Tuesday, August 12, 2025
भाईजी : पावन स्मरण
श्रद्धार्चन - भाईजी : पावन स्मरण - *भाईजी के परलोकगमन से अत्यंत दुःख हुआ। धर्ममार्ग पर चलने वालों का प्रेरक और पथ - प्रदर्शक सूर्य अस्त हो गया। मेरे तो वे परम आत्मीय थे और मुझपर बड़ी कृपा रखते थे।श्रीभाईजी के स्नेह की अलौकिक छत्रछाया बहुत दूर से भी सांसारिक तापों के कष्ट को सुसह्य बना देती थी। उनके बिना मैं अपने को अत्यंत निराधार अनुभव कर रहा हूंँ। परमात्मा के सतत स्मरण का उनका आदेश ही अब तो एकमात्र सम्बल रह गया है।* विरदीचन्द पोद्दार, नागपुर
|| ॐ सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः ||
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“विविधदेवस्तोत्राणि”
{गङ्गाष्टकम्}
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पोस्ट—४
काकैर्निष्कुषितं श्वभिः कवलितं गोमायुभिर्लुण्ठतं
स्त्रोतोभिश्चलितं तटाम्बुलुलितं वीचीभिरान्दोलितम् |
दिव्यस्त्रीकरचारुचामरमरुत्संवीज्यमानः कदा
द्रक्ष्येऽहं परमेश्वरि त्रिपथगे भागीरथि स्वं वपुः || ४ ||
हे परमेश्वरि! हे त्रिपथगे! हे भागीरथि! {मरनेके अनन्तर} देवाङ्गनाओं के करकमलोंमें सुशोभित सुन्दर चमरोंकी हवासे सेवित हुआ मैं अपने मृत शरीरको काकोंसे कुरेदा जाता हुआ, कुत्तोंसे भक्षित होता हुआ, गीदड़ोंसे लुण्ठित होता हुआ, तुम्हारे स्त्रोतमें पड़कर बहता हुआ, कभी किनारेके स्वल्प जलमें हिलता हुआ और फिर तरङ्गभङ्गियोंसे आन्दोलित होता हुआ कब देखूँगा |
हरिःशरणम् ! हरिःशरणम् ! हरिःशरणम् ! हरिःशरणम् !
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{गीताप्रेस गोरखपुरसे प्रकाशित पुस्तक स्तोत्ररत्नावली से “विविधदेव- स्तोत्राणि”}
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