Friday, July 25, 2025
नाथ अनूठो दास निरालो यहु सम्बन्ध अनोखो।
अकथ कहत बहु इच्छा अढ़वत फल नित पावत चोखो।।
पद सेवन को जाय अनेरे उर करि राखे धामा।
जब चाहत चखु मूंदि निहारत हिय बंधि राखे रामा।।
होइहीं कोसल नाथ अवधपति हमरे हृदय दुलारे।
बसे रहत पलकन पट मूंदे लोचन पटल हमारे।।
नहिं कोउ भोग नैवेद्य न मांगत सूधो नित मुसकाते।
बैठि नयनजल चरन पखारउं प्रभु पद मधु मदमाते।।
गहि दोउ चरन अंजली बांधे पद नख नैन लगाई।
राम पदाम्बुज नैन बसाये अब को परै दिखाई।।
उर आसन पद स्यामल सुन्दर अगम अलख बिठलाये।
नहिं कोउ इच्छा जतन हिये मम राम हि राम दिखाये।।
कसि कसि बांधे नेह रज्जु अस छूटि न सकत गुसाईं।
बनि बन्दी उर पुर नित वासौ सीता संग रघुराई।।
श्री हरि ॐ
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