कार्तिक पूर्णिमा
हिंदू धर्म में पूर्णिमा का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष 12 पूर्णिमाएं होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर १3 हो जाती है। कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा या गंगा स्नान के नाम से भी जाना जाता है। इस पुर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा की संज्ञा इसलिए दी गई है क्योंकि आज के दिन ही भगवान भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर नामक महाभयानक असुर का अंत किया था और वे त्रिपुरारी के रूप में पूजित हुए थे। ऐसी मान्यता है कि इस दिन कृतिका में शिव शंकर के दर्शन करने से सात जन्म तक व्यक्ति ज्ञानी और धनवान होता है। इस दिन चन्द्र जब आकाश में उदित हो रहा हो उस समय शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसूया और क्षमा इन छ: कृतिकाओं का पूजन करने से शिव जी की प्रसन्नता प्राप्त होती है। इस दिन गंगा नदी में स्नान करने से भी पूरे वर्ष स्नान करने का फाल मिलता है। इसी दिन भगवान विष्णु ने प्रलय काल में वेदों की रक्षा के लिए तथा सृष्टि को बचाने के लिए मत्स्य अवतार धारण किया था। मान्यता यह भी है कि इस दिन पूरे दिन व्रत रखकर रात्रि में वृषदान यानी बछड़ा दान करने से शिवपद की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति इस दिन उपवास करके भगवान भोलेनाथ का भजन और गुणगान करता है उसे अग्निष्टोम नामक यज्ञ का फल प्राप्त होता है। इस पूर्णिमा को शैव मत में जितनी मान्यता मिली है उतनी ही वैष्णव मत में भी। कार्तिक पूर्णिमा को गोलोक के रासमण्डल में श्री कृष्ण ने श्री राधा का पूजन किया था। हमारे तथा अन्य सभी ब्रह्मांडों से परे जो सर्वोच्च गोलोक है वहां इस दिन राधा उत्सव मनाया जाता है तथा रासमण्डल का आयोजन होता है। कार्तिक पूर्णिमा को श्री हरि के बैकुण्ठ धाम में देवी तुलसी का मंगलमय पराकाट्य हुआ था। कार्तिक पूर्णिमा को ही देवी तुलसी ने पृथ्वी पर जन्म ग्रहण किया था। कार्तिक पूर्णिमा को राधिका जी की शुभ प्रतिमा का दर्शन और वन्दन करके मनुष्य जन्म के बंधन से मुक्त हो जाता है। इस दिन बैकुण्ठ के स्वामी श्री हरि को तुलसी पत्र अर्पण करते हैं। कार्तिक मास में विशेषतः श्री राधा और श्री कृष्ण का पूजन करना चाहिए। जो कार्तिक में तुलसी वृक्ष के नीचे श्री राधा और श्री कृष्ण की मूर्ति का पूजन (निष्काम भाव से) करते हैं उन्हें जीवनमुक्त समझना चाहिए। तुलसी के अभाव में आंवलें के नीचे पूजन करनी चाहिए। कार्तिक मास में पराये अन्न, गाजर, दाल, चावल, मूली, बैंगन, घीया, तेल लगाना, तेल खाना, मदिरा, कांजी का त्याग करें। कार्तिक मास में अन्न का दान अवश्य करें। कार्तिक पूर्णिमा को बहुत अधिक मान्यता मिली है। इस पूर्णिमा को महाकार्तिकी भी कहा गया है। यदि इस पूर्णिमा के दिन भरणी नक्षत्र हो तो इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। अगर रोहिणी नक्षत्र हो तो इस पूर्णिमा का महत्व कई गुणा बढ़ जाता है। इस दिन कृतिका नक्षत्र पर चन्द्रमा और बृहस्पति हों तो यह महापूर्णिमा कहलाती है। कृतिका नक्षत्र पर चन्द्रमा और विशाखा पर सूर्य हो तो "पद्मक योग" बनता है जिसमें गंगा स्नान करने से पुष्कर से भी अधिक उत्तम फल की प्राप्ति होती है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान, दीप दान, हवन, यज्ञ आदि करने से सांसारिक पाप और ताप का शमन होता है। इस दिन किये जाने वाले अन्न, धन एव वस्त्र दान का भी बहुत महत्व बताया गया है। इस दिन जो भी दान किया जाता हैं उसका कई गुणा लाभ मिलता है। मान्यता यह भी है कि इस दिन व्यक्ति जो कुछ दान करता है वह उसके लिए स्वर्ग में संरक्षित रहता है जो मृत्यु लोक त्यागने के बाद स्वर्ग में उसे पुनःप्राप्त होता है।
शास्त्रों में वर्णित है कि कार्तिक पुर्णिमा के दिन पवित्र नदी व सरोवर एवं धर्म स्थान में जैसे, गंगा, यमुना, गोदावरी, नर्मदा, गंडक, कुरूक्षेत्र, अयोध्या, काशी में स्नान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि पर व्यक्ति को बिना स्नान किए नहीं रहना चाहिए महर्षि अंगिरा ने स्नान के प्रसंग में लिखा है कि यदि स्नान में कुशा और दान करते समय हाथ में जल व जप करते समय संख्या का संकल्प नहीं किया जाए तो कर्म फल की प्राप्ति नहीं होती है। शास्त्र के नियमों का पालन करते हुए इस दिन स्नान करते समय पहले हाथ पैर धो लें फिर आचमन करके हाथ में कुशा लेकर स्नान करें, इसी प्रकार दान देते समय में हाथ में जल लेकर दान करें। आप यज्ञ और जप कर रहे हैं तो पहले संख्या का संकल्प कर लें फिर जप और यज्ञादि कर्म करें।
सिख सम्प्रदाय में कार्तिक पूर्णिमा का दिन प्रकाशोत्सव के रूप में मनाया जाता है। क्योंकि इस दिन सिख सम्प्रदाय के संस्थापक गुरू नानक देव का जन्म हुआ था। इस दिन सिख सम्प्रदाय के अनुयायी सुबह स्नान कर गुरूद्वारों में जाकर गुरूवाणी सुनते हैं और नानक जी के बताये रास्ते पर चलने की सौगंध लेते हैं। इसे गुरु पर्व भी कहा जाता है। Kartika Purnima is a Hindu, Sikh and Jain cultural festival, celebrated on the Purnima (full moon) day or the fifteenth lunar day of Kartik (November–December). It is also known as Tripuri Purnima and Tripurari Purnima. It is sometimes called Deva-Diwali or Deva-Deepawali - the festival of lights of the gods. Karthikai Deepam is a related festival celebrated in South India and Sri Lanka on a different date.
Kartika Purnima is a Hindu, Sikh and Jain cultural festival, celebrated on the Purnima (full moon) day or the fifteenth lunar day of Kartik (November–December). It is also known as Tripuri Purnima and Tripurari Purnima. It is sometimes called Deva-Diwali or Deva-Deepawali - the festival of lights of the gods. Karthikai Deepam is a related festival celebrated in South India and Sri Lanka on a different date.
Significance in Hinduism
Kartik Purnima is also the birthday of Matsya, god Vishnu's fish-incarnation (avatar). It is also the birthday of Vrinda, the personification of the Tulsi plant and of Kartikeya, the god of war and son of Shiva. This day also is considered special for Radha, the lover of Krishna - Vishnu's incarnation. It is believed that Krishna and Radha danced rasa and Krishna worshipped Radha on this day. This day is also dedicated to the pitrs, dead ancestors.
Underhill believes that the origins of this festival may lie in ancient times, when a sacrifice called Shakamedhah was performed to attain victory over enemies.
The festival has even more significance when the day falls in the nakshatra (lunar mansion) Krittika and is then called Maha Kartik. The nakshatra is Bharani, the results are stated to be special. If it is Rohini nakshatra, then the fruitful results are even much more. Any philanthropic act on this day is supposed to bring benefits and blessings equal to the performing of ten yajnas (sacrifices).
Hindu rituals
Kartik Purnima is closely associated with Prabodhini Ekadashi which marks the end of Chaturmas, a four-month period when Vishnu is believed to sleep. Prabodhini Ekadashi signifies the awakening of the god. Chaturmas penance ends on this day. Many fairs that begin on Prabodhini Ekadashi end on Kartik Purnima, Kartik Purnima usually being the most important day of the fair. Fairs that conclude on this day include Prabodhini Ekadashi celebrations at Pandharpur and Pushkar Fair. Kartik Purnima is also the last day to perform Tulsi Vivah ceremony that can be performed from Prabodhini Ekadashi.Also, it is believed that Vishnu, on this day, returns to his abode after completing his stay in Bali. Hence, the day is known as Deva-Diwali.
A ritual bath at a tirtha (a sacred water body like a lake or river) at a pilgrimage centre is prescribed on Kartik Purnima. This holy bath is known as "Kartik snana" An holy bath at Pushkar or in the Ganges river, especially at Varanasi is deemed as most auspicious. Kartik Purnima is the most popular day for bathing in the Ganges at Varanasi. The devotees also take a bath in the evening during moonrise and offer worship by way of six prayers such as Shiva sambuti, Satait and so forth.
Annakuta, an offering of food to the deities, is held in temples. People who have taken vows on Ashvin full moon day, end them on Kartik Purnima. God Vishnu is also worshipped on this day. Any form of violence (hinsa or himsa) is prohibited on this day. This includes shaving, hair-cutting, cutting of trees, plucking of fruits and flowers, cutting of crops and even, sexual union. Charity especially donation of cows, feeding of Brahmins, fasting are religious activities prescribed for Kartik Purnima.[9] Giving gift of gold is said to fulfill all desires of people.
Tripuri Purnima is only next to Maha Shivaratri, amongst festivals dedicated to Shiva worship. To commemorate the killing of Tripurasura, images of Shiva are carried in procession. Temple complexes in southern India are lit up throughout the night. Deepmalas or towers of lights are illuminated in temples. People place 360 or 720 wicks in temples, to secure escape reaching hell after death. The 720 wicks symbolizes the 360 days and nights of the Hindu calendar. In Varanasi, the ghats come alive with thousands of diyas (brightly lit earthen lamps). People gift lamps to priests. The lamps are kept throughout the night in houses and Shiva temples. This day is also known as "Kartik Diparatna" - the jewel of lamps in Kartik. Lights are also floated in miniature boats in rivers. Lights are placed under Tulsi, Sacred fig and Amla trees. The lights in the water and under trees are believed to help fishes, insects and birds who saw the light to attain salvation.
In Odisha, on Kartik Purnima, people celebrate Boita Bandana(odia: ବୋଇତ ବନ୍ଦାଣ) by heading for the nearest water body to set afloat miniature boats, originally made out of banana stem and coconut stick, lit with deepak(lamps), fabric, betel leaves. Boita stands for boat. The festival is a mass commemoration of the state's glorious maritime history when it was known as Kalinga and people traveled on boitas to trade with distant island nations that share borders with the Bay of Bengal like Indonesia, Java, Sumatra and Bali.
In Telugu households of Andhra Pradesh, Telangana, Karthika maasalu (month) is considered very auspicious. The Kartika month starts on the day of Deepawali. From that day till the end of the month, oil lamps are lit every day. On Karthika Pournami (full moon of Kartheeka month) oil lamp with 365 wicks, prepared at home, are lit in Lord Shiva temples. Apart from that, Kartika puranam is read and fasting is observed till sunset, every day for the whole month. Swaminarayan Sampraday also celebrates this day with faith and fervor.
Jainism
Considered to be a very auspicious day for Jains, the day also assumes more significance for the walk, as the hills, which are closed to the public during the four months of Chaturmas, are thrown open for the devotees on Kartik Purnima. The day of Kartik Purnima is very significant in Jainism. As devotees are kept away from worshipping their lord for four months of the monsoon season, the first day attracts the maximum number of devotees. Jains believe that Adinath, the first tirthankara, sanctified the hills by visiting it to deliver his first sermon. According to Jain texts, millions of sadhus and sadhvis have attained salvation on these hills.
Sikhism
There are no auspicious days in Sikhism. Any month, day or moment a person remembers the Divine is considered auspicious. Guru Nanak was born on 1 Vaisakh, April 14, according to the (Sikh) Nanakshahi calendar. It happened to be a full-moon night.[20]Nanakpanthi Hindus and other followers of Guru Nanak's philosophy celebrate this festival on Kartik Purnima, according to the (Hindu) Bikrami calendar. Kartik Purnima is celebrated as Gurupurab or Prakash Parva that is Guru Nanak Jayanti Worldwide.
POSTED BY : VIPUL KOUL
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