जम्मू
के सुजानपुर के पास सुजानपुर के निकटवर्ती गांव बसरूप में एक ऐसी चमत्कारी
और रहस्य से भरपूर बाउली यानि तालाब है जिसमें नहाने से हर तरह का रोग दूर
हो जात है। स्थानीय लोगों का कहना है कि इस बाउली में नहाने से कुष्ठ
रोग, चर्म रोग, छोटे बच्चों में सोकड़ापन और महिलाओं के गुप्त रोग ठीक हो
जाते हैं।
मान्यता
है कि जिन महिलाओं को बच्चे नहीं होते, यहां बाउली में स्नान करने से
उन्हें संतान सुख की प्राप्ति हो जाती है। यह बाउली बुआ दी बाई मंदिर में
है। मंदिर के पुजारी पंडित के अनुसार बहुत पहले बुआ चिड़ी (बुआ कोड़ी) की
प्रसिद्धि जम्मू-कश्मीर में चारों ओर फैली हुई थी।
वह
जम्मू से हरिद्वार के लिए अपने पिता
बाबा जीतोमल के साथ जा रही थी कि गांव
बसरूप के पास आकर उन्हें प्यास लगी। उसी समय गांव के खेत में एक किसान हल
चला रहा था जिससे उन्होंने पानी मांगा तो किसान पानी लेने घर चला गया।
किसान
को पानी लाने में बहुत देर लगी और इतनी देर बुआ प्यास सह न सकीं तो
उन्होंने वहीं जमीन में एड़ी मारी। बुआ की एड़ी जहां लगी वहां से पानी
निकल आया। जब वापस आकर किसान ने यह दृश्य देखा तो वह दंग रह गया। इसी बीच
जिस वृक्ष के नीचे बुआ और बाबा बैठे हुए थे वह सूख गया।
किसान
को पानी लाने में बहुत देर लगी और इतनी देर बुआ प्यास सह न सकीं तो
उन्होंने वहीं जमीन में एड़ी मारी। बुआ की एड़ी जहां लगी वहां से पानी
निकल आया। जब वापस आकर किसान ने यह दृश्य देखा तो वह दंग रह गया। इसी बीच
जिस वृक्ष के नीचे बुआ और बाबा बैठे हुए थे वह सूख गया।
बताया
जाता है कि आजादी के काफी समय पहले एक अंग्रेज अधिकारी जो माधोपुर में
रहता था। उसने सूख चुके इस वृक्ष को चंदन समझ कर कटवा दिया। वृक्ष कटवाने
के बाद वह अंग्रेज अधिकारी अंधा हो गया। बहुत इलाज करवाने जब वह ठीक नहीं
हुआ तो वह वापस लंदन चला गया। एक दिन उसे सपना आया कि वृक्ष कटवाने के
कारण ही उसकी आंखों की रोशनी चली गई
इसके
बाद वह अंग्रेज अधिकारी लंदन से वापस हिन्दुस्तान इसी गांव में आया और
बाउली में स्नान किया और चामत्कारिक रूप से उसकी आंखों की रोशनी लौट आई और
वह कुष्ठ रोग से भी मुक्त हो गया। फिर उस अंग्रेज अधिकारी ने बाउली को
पक्का करवाया और छोटे से मंदिर का निर्माण भी करवाया। उसके बाद मंदिर की
प्रसिद्धि और बढ़ गई और बढ़ती चली गई।बताया जाता है कि जब अंग्रेजों ने बाबा जीत्तोमल से कर के रूप में उनकी फसल
का ज्यादा भाग मांगा तो उन्होंने उसी फसल में अपने आप को भस्म कर लिया और
बुआ कोड़ी भी अपने पिता के साथ उसी आग में कूद गई। यह स्थान जम्मू शहर से
करीब 20 किलोमीटर दूर अखनूर रोड पर पड़ता है आप यहां कभी भी किसी भी मौसम
में जा सकते हैं।
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