Wednesday, April 24, 2024

इस अध्याय में:- वैशाख मास की श्रेष्ठता; उसमें जल, व्यजन, छत्र, पादुका और अन्न आदि दानों की महिमा

 

अध्याय–01
इस अध्याय में:- वैशाख मास की श्रेष्ठता; उसमें जल, व्यजन, छत्र, पादुका और अन्न आदि दानों की महिमा
नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम्।
देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत्॥
'भगवान् नारायण, नरश्रेष्ठ नर, देवी सरस्वती तथा महर्षि वेदव्यास को नमस्कार करके भगवान् की विजय-कथा से परिपूर्ण इतिहास-पुराण आदि का पाठ करना चाहिये।

सूतजी कहते हैं–“राजा अम्बरीष ने परमेष्ठी ब्रह्मा के पुत्र देवर्षि नारद से पुण्यमय वैशाख मास का माहात्म्य इस प्रकार पूछा–‘ब्रह्मन्! मैंने आपसे सभी महीनों का माहात्म्य सुना। उस समय आपने यह कहा था कि सब महीनों में वैशाख मास श्रेष्ठ है। इसलिये यह बताने की कृपा करें कि वैशाख-मास क्यों भगवान् विष्णु को प्रिय है और उस समय कौन-कौन-से धर्म भगवान् विष्णु के लिये प्रीतिकारक हैं ?’ ‘श्रीजी की चरण सेवा‘की सभी धार्मिक, आध्यात्मिक एवं धारावाहिक पोस्टों के लिये हमारे पेज से जुड़े रहें तथा अपने सभी भगवत्प्रेमी मित्रों को भी आमंत्रित करें।
नारदजी ने कहा–‘वैशाख मास को ब्रह्माजी ने सब मासों में उत्तम सिद्ध किया है वह माता की भाँति सब जीवों को सदा अभीष्ट वस्तु प्रदान करने वाला है। धर्म, यज्ञ, क्रिया और तपस्या का सार है। सम्पूर्ण देवताओं द्वारा पूजित है।
जैसे विद्याओं में वेद-विद्या, मन्त्रों में प्रणव, वृक्षों में कल्पवृक्ष, धेनुओं में कामधेनु, देवताओं में विष्णु, वर्णों में ब्राह्मण, प्रिय वस्तुओं में प्राण, नदियों में गंगाजी, तेजों में सूर्य, अस्त्र शम्तरों में चक्र, धातुओं में सुवर्ण, वैष्णवों में शिव तथा रत्नों में कौस्तुभमणि है, उसी प्रकार धमक साधन भूत महीनों में वैशाख मास सबसे उत्तम है। संसार में इसके समान भगवान् विष्णु को प्रसन्न करने वाला दूसरा कोई मास नहीं है।
जो वैशाख मास में सूर्योदय से पहले स्नान करता है, उससे भगवान् विष्णु निरन्तर प्रीति करते हैं । पाप तभी तक गर्जते हैं, जब तक जीव वैशाख मास में प्रात:काल जल में स्नान नहीं करता।
राजन्! वैशाख के महीने में सब तीर्थ आदि देवता (तीर्थ के अतिरिक्त) बाहर के जल में भी सदैव स्थित रहते हैं। भगवान् विष्णु की आज्ञा से मनुष्यों का कल्याण करने के लिये वे सूर्योदय से लेकर छ: दण्ड के भीतर तक वहाँ मौजूद रहते हैं।
वैशाख के समान कोई मास नहीं है, सत्ययुग के समान कोई युग नहीं है, वेद के समान कोई शास्त्र नहीं है और गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं है। जल के समान दान नहीं है, खेती के समान धन नहीं है और जीवन से बढ़कर कोई लाभ नहीं है। उपवास के समान कोई तप नहीं, दान से बढ़कर कोई सुख नहीं, दया के समान धर्म नहीं, धर्म के समान मित्र नहीं, सत्य के समान यश नहीं, आरोग्य के समान उन्नति नहीं, भगवान् विष्णु से बढ़कर कोई रक्षक नहीं और वैशाख मास के समान संसार में कोई पवित्र मास नहीं है। ऐसा विद्वान् पुरुषों का मत है। ‘श्रीजी की चरण सेवा‘की सभी धार्मिक, आध्यात्मिक एवं धारावाहिक पोस्टों के लिये हमारे पेज से जुड़े रहें तथा अपने सभी भगवत्प्रेमी मित्रों को भी आमंत्रित करें।
वैशाख श्रेष्ठ मास है। और शेषशायी भगवान् विष्णु को सदा प्रिय है। सब दानों से जो पुण्य होता है और सब तीर्थो में जो फल होता है, उसी को वैशाख मास में मनुष्य केवल जलदान करके प्राप्त कर लेता है। जो जलदान में असमर्थ है, ऐसे ऐश्वर्य की अभिलाषा रखने वाले पुरुष को उचित है कि वह दूसरे को प्रबोध करे, दूसरे को जलदान का महत्त्व समझावे। यह सब दानों से बढ़कर हितकारी है।
जो मनुष्य वैशाख में सड़क पर यात्रियों के लिये प्याऊ लगाता है, वह विष्णुलोक में प्रतिष्ठित होता है। नृपश्रेष्ठ ! प्रपादान (पौंसला या प्याऊ) देवताओं, पितरों तथा ऋषियों को अत्यन्त प्रीति देने वाला है। जिसने प्याऊ लगाकर रास्ते के थके-माँदै मनुष्यों को सन्तुष्ट किया है, उसने ब्रह्मा, विष्णु और शिव आदि देवताओं को सन्तुष्ट कर लिया है।
राजन् ! वैशाख मास में जल की इच्छा रखने वाले को जल, छाया चाहने वाले को छाता और पंखे की इच्छा रखने वाले को पंखा देना चाहिये। राजेन्द्र! जो प्यास से पीड़ित महात्मा पुरुष के लिये शीतल जल प्रदान करता है, वह उतने ही मात्र से दस हजार राजसूय यज्ञों का फल पाता है।
धूप और परिश्रम से पीड़ित ब्राह्मण को जो पंखा डुलाकर हवा करता है, वह उतने ही मात्र से निष्पाप होकर भगवान् का पार्षद हो जाता है। जो मार्ग से थके हुए श्रेष्ठ द्विज को वस्त्र से भी हवा करता है, वह उतने से ही मुक्त हो भगवान् विष्णु का सायुज्य प्राप्त कर लेता है। जो शुद्ध चित्त से ताड़ का पंखा देता है, वह सब पापों का नाश करके ब्रह्मलोक को जाता है। ‘श्रीजी की चरण सेवा‘की सभी धार्मिक, आध्यात्मिक एवं धारावाहिक पोस्टों के लिये हमारे पेज से जुड़े रहें तथा अपने सभी भगवत्प्रेमी मित्रों को भी आमंत्रित करें।
जो विष्णुप्रिय वैशाख मास में पादुका दान करता है, वह यमदूतों का तिरस्कार करके विष्णुलोक में जाता है। जो मार्ग में अनाथों के ठहरने लिये विश्रामशाला बनवाता है, उसके पुण्य-फल का वर्णन किया नहीं जा सकता।
मध्याह्न में आये हुए ब्राह्मण अतिथि को यदि कोई भोजन दे, तो उसके फल का अन्त नहीं है। राजन्! अन्नदान मनुष्यों को तत्काल तृप्त करने वाला है, इसलिये संसार में अन्न के समान कोई दान नहीं है। जो मनुष्य मार्ग के थके हुए ब्राह्मण के लिये आश्रय देता है, उसके पुण्यफल का वर्णन किया नहीं जा सकता।
भूपाल! जो अन्नदाता है, वह माता-पिता आदि का भी विस्मरण करा देता है। इसलिये तीनों लोकों के निवासी अन्नदान की ही प्रशंसा करते हैं। माता और पिता केवल जन्म के हेतु पर जो अन्न देकर पालन करता है, मनीषी पुरुष इस लोक में उसी को पिता कहते हैं।
----------:::×:::----------
"जय जय श्री हरि"
 
|| ॐ श्रीपरमात्मने नमः||
--- :: x :: ---
“कल्याणकारी संतवाणी”
{ब्रह्मलीन श्रद्धेयस्वामीरामसुखदासजी महाराज}
“ईश्वरका स्मरण”
--- :: x :: ---
* सब जगह भगवान् को देखो और उनको याद करो कि ‘हे नाथ! मैं आपको भूलूँ नहीं’ |
आप पापी या पुण्यात्मा कैसे ही क्यों न हों, केवल भगवान् को याद- मात्र करनेसे शान्ति मिल जायगी | {नये रास्ते० ७०}
नारायण! नारायण! नारायण! नारायण!
--- :: x :: --- --- :: x :: --- --- :: x :: ---
{गीताप्रेस गोरखपुरसे प्रकाशित पुस्तक ‘कल्याणकारी संतवाणी’ से क्रमांक-४८}

No comments:

Post a Comment