो जाता है.
अगर समझा जाए तो आज हमारे दुखों की मुख्य वजह भी यही है कि हमारा अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण नहीं रह गया है.
संयम के अंकुश से ही मन सदा सही राह पर चलता है फिर चाहे कैसी भी परिस्थिति हो या फिर कैसी भी मजबूरी. पुराण की एक कथा के अनुसार महर्षि भृगु ने त्रिदेवों (ब्रम्हा, विष्णु और महेश) की जब परीक्षा ली तो उसमे से सबसे ज़्यादा संयमित भगवान विष्णु ही निकले. भगवान विष्णु को चातुर्मास में अगर हम गुरु मानकर उनसे संयम की शिक्षा लें तो इससे हमारी साधना भी पूर्ण होगी व चातुर्मास का अनुष्ठान भी फलीभूत होगा.
सनातन धर्म में माना जाता है कि संपूर्ण विश्व के पालनकर्ता भगवान विष्णु हर साल आषाढ़ मास के शुक्लपक्ष की एकादशी की रात्रि में चार मास के लिए योगनिद्रा में लीन होते हैं. देखा जाए तो ये उनकी संयम की महासाधना ही है. वहीं, इस तिथि को देवशयनी एकादशी कहा जाता है. इन चार माह में योगनिद्रालीन रहने के बाद कार्तिक माह के शुक्लपक्ष की एकादशी को प्रातः भगवान विष्णु जागते हैं जिससे ये तिथि श्रीहरि-प्रबोधिनी (देवोत्थान) एकादशी के नाम से जानी जाती है. ज्ञात हो, इन तिथियों के मध्य की चार माह की अवधि को ‘चातुर्मास’ कहा जाता है.
धर्मग्रंथों में चातुर्मास में विवाह, मुंडन, नवगृह-प्रवेश आदि शुभ कार्यों को न करने की बात कही गई है. इसके पीछे का कारण ये है कि हर मांगलिक कार्य में भगवान विष्णु को साक्षी मानकर संकल्प लिया जाता है. चूकीं चातुर्मास में भगवान विष्णु योगनिद्रालीन रहते हैं तो उनका आवाहन करने का मतलब होगा उनकी योगनिद्रा को भंग करना. माना जाता है कि श्रीहरि ये समाधि लोक कल्याण हेतु तथा लोगों को संयम की शिक्षा देने के लिए लेते हैं.
आज की इस भागदौड़ में खप रहे मनुष्यों के लिए ज़रूरी है कि उन्हें संयम का सही अर्थों में ज्ञान हो और वे समझ पाएं कि संयम संजीवनी बूटी की तरह है. इस भौतिक संसार में हम भूल बैठे हैं कि हम कौन हैं? हम इस संसार में क्या करने आए हैं? इन सब सवालों का जवाब हमें अपने अंतःकरण में संयम के द्वारा मिल सकता है .
सफलता की राह में हमारी ज्यादातार समस्याओं का मूल कारण हमारा असंयमित रहना ही है.
संयम से दूर होते ही मन पागल हाथी की तरह विचरने लग जाता है जो अनुशासनहीन होकर कई गलतियां कर देता है जिससे बाद में हमें अफसोस होता है. श्री-हरि का ध्यान करने से हमारे जीवन में संयम आता है. श्री-हरि के इस योगनिद्राकाल (चातुर्मास) का बड़ा आध्यात्मिक महत्व होता है व जीवन में सफलता के लिए भी संयम सर्वाधिक महत्वपूर्ण है.
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