Sunday, May 19, 2024

// भगवान् श्रीकृष्ण के जन्म की काल गणना

 

भगवान् श्रीकृष्ण के जन्म की काल गणना //
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भगवान् श्रीकृष्ण को अवतार ग्रहण किए हुए 5248 वर्ष पूर्ण हो चुके हैं और 5249वाँ वर्ष प्रारम्भ हुआ है। प्रश्न उठता है कि यह कालगणना कैसे की गई?
~ लीलापुरुषोत्तम भगवान् श्रीकृष्ण का जीवन-चरित्र अनेक प्राचीन ग्रन्थों में भरा पड़ा है। भागवतपुराण, विष्णुपुराण, ब्रह्मपुराण, ब्रह्मवैवर्तपुराण, हरिवंशपुराण, देवीभागवतपुराण, आदिपुराण, गर्गसंहिता, महाभारत और जैमिनीयमहाभारत, आदि में भगवान् श्रीकृष्ण का विस्तृत जीवन-चरित्र प्राप्त होता है। इन ग्रन्थों ने भगवान् श्रीकृष्ण के जीवन की प्रमुख घटनाओं का समय कहीं तिथि, कहीं नक्षत्र तो कहीं ऋतु में दिया है। इनके सहारे श्रीकृष्ण जन्म से लेकर उनके स्वर्गारोहण तक की समयावली प्रस्तुत हो जाती है। इसके अतिरिक्त इन ग्रन्थों में कई मुहूर्तों के नाम भी आए हैंI
✓ विष्णुपुराण (5.1.78) एवं ब्रह्मपुराण (181.44) के अनुसार वर्षा ऋतु में भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को रात्रि में भगवान् श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था।
प्रावृट्काले च नभसि कृष्णाष्टम्यामहं निशि।
उत्पत्यामि नवम्यां तु प्रसूतिं त्वमवाप्स्यसि।।
✓ देवीपुराण (50.65) के अनुसार भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र, वृष लग्न में अर्द्धरात्रि की वेला में भगवती ने देवकी के गर्भ से परम पुरुष के रूप में जन्म लिया
ततः समभवद्देवी देवक्याः परमः पुमान्।
अष्टम्यामधर्द्धरात्रे तु रोहिण्यामसिते वृषे।।
✓ भविष्यपुराण (उत्तरपर्व, 55.14) के अनुसार जिस समय सिंह राशि पर सूर्य और वृष राशि पर चन्द्रमा था, उस भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्मी तिथि को अर्द्धरात्रि में रोहिणी नक्षत्र में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था।
सिंहराशिगते सूर्ये गगने जलदाकुले।
मासि भाद्रपदेष्टम्यां कृष्णपक्षेऽर्धरात्रके।
वृषराशिस्थिते चन्द्रे नक्षत्रे रोहिणीयुते।।
✓ हरिवंशपुराण (2.4.17) के अनुसार भगवान् श्रीकृष्ण के जन्म के समय अभिजित् नक्षत्र, जयन्ती नामक रात्रि और विजय नामक मुहूर्त था।
अभिजिन्नाम नक्षत्रं जायन्तीनाम शर्बरी।
मुहूर्तो विजयो नाम यत्र जातो जनार्दनः।।
✓ भविष्यपुराण (प्रतिसर्गपर्व, 1.3.82) के अनुसार द्वापर के चतुर्थ चरण के अन्त में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था।
चतुर्थे चरणान्ते च हरेर्जन्म स्मृतं बुधैः।
हस्तिनापुरमध्यस्याभिमन्योस्तनयस्ततः।।
✓ आदिपुराण (15.15-16) के अनुसार द्वापरयुग के अन्त में और कलियुग के प्रारम्भ में भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्मी तिथि को अर्द्धरात्रि में, रोहिणी नक्षत्र में जब लग्न का स्वामी उच्च स्थान में स्थित था, श्रीकृष्ण का जन्म हुआ।
द्वापरान्ते कलोरादौ व्यतीते तु शरच्छते।
प्रौष्मद्यामथाष्टम्यां कृष्णायामर्द्धरात्रकेII
रोहिणीस्थे चन्द्रमासि स्वोच्चगेऽभूज्जनिर्मम।।
✓ महाभारत (शान्तिपर्व, 339.89-90) के अनुसार द्वापर और कलि की सन्धि के समय के आसपास कंस का वध करने के लिए मथुरा में विष्णु का अवतार हुआ था।
द्वापरस्य कलेश्चैव संधै पार्यवसानिके।
प्रादुर्भाव कंसहेतेार्मथुरायां भविष्यति।।
✓ ब्रह्मवैवर्तमहापुराण और भागवतमहापुराण के अनुसार भगवान् श्रीकृष्ण इस धरातल पर 125 वर्षों से अधिक समय तक विराजमान रहे थे।
यत् पंचविंशत्यधिकं वर्षाणां शतकं गतम्।
व्यक्तवेमां स्वपदं यासि रुदन्तीं विरहातुरम्।।
(ब्रह्मवैवर्तमहापुराण, 4.109.18)
यदुवंशेऽवतीर्णस्य भवतः पुरुषोत्तम।
शरच्छतं व्यतीयाय पंचविंशाधिकं प्रभो।।
(भागवतमहापुराण, 11.6.25)
विष्णु, वायु, ब्रह्म, ब्रह्माण्ड और भागवतपुराण के अनुसार जिस दिन भगवान् श्रीकृष्ण परमधाम को पधारे थे, उसी दिन, उसी समय पृथिवी पर कलियुग प्रारम्भ हो गया था।
यदैव भगवान्विष्णोरंशो यातोदिवं द्विज।
वसुदेववुफलोद्भूतस्दैवात्रागतः कलि।।
- (विष्णुपुराण, 4.24.108)
यस्मिन कृष्णो दिवं यातस्तस्मिन्नेव तदाहनि।
प्रतिपन्नं कलियुगं तस्य संख्यां निबोध मे।।
- (विष्णुपुराण, 4.24.113; ब्रह्माण्डपुराण, 2.74.241; वायुपुराण, 19.428.429)
यस्मिन्दिने हरिर्यातो दिनं सन्त्याज्य मेदिनीम्।
यस्मिन्नेवावतीर्णोऽयं कालक्रायो बली कलिः।।
- (विष्णुपुराण, 5.38.8; ब्रह्मपुराण, 212.😎
यदा मुकुन्दो भगवानिमां महीं जहौ स्वतन्वा श्रवणीयसत्कथः।
तदाहरेवाप्रति बुद्धचेतसामधर्महेतुः कलिरन्ववर्ततः।।
- (भागवतपुराण, 1.16.36)
~ हिंदू-कालगणनानुसार द्वापरयुग 2,400 दिव्य वर्षों का एवं 8,64,000 मानव-वर्षों का होता है। वर्तमान समय में ब्रह्मा के द्वितीय परार्ध के 7वें वैवस्वत मन्वन्तर के 28वें चतुर्युग के कलियुग के प्रथम चरण का 5123वाँ वर्ष चल रहा है। भगवान् श्रीकृष्ण का जन्म वैवस्वत मन्वन्तर के 28वें चतुर्युग के द्वापर के अन्त होने के लगभग 126 (125 वर्षों से कुछ अधिक) वर्ष पूर्व हुआ था जो द्वापरयुग का अन्तिम चरण है। भविष्यमहापुराण (उत्तरपर्व, 101.6) के अनुसार कलियुग का प्रारम्भ माघ शुक्ल पूर्णिमा को हुआ था।
"माघे पंचदशी राजन्कलिकालदिरुच्यते।"
~ आर्यभट (476-550) के अनुसार 28वें कलियुग का प्रारम्भ 3102 ई.पू. में हुआ था। उन्होंने स्पष्ट लिखा है : ‘3 युग (सत्ययुग, त्रेतायुग और द्वापरयुग) और कलियुग के 60x60 (=3600) वर्ष बीत चुके हैं और इस समय उन्हें जन्मे 23 वर्ष हुए हैं’।
षष्टब्दानां षष्ठियादाव्यतीतास्त्रयश्य युगपादाः।
त्रयधिकविंशति रब्दास्तदेह मम जन्मनोऽतीताः।।
(आर्यभटीयम्, कालक्रियापाद, 10)
~ उपर्युक्त श्लोक का तात्पर्य यह है कि आर्यभट्ट ने 23 वर्ष की आयु में उपर्युक्त श्लोक की रचना की है। आर्यभट्ट का जन्म मेष-संक्रांति, 476 ई. में हुआ था। इस प्रकार उपर्युक्त रचना 476+23=499 ई. की है। तब कलियुग का 3601वाँ वर्ष चल रहा था। इस प्रकार कलियुग का प्रारम्भ 3601-499=3102 ई.पू. में हुआ था।
~ भास्कराचार्य द्वितीय (1114-1185) ने लिखा है : ‘छः मन्वन्तर और 7वें मन्वन्तर के 27 चतुर्युग बीत चुके हैं, जो 28वाँ चतुर्युग चल रहा है, उसके भी 3 युग बीत चुके हैं और जो चौथा कलियुग चल रहा है, उसके भी शालिवाहन-संवत् तक 3,179 वर्ष गुजर चुके हैं।
याताः षण्मन्वो युगानि भमितान्यन्यद्युगांधि त्रयं।
नन्दाद्रीन्दुगुणास्तथा शकनृपस्यान्ते कलेर्वत्सराः।।
(सिद्धान्तशिरोमणि, मध्यमाधिकार, कालमानाध्याय, 28)
~ शालिवाहन संवत् का प्रारम्भ 78 ई. में उज्जयिनी-नरेश शालिवाहन (शासनकाल : 46-106 ई.) ने किया था और वर्तमान में शालिवाहन संवत् (2021-78 = 1943) चल रहा है। अतः, (1943+3179) 5122 वर्ष कलियुग के बीत चुके हैं (और 5123वाँ वर्ष चल रहा है)। इस दृष्टि से भी कलियुग का प्रारम्भ (5123-2021) = 3102 ई.पू. में सिद्ध होता है।
~ इस प्रकार (28वें) कलियुग का प्रारम्भ बहुधान्य संवत्सर में माघ शुक्ल पूर्णिमा, तदनुसार 18 फरवरी, शुक्रवार, 3102 ई.पू. को दोपहर 2 बजकर 27 मिनट और 30 सैकंड पर हुआ था, जब सात नक्षत्र एक ही राशि में एकत्र हो गए थे— यह तथ्य पुराणसम्मत, इतिहाससम्मत, ज्योतिर्विज्ञानसम्मत है।
~ भारतवर्ष में प्रकाशित होनेवाले सारे पञ्चाङ्गों में ‘कलि संवत्’ लिखा होता है, जिसे गणना करके देखा जा सकता है। ग्रामण (दक्षिणी अर्काट) से प्राप्त एक चोल-अभिलेख पर कलि-वर्ष 4044 और कलि-दिन 14,77,037 अंकित है, जिसकी संगति 14 जनवरी, 943 ई. के साथ स्थापित होती है। इससे 125 वर्ष पीछे जाने पर 3227 ई.पू. प्राप्त होता है, लेकिन चूँकि भगवान् श्रीकृष्ण 125 वर्षों से अधिक समय तक जीवित रहे थे और उनका जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को हुआ था जो 5 मास, 4 दिन और पीछे पड़ता है; इसलिए अंग्रेज़ी महीने के हिसाब से यह समय 21 जुलाई निकलता है।
~ इस प्रकार भगवान् श्रीकृष्ण का जन्मदिवस श्रीमुख संवत्सर, भाद्रपद कृष्ण अष्टमी, रोहिणी नक्षत्र, तदनुसार 21 जुलाई, बुधवार और वर्ष 3228 ई.पू. निश्चित होता है। भगवान् श्रीकृष्ण के जन्म से ही ‘श्रीकृष्ण संवत्’ प्रचलित है जिसका आजकल 3228+2021 = 5249वाँ वर्ष चल रहा है। अर्थात भगवान् श्रीकृष्ण को अवतार ग्रहण किए हुए आज जन्माष्टमी को 5248 वर्ष पूर्ण हो चुके हैं और 5249वाँ वर्ष प्रारम्भ हुआ है।
~ 28वें कलियुग के प्रारम्भ होने की तिथि माघ शुक्ल पूर्णिमा, तदनुसार 18 फरवरी, शुक्रवार और वर्ष 3102 ई.पू. (युधिष्ठिर संवत् 37) ही भगवान् श्रीकृष्ण के स्वधामगमन की भी तिथि है।
भगवान् श्रीकृष्ण की समयावली
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✓ 3228 ई.पू., श्रीकृष्ण संवत् 1, आयु : 0 दिन : श्रीमुख संवत्सर, भाद्रपद कृष्ण अष्टमी, 21 जुलाई, बुधवार : मथुरा में कंस के कारागार में देवकी के गर्भ से जन्म, पिता-वसुदेव; उसी दिन वसुदेव के द्वारा में नन्द-यशोदा के गोकुल स्थानांतरण; आयु : 6 दिन : भाद्रपद कृष्ण चतुर्दशी, 27 जुलाई, मंगलवार, षष्ठी-स्नान, कंस की सेविका पूतना का वध; आयु : 3 माह : मार्गशीर्ष : शकट-भंजन।
✓ 3227 ई.पू., श्रीकृष्ण संवत् 1, आयु : 5 माह, 20 दिन : माघ शुक्ल चतुर्दशी, अन्नप्राशन-संस्कार; श्रीकृष्ण संवत् 2, आयु 1 वर्ष : त्रिणिवर्त का वध।
✓ 3226 ई.पू., श्रीकृष्ण संवत् 3, आयु : 2 वर्ष : महर्षि गर्गाचार्य द्वारा नामकरण-संस्कार।
✓ 3225 ई.पू., श्रीकृष्ण संवत् 3, आयु : 2 वर्ष 6 माह : चैत्र, यमलार्जुन (नलकूबर और मणिग्रीव) उद्धार; आयु : 2 वर्ष, 10 माह : आषाढ़, गोकुल से वृन्दावन जाना।
✓ 3224 ई.पू., श्रीकृष्ण संवत् 5, आयु : 4 वर्ष : वत्सासुर और बकासुर का वध।
✓ 3223 ई.पू., श्रीकृष्ण संवत् 6, आयु : 5 वर्ष : अघासुर का वध; आयु : 5 वर्ष : ब्रह्माजी का गर्व-भंग; भाद्रपद कृष्ण एकादशी : कालिय मर्दन और दावाग्नि-पान; आयु : 5 वर्ष, 3 माह : मार्गशीर्ष : गोपियों का चीर-हरण।
✓ 3222 ई.पू., श्रीकृष्ण संवत् : 6, आयु : 5 वर्ष, 8 माह : ज्येष्ठ-आषाढ़ : यज्ञ-पत्नियों पर कृपा।
✓ 3221 ई.पू., श्रीकृष्ण संवत् : 8, आयु : 7 वर्ष, 2 माह, 7 दिन : कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा : गोवर्धन पूजा; कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से सप्तमी : गोवर्धन धरणकर इन्द्र का गर्व भंग; आयु : 7 वर्ष, 2 माह, 14 दिन : कार्तिक शुक्ल अष्मी : कामधेनु द्वारा अभिषेक, भगवान् का नाम ‘गोविन्द’ पड़ा; आयु : 7 वर्ष, 2 माह, 18 दिन : कार्तिक शुक्ल द्वादशी : नन्दजी को वरुणलोक से छुड़ाकर लाना।
👉 3220 ई.पू., श्रीकृष्ण संवत् : 9, आयु : 8 वर्ष, 1 माह, 21 दिन : आश्विन शुक्ल पूर्णिमा : गोपियों के साथ रासलीला।
✓ 3219 ई.पू., श्रीकृष्ण संवत् : 9, आयु : 8 वर्ष, 6 माह, 5 दिन : फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी : सुदर्शन गन्धर्व का उद्धार; आयु : 8 वर्ष, 6 माह, 21 दिन : फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा : शंखचूड़ दैत्य का वध; श्रीकृष्ण संवत् : 10, आयु : 9 वर्ष : अरिष्टासुर (वृषभासुर) और केशी दैत्य का वध, भगवान् का नाम ‘केशव’ पड़ा।
✓ 3218 ई.पू., श्रीकृष्ण संवत् : 11, आयु : 10 वर्ष, 2 माह, 20-21 दिन : कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी : मथुरा में धनुर्भंग; कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा : मथुरा में कंस का वध, कंस के पिता उग्रसेन का मथुरा के सिंहासन पर राज्याभिषेक।
✓ 3217 ई.पू., श्रीकृष्ण संवत् : 12 : आयु : 11 वर्ष : अवन्तिका में सांदीपनि मुनि के गरुकुल में 126 दिनों में छः अंगों सहित संपूर्ण वेदों, गजशिक्षा, अश्वशिक्षा और धनुर्वेद (कुल 64 कलाओं) का ज्ञान प्राप्त किया, पञ्चजन दैत्य का वध एवं पाञ्चजन्य शंख-धरण, सांदीपनि मुनि को गुरु-दक्षिणा।
✓ 3216 ई.पू., श्रीकृष्ण संवत् : 13, आयु : 12 वर्ष : उपनयन (यज्ञोपवीत)-संस्कार।
✓ 3216-3200 ई.पू., श्रीकृष्ण संवत् : 13-19, आयु : 12-28 वर्ष : मथुरा में जरासन्ध को 17 बार पराजित किया; श्रीकृष्ण संवत् : 29 , आयु : 28 वर्ष : रत्नाकर (सिंधुसागर) पर द्वारका नगरी की स्थापना, मथुरा में कालयवन की सेना का संहार।
✓ 3199-3191 ई.पू., श्रीकृष्ण संवत् : 30-38, आयु : 29-37 वर्ष : रुक्मिणी-हरण, द्वारका में रुक्मिणी से विवाह, स्यमन्तक मणि-प्रकरण, जाम्बवती, सत्यभामा एवं कालिन्दी से विवाह, केकय देश की कन्या भद्रा से विवाह, मद्र देश की कन्या लक्ष्मणा से विवाह; कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी : प्राग्ज्योतिषपुर में नरकासुर का वध, नरकासुर की कैद से 16,100 कन्याओं को मुक्तकर द्वारका भेजा, अमरावती में इन्द्र से अदिति के कुंडल प्राप्त किए, इन्द्रादि देवताओं को जीतकर पारिजात वृक्ष (कल्पवृक्ष) द्वारका लाए, नरकासुर से छुड़ायी गयी 16,100 कन्याओं से द्वारका में विवाह, शोणितपुर में बाणासुर से युद्ध, उषा और अनिरुद्ध के साथ द्वारका लौटे; पौण्ड्रक, काशीराज, उसके पुत्र सुदक्षिण और कृत्या का वध तथा काशी-दहन।
✓ 3190 ई.पू., श्रीकृष्ण संवत् : 39, आयु : 38 वर्ष 4 माह 17 दिन : पौष शुक्ल एकादशी : द्रौपदी-स्वयंवर में पांचाल राज्य में उपस्थित।
✓ 3189-3183 ई.पू., श्रीकृष्ण संवत् : 40-46, आयु : 39-45 वर्ष : विश्वकर्मा से कहकर पाण्डवों के लिए इन्द्रप्रस्थ का निर्माण।
✓ 3157 ई.पू., श्रीकृष्ण संवत् : 72, आयु : 71 वर्ष : सुभद्रा-हरण में अर्जुन की सहायता।
✓ 3155 ई.पू., श्रीकृष्ण संवत् : 74, आयु : 73 वर्ष : श्रावण, इन्द्रप्रस्थ में खाण्डव वन-दाह में अग्नि और अर्जुन की सहायता, मय दानव को सभाभवन निर्माण के लिए आदेश।
✓ 3153 ई.पू., श्रीकृष्ण संवत् : 76, आयु : 75 वर्ष : धर्मराज युधिष्ठिर के राजसूय-यज्ञ के निमित्त इन्द्रप्रस्थ-आगमन; आयु : 75 वर्ष 2 माह 20 दिन : कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी : जरासन्ध-वध में भीम की सहायता; आयु : 75 वर्ष 3 माह : जरासन्ध के कारागार से 20,800 राजाओं को मुक्त किया, मगध के सिंहासन पर जरासन्ध-पुत्र सहदेव का राज्याभिषेक।
✓ 3152 ई.पू., श्रीकृष्ण संवत् : 76, आयु : 75 वर्ष 6 माह 9 दिन : फाल्गुन शुक्ल प्रतिपदा : राजसूय-यज्ञ में अग्रपूजित, शिशुपाल का वध; आयु : 75 वर्ष 7 माह : द्वारका में शिशुपाल के भाई शाल्व का वध; आयु : 75 वर्ष 10 माह 24 दिन : श्रावण कृष्ण तृतीया : प्रथम द्यूत-क्रीड़ा में द्रौपदी की लाज-रक्षा; आयु : 75 वर्ष 11 माह : श्रावण : वन में पाण्डवों से भेंट, सुभद्रा और अभिमन्यु को साथ ले द्वारका-प्रस्थान।
✓ 3139 ई.पू., श्रीकृष्ण संवत् : 90, आयु : 89 वर्ष 1 माह 17 दिन आश्विन शुक्ल एकादशी: अभिमन्यु और उत्तरा के विवाह में बारात लेकर विराटनगर पहुँचे; आयु : 89 वर्ष 2 माह : कार्तिक : विराट की राजसभा में कौरवों के अत्याचारों और पाण्डवों के धर्म-व्यवहार का वर्णन करते हुए किसी सुयोग्य दूत को हस्तिनापुर भेजने का प्रस्ताव, द्रुपद को सौंपकर द्वारका-प्रस्थान, द्वारका में दुर्योधन और अर्जुन दोनों की सहायता की स्वीकृति, अर्जुन का सारथ्य-कर्म स्वीकार करना; आयु : 89 वर्ष 2 माह 8 दिन : कार्तिक शुक्ल द्वितीया, रेवती नक्षत्र, मैत्र मुहूर्त : पाण्डवों का सन्धि-प्रस्ताव लेकर हस्तिनापुर प्रस्थान; आयु : 89 वर्ष 2 माह 19 दिन : कार्तिक शुक्ल त्रयोदशी : सन्धि-प्रस्ताव लेकर हस्तिनापुर पहुँचे; आयु : 89 वर्ष 3 माह : मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी : राजसभा में अपने विश्वरूप का प्रदर्शन; मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी से चतुर्दशी : कर्ण को पाण्डवों के पक्ष में आने के लिए समझाना; आयु : 89 वर्ष 3 माह 17 दिन : मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी : कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन को ‘भगवद्गीता’ का उपदेश; आयु : 89 वर्ष 4 माह : मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी से पौष कृष्ण अमावस्या : महाभारत-युद्ध में अर्जुन के सारथी, युद्ध में पाण्डवों की अनेक प्रकार से सहायता।
✓ 3138 ई.पू., श्रीकृष्ण संवत् : 90, आयु : 89 वर्ष 4 माह 7-8 दिन : पौष शुक्ल प्रतिपदा : अश्वत्थामा को 3,000 वर्षों तक जंगल में भटकने का शाप; पौष शुक्ल द्वितीया : गान्धारी द्वारा शाप-प्राप्ति; आयु : 89 वर्ष 7 माह 7 दिन : चैत्र शुक्ल प्रतिपदा : धर्मराज युधिष्ठिर का राज्याभिषेक।
✓ 3137-3136 ई.पू., श्रीकृष्ण संवत् : 91-92, युधिष्ठिर संवत् 2-3, आयु : 91-92 वर्ष : धर्मराज युधिष्ठिर के अश्वमेध-यज्ञ में सम्मिलित।
✓ 3102 ई.पू., श्रीकृष्ण संवत् : 126, युधिष्ठिर संवत् 37, आयु : 125 वर्ष 4 माह : द्वारका में यदुवंश का विनाश; आयु : 125 वर्ष 5 माह : माघ : उद्धव मुनि को उपदेश; आयु : 125 वर्ष 5 माह 21 दिन : बहुधान्य संवत्सर, माघ शुक्ल पूर्णिमा, 18 फरवरी, शुक्रवार, दोपहर 2:27:30 बजे : प्रभास क्षेत्र में स्वधामगमन, 28वें कलियुग का प्रारम्भ।
।। आचार्य कृष्णा मिश्रा ।।

।। आचार्य कृष्णा मिश्रा ।।
(लेखक)

Thursday, May 9, 2024

त्रिकाचार्य स्वामी राम जी

 

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संवित्  स्वरूप  त्रिकाचार्य स्वामी राम जी को नमन।
 
             

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 -----जया सिबू रैना
नमन् करते हैं आज के दिन,
 सभी----,
शैवी मुद्रा में
 श्रीमन्त् अभिनवगुप्त को
 देवी लल्लेशवरी को
 ईशवर स्वरूप स्वामी  राम   को
ज़िस ने त्रिक् शास्रत्र  को
 पुनः स्पन्दित किया
 अपने भाष्य से।
बना दिया विश्व में एक शैवी  गाथा 
 है शैवी गाथा क्या----
कैसा रहस्य---
 कुच्छ तो बता दो ?
कश्मीर  में इस का समाधान किया 
 शास्त्र  चर्चा से केवल
 समय की पुकार थी यह?
 या पारस्परिक शैवी त्रिवेणी का  उन्मेष?
किया  मृदुल  वाणी से
अथवा नैसर्गिक् उत्तर से समाधान
 अपना ही ऋषि ऋण चुका दिया
या कि दिव्य-दृष्टि का उन्मेष---
  लाने के लिय
जिसे कहते है वाक्-- स्फुरण।
अपने सुहृद् जनों को संवारने की चैत्य अवस्था 

मध्यमा प्रतिपदा से  अणुप्राणित किया हमें
त्रिकावस्था कहलाती  है उसे।  

वेद वाणी  गायत्री  के अवतीर्ण को
अपनी वाक् शक्ति से
सामान्य जन तक पहुंचा दिया।
जननी शारदा देवी की  भूमि में,
शक्ति से पुन: स्वीकृत
मातृ-शक्ति को समादृत करने के लिये
मन -प्राण- वाक् के समावेश् में ही
 नियमित किया। 
 शिव-शिव
 केवल शिव ही
 ३६ तत्त्वों का समावे  है ।
 अद्भुत   परिभाषा क्या है शैवी योग की!
 किसे कहते हैं अभीप्सा? कैसी अभीप्सा?
सिखा ही दिया शिव से साक्षत्कार क्या होता है
  तुम्हारे सन्तान
 कशमीर शैव दर्शन से अनु- प्राणित होते हैं।
उन्ही की निर्वाण  शताब्दी में 
विश्व में शैवी गाथा का पुण्य पर्व है
पुनः यह जान कर
 अब होगा देश और विदेश में
 यही गाथा शैवी 
 पुण्य पर्व है हमारा यही
 इस पर हमें गर्व है
क्योंकि इसी में है----,
 अहम् और् इदम् का समाधान
है  ऐसा मेरा विश्वास्  ।
 स्वामी राम जी को
 उनके सभी शिष्य वर्ग को

नमन  हैं अभिनवगुप्त को

ॐ भगवते श्रीमंताय-सिद्धपुरुषाय नमः

१९१० बिक्रमियस् मन्ज़ छुख .च ज़ामुत्
त्रिक  ग्यान सूत्य शक्तिपात छु फहलोमुत
फतेह कदल कशीरि मन्ज़् छु प्रागाश  होवमुत् 
 चानि दिव्य तेज सुत्य छु  ग़्यान् दीप ज़ोलमुत्
-------जया सिबू
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1910 bikramīyas manza chukhā tsuya zāmut
trika  gyāna chūya tseya Saktipaat sutya phahalomuta
Fateha kadala kaśhīri manz chhu pragāśha hovamut 
Chaā'niDivya Tejasui't Chhu Gyan deep zolmut!




१ ॐ भगवते श्रीमंताय-सिद्धपुरुषाय नमः
1. OM Bhagawate Shrimantāya Siddha Purushāya Namah.
Namaskar to the Bhagawān Siddhapurusha,who is perfect in his Tapasyā of the highest
order,where every breath of the devotee is filled with the vibration of Shivoham,Shivoham.Kevaloham.
Of course, the forms of austerities, are filled with the aura of auspiciousness,through His grace.Siddhi is the highest form of perfection in the Shaivistic Yoga,as prescribed in the Tantrāloka.


Shiva is the Shrimanta, being  an epithet of Shiva, and it is  also like  the Ashvatha tree.Shri Krishna says in the Bhagwadgita that of all the trees,take the  Divinity  as the Ashvatha tree.
Shri  is  auspiciousness.It is the  illustrious,splendorous nature of Shiva,who abides in all the Tattvas of the
manifestation,from Prithvi to the Shiva Tattva.It is both Bheda and Abheda Bhumikā,within Tattvas. The mutual relationship between Shiva and Shaivite  lies in pure delight,through Pratyabignyā.It is  impenetrable,voieless,occult,and omnipotent.it is known as the Gyān Deepa,
within the cave of Avidyā —ignorance, which is the cause of bondage.The grace of Shiva  brings nearness,making the devotee to explore the
further heights of Shivoham.Aham Asmi Roopavāna -----Shiva Shaiva,Kevaloham.


---Chamanlal Raina