एक समय की बात है किसी गाँव में एक साधु रहता था, वह भगवान का बहुत
बड़ा भक्त था और निरंतर एक पेड़ के नीचे बैठ कर तपस्या किया करता था |
उसका भागवान पर अटूट विश्वास था और गाँव वाले भी उसकी इज्ज़त करते
थे|
धन्यवाद,
भगवान बचाएगा !
भगवान बचाएगा !
एक समय की बात है किसी गाँव में एक
साधु रहता था, वह भगवान का बहुत बड़ा भक्त था और निरंतर एक पेड़ के
नीचे बैठ कर तपस्या किया करता था | उसका भागवान पर अटूट विश्वास
था और गाँव वाले भी उसकी इज्ज़त करते थे|
एक बार गाँव में बहुत भीषण बाढ़ आ गई |
चारो तरफ पानी ही पानी दिखाई देने लगा, सभी लोग अपनी जान बचाने के लिए
ऊँचे स्थानों की तरफ बढ़ने लगे | जब लोगों ने देखा कि साधु महाराज अभी भी
पेड़ के नीचे बैठे भगवान का नाम जप रहे हैं तो उन्हें यह जगह छोड़ने की
सलाह दी| पर साधु ने कहा-
” तुम लोग अपनी जान बचाओ मुझे तो मेरा भगवान बचाएगा!”
धीरे-धीरे पानी का स्तर बढ़ता गया , और पानी साधु के कमर तक आ पहुंचा , इतने में वहां से एक नाव गुजरी|
मल्लाह ने कहा- ” हे साधू महाराज आप इस नाव पर सवार हो जाइए मैं आपको सुरक्षित स्थान तक पहुंचा दूंगा |”
“नहीं, मुझे तुम्हारी मदद की आवश्यकता नहीं है , मुझे तो मेरा भगवान बचाएगा !! “, साधु ने उत्तर दिया.
नाव वाला चुप-चाप वहां से चला गया.
कुछ देर बाद बाढ़ और प्रचंड हो गयी , साधु
ने पेड़ पर चढ़ना उचित समझा और वहां बैठ कर ईश्वर को याद करने लगा | तभी
अचानक उन्हें गड़गडाहत की आवाज़ सुनाई दी, एक हेलिकोप्टर उनकी मदद के लिए आ
पहुंचा, बचाव दल ने एक रस्सी लटकाई और साधु को उसे जोर से पकड़ने का
आग्रह किया|
पर साधु फिर बोला-” मैं इसे नहीं पकडूँगा, मुझे तो मेरा भगवान बचाएगा |”
उनकी हठ के आगे बचाव दल भी उन्हें लिए बगैर वहां से चला गया |
कुछ ही देर में पेड़ बाढ़ की धारा में बह गया और साधु की मृत्यु हो गयी |
मरने के बाद साधु महाराज स्वर्ग
पहुचे और भगवान से बोले -. ” हे प्रभु मैंने तुम्हारी पूरी लगन के
साथ आराधना की… तपस्या की पर जब मै पानी में डूब कर मर रहा था तब
तुम मुझे बचाने नहीं आये, ऐसा क्यों प्रभु ?
भगवान बोले , ” हे साधु महात्मा मै
तुम्हारी रक्षा करने एक नहीं बल्कि तीन बार आया , पहला, ग्रामीणों के
रूप में , दूसरा नाव वाले के रूप में , और तीसरा ,हेलीकाप्टर
बचाव दल के रूप में. किन्तु तुम मेरे इन अवसरों को पहचान नहीं पाए |”
मित्रों, इस जीवन में ईश्वर हमें कई अवसर
देता है , इन अवसरों की प्रकृति कुछ ऐसी होती है कि वे किसी की
प्रतीक्षा नहीं करते है , वे एक दौड़ते हुआ घोड़े के सामान होते
हैं जो हमारे सामने से तेजी से गुजरते हैं , यदि हम उन्हें पहचान कर उनका
लाभ उठा लेते है तो वे हमें हमारी मंजिल तक पंहुचा देते है,
अन्यथा हमें बाद में पछताना ही पड़ता है|
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