Wednesday, August 6, 2025
ोक जागरण
ल (अंक -१)
" Arise , awake and stop not till the goal is reached. " - Swami Vivekanand
" उठो , जागो और तब तक नहीं रुको, जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाय। "। - स्वामी विवेकानंद
उनके इस संदेश का आधार कठोपनिषद का वह मंत्र है , जिसके अंतर्गत नचिकेता को निमित्त बनाकर यमराज जी समस्त मनुष्यों को उद्बोधन करते हुए कहते हैं -
" उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।"
अर्थात् उठो ! जागो यानी सचेत हो जाओ ! श्रेष्ठ पुरुषों के पास जाकर ज्ञान प्राप्त करो।
निहितार्थ -
सामान्य मनुष्य पशु-स्तर पर जीवन यापन करता है तथा पशुओं की भांति सोता - जागता है एवं भोग्य-पदार्थों के पीछे दौड़ते हुए जीवन यात्रा को समाप्त कर देता है। सामान्य मनुष्य रात्रि का अंधकार होने पर सो जाता है तथा सूर्योदय होने पर जाग जाता है।
योगी की दृष्टि में देह का यह सोना - जागना महत्वपूर्ण नहीं है। योगी ज्ञान के प्रकाश में रहने को जागरण तथा अज्ञान के अंधकार में रहने को सोना (निद्रा) मानता है।
इस घोर निद्रा से उठने और जागने का आह्वान स्वामी विवेकानंद करते हुए कहते हैं - हे मनुष्यों ! अज्ञान के अंधकार में पड़े हुए कब तक करुण-क्रंदन करते रहोगे ? क्लेश , भय और चिंता से ग्रस्त होकर कब तक असहाय होकर नाना प्रकार के संकटों को भोगते रहोगे ? हे मनुष्यों ! अपने दुःख के लिए भगवान और भाग्य तथा अन्य जन को दोष देने से क्या लाभ होगा ?
गोस्वामी तुलसीदास जी रामचरितमानस में लिखते हैं -
सो परत्र दुख पावइ सर धुनि धुनि पछताइ।
कालहि कर्महि ईश्वरहि मिथ्या दोष लगाइ।।
सोया हुआ मनुष्य अपने दुःख के कारण स्वयं सिर पीट-पीट कर पछताता है और अपना दोष न समझ कर काल पर , कर्म पर और ईश्वर पर ही मिथ्या दोष लगाता है।
स्वामी विवेकानंद जी ने दूसरी बात कही है कि जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो , तब तक हमें नहीं रुकना है।
इसका बहुत ही अच्छा उदाहरण प्रभु श्रीराम भक्त हनुमान जी का है।
जब वे समुद्र पार कर रहे थे , तो मैनाक पर्वत ने हनुमान जी से कहा कि आप अपनी थकावट को दूर करने के लिए थोड़ा विश्राम कर लें। हनुमान जी कहते हैं कि जब तक प्रभु का कार्य (माता सीता की खोज का कार्य) संपन्न नहीं हो जाता , तब तक विश्राम करने का प्रश्न ही नहीं उठता। रामचरितमानस में हनुमान जी कहते हैं -
राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहां बिश्राम ।।
स्वामी विवेकानंद निरन्तर " चरैवेति ! चरैवेति !! " का संदेश दे रहे हैं।
स्वामी विवेकानंद के सपने को ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यथार्थ के धरातल में कार्यान्वित कर रहा है। तभी तो हम स्वयंसेवक गुनगुनाते हैं -
चरैवेति ! चरैवेति ! यही तो मंत्र है अपना।
नहीं रुकना , नहीं थकना , सतत चलना सतत चलना।।
" चरैवेति!चरैवेति !!" का उल्लेख ऐतरेय ब्राह्मण में है , जिसमें राजा हरिश्चंद्र के पुत्र रोहित को इंद्र देवता यह उपदेश देते हैं। राजा हरिश्चंद्र को वरुण देवता का यज्ञ करना था , उसे जानने के लिए उसने अपने पुत्र रोहित को पर्यटन में भेज दिया। बिना जाने एक वर्ष के बाद जब वह घर वापस आ रहा था , तो मार्ग में ब्राह्मण वेशधारी इंद्र ने उसे वापस ' चरैवेति ' का उपदेश देते हुए वापस भेज दिया। जब वह दूसरे वर्ष पुनः घर लौटने लगा, तो देवराज इंद्र ने फिर उसे " चर एव इति " (चरैवेति) - ' चलते ही रहो ' का संदेश दिया।
इसी भांति हमें भी जब तक अपने लक्ष्य की प्राप्ति न हो , तब तक निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)


No comments:
Post a Comment