वो 4 मुस्लिम जो जबर कृष्ण भक्त थे
समाज में धर्म को आधार बनाकर कट्टरता बढ़ाने वाले लोग अब भी बने
हुए हैं. धर्म समाज को बांटने और राजनीतिक फायदे उठाने का जरिया बना हुआ
है. पर इसी हिंदुस्तान में एक वक्त ऐसा भी था कि सभी धर्म आपस में गलबहियां
डाले इंसान की मुसीबतों और परेशानियों के हल को तैयार रहते थे. यहां उन 4
मुस्लिम कवियों और शायरों के बारे में जानिए, जिनके लिए हर मजहब की उतनी ही
इज्जत थी. वो अपनी इस खूबी के लिए जाने जाते हैं कि वो उन धर्मों की
खूबसूरती निखार कर साधारण जानता के सामने लाए.
यहां लाम माने उर्दू का एक हर्फ यानी अक्षर है जो कुछ-कुछ उल्टे 9 सा दिखता है.
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रसखान
रसखान का असली नाम सैयद इब्राहिम था. रसखान तो उनका पेननेम हुआ करता था. रसखान यानी रस की खान. कृष्ण के एकदम पक्के वाले भक्त थे. कहा जाता है कि रसखान ने भागवत का अनुवाद फारसी में किया था. रसखान ने एक जगह पर लिखा है कि तमाम गदर यानी लड़ाइयों के कारण दिल्ली बर्बाद हो गई थी पर वो ब्रज यानी मथुरा चले आए थे.आलम
आलम कवि तो सच्चे थे ही, उससे भी सच्चे प्रेमी थे. शेख नाम की एक रंगरेजिन से प्यार था. इतना सच्चा प्यार था कि शेख ने अपना मजहब छोड़ा और मुसलमान हो गए. आलम थे दरबारी कवि और औरंगजेब के बाद बादशाह बने बहादुरशाह प्रथम के दरबार में रहते थे. कहा जाता है कि आलम के साथ शेख भी कविताएं लिखती थी और उसकी कई लाइनें आलम की कविताओं में शामिल हैं.नजीर अकबराबादी
18वीं सदी का इंडियन शायर. आगरा के नवाब सुल्तान खान का नवासा. एकदम सीधी-सादी, सरल शायरी लिखने वाला अवाम का शायर. अपनी नज्मों के लिए वो जाने जाते हैं. उनको उर्दू नज्मों का पापा भी कहा जाता है. बहुत जाने-माने शायर थे अपने वक्त के. फिर भी कभी दरबारी शायर नहीं रहे. उनकी सारी नज्में अवाम की नज्में थीं. उनकी कविताओं और पर्सनालिटी में कभी जटिलता और उस वक़्त के ‘बड़े लोगों’ का दिखावा नहीं रहा, जिसकी वजह से इस जीनियस का टैलेंट पहचानने में लोगों को बहुत टाइम लग गया. बंजारानामा, कलजुग नहीं करजुग है ये और आदमीनामा जैसी कविताएं हमारे वक्त के लिए खजाने जैसी हैं.मुसाहिब लखनवी
मुसाहिब साहब का ये एक शेर ही मुसाहिब की शायरी का स्टेटस दिखाने के लिए काफी है.यहां लाम माने उर्दू का एक हर्फ यानी अक्षर है जो कुछ-कुछ उल्टे 9 सा दिखता है.
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POSTED BY : VIPUL KOUL
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