Tuesday, July 11, 2023

हे दीनबंधु करुणासिंधु! हे नाथ!हे मेरे नाथ!

 
सनातन संस्कृति इतनी विलक्षण है कि जिसकी महिमा का वर्णन करने में वाणी समर्थ नहीं है, यह किसी के द्वारा निर्मित नहीं है, यह स्वयंभू है, प्रत्येक व्यक्ति इस संस्कृति से ठीक उसी तरह से जुड़ा हुआ है जैसे बीज वृक्ष से जुड़ा हुआ है उससे कभी अलग हुआ ही नहीं था, उससे कभी अलग होने की कल्पना की भी नहीं जा सकती है लेकिन जब व्यक्ति किसी मत, संप्रदाय और संस्था को अपनी व्यक्तिगत वस्तु मान लेता है तब उसका एक आग्रह उसके भीतर बैठ जाता है जिसके कारण उसमें दृष्टि दोष उत्पन्न हो जाता है और फिर अपने मत की बात ही उसको ठीक लगती है और दूसरे मत की बात उसको व्यर्थ लगती है, इसलिए व्यक्ति को मतवादी ना होकर तत्ववादी होना चाहिए, तभी उसको सत्य का सही स्वरूप सही स्थिति में दिखाई देगा, क्योंकि व्यक्ति जब भी कहीं जुड़ता है जुड़ने के साथ ही उसके गुण और दोष उस पर लागू हो जाते हैं इसीलिए सभी सत्संग प्रेमियों से यही विनम्र निवेदन है कि सत्य को खुली आंखों से देखें, किसी मत, संप्रदाय, संस्था की आंखों से ना देखें, यही सत्य है...राम राम
🙏
हे दीनबंधु करुणासिंधु! हे नाथ!हे मेरे नाथ!
राधे राधे! 🙏
वसुदेव सुतं देवं कंस चाणूर मर्दनं!
देवकी परमानंदं कृष्णं वंदे जगद्गुरूं!
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षष्ठ माला ---पोस्ट संख्या --१११
(६२)---मन को पवित्र और संयत करने का एक बड़ा सुंदर और सफल साधन है---- सत्संग में रहकर निरंतर भगवान की अतुलनीय महिमा और पवित्र लीला कथाओं का सुनना और फिर उनका भली-भांति मनन करते रहना।
गीता-प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित पुस्तक --सत्संगके बिखरे मोती (षष्ठ माला)
कोड---३३९
पृष्ठ संख्या ---७९
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी
श्री हरि चरणों में कोटि नमन!
सभी प्रभु प्रेमियों को कान्हा प्रभात मंगलं!
प्रेम से बोलिए जय श्रीराधेयय! 🙏💕