Sunday, August 18, 2024

*✡रक्षाबंधन

· *🌹🙏जय जय श्री राधेश्याम शरणागतम् 🙏🌹* *🌻🙏जय देव ऋषि नारद भगवान शरणागतम् 🙏🌻* *✡रक्षाबंधन 19 अगस्त शुभ मुहूर्त व पौराणिक कथा ✡* रक्षा बंधन का पर्व हर साल सावन माह की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है. इस दिन बहनें अपने भाइयों को राखी बांधती हैं और उनकी लंबी उम्र की कामना करती हैं। रक्षा बंधन के दिन बहनें शुभ मुहूर्त पर अपने भाइयों की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधती हैं ताकि उनका जीवन धन-धान्य से भरा रहे और उन्हें किसी भी तरह के संघर्ष का सामना ना करना पड़े. वहीं भाई, बहनों को उनकी रक्षा का वचन देते हैं. *✡ रक्षा बंधन का शुभ मुहूर्त ✡* इस साल 19 अगस्त 2024 को पूर्णिमा तिथि सुबह 03 बजकर 38 मिनट पर शुरू होगी और और 19 अगस्त 2024 को ही रात्रिकाल 11 बजकर 55 मिनट पर समाप्त होगी। ➡️19 अगस्त को पूर्णिमा के साथ ही भद्रा काल आरम्भ हो जायेगा तथा भद्रा काल मे रक्षाबंधन❌ वर्जित होता है। ➡️रक्षाबंधन पर भद्रा का समय सुबह सूर्योदय से दोपहर 1:32 तक रहेगा। ➡️शुभ मुहूर्त-:- दोपहर 2•07 से 8•20 तक रहेगा। इस दौरान किसी भी समय रक्षाबंधन कर सकते है। ✡भद्रा में क्यों नहीं बांधी जाती राखी?✡ रक्षाबंधन पर भद्राकाल में राखी नहीं बांधनी चाहिए। इसके पीछे एक पौराणिक कथा भी है। लंकापति रावण की बहन ने भद्राकाल में ही उनकी कलाई पर राखी बांधी थी और एक वर्ष के अंदर उसका विनाश हो गया था। भद्रा शनिदेव की बहन थी।भद्रा को ब्रह्मा जी से यह श्राप मिला था कि जो भी भद्रा में शुभ या मांगलिक कार्य करेगा, उसका परिणाम अशुभ ही होगा। ❌रक्षाबंधन में भूलकर भी ना लें ऐसी राखी रक्षा बंधन से कई दिन पहले ही मार्केट में राखियां बिकने लगती हैं. इस दौरान मार्केट में अलग-अलग प्रकार की राखियां बिकती हैं. ऐसे में अगर आप भी अपने भाइयों के लिए राखी खरीदने जा रही हैं तो कुछ बातों का खास ख्याल रखें. आप अपने भाई को ऐसी राखियां ना बाधें जिससे उनकी लम्बी उम्र के बजाय उन पर मुसीबत आ जाए। ✡❌रक्षाबंधन पर भूलकर भी कौन-सी राखी नहीं लेनी चाहिए. राखी लेते समय हर बहन यह सोचती हैं कि वह अपने भाई के लिए ऐसी राखी ले जो बहुत सुंदर हो और राखी को देखते ही भाई खुश हो जाए. लेकिन क्या आप जानते हैं राखी के कुछ नकारात्मक प्रभाव भी हो सकते हैं. राखी लेते समय इस बात का ध्यान रखें कि ज्यादा बड़े आकार की राखी खरीदने से बचें. आकार में बड़ी होने के कारण यह राखी आसानी से टूट भी सकती है जिससे आपके भाई को अपने जीवन में कई तरह के कष्टों का सामना करना पड़ सकता है. इससे आप दोनों के रिश्ते पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है. राखी लेते समय इस बात का भी ख्याल रखें कि राखी में काला रंग ना हो. काले रंग को सकारात्मकता और नकारात्मकता दोनों का ही प्रतीक माना जाता है लेकिन पूजा सामग्री में काले रंग का इस्तेमाल करना वर्जित होता है. ऐसे में जिन राखियों में काला रंग होता है, उन्हें शुभ नहीं माना जाता . इसलिए कोशिश करें कि राखी में काला रंग ना हो. आप अपने भाई के लिए चांदी की छोटे आकार की राखी ले सकती हैं. साथ ही आप ऐसी राखी भी ले सकती हैं जिसमें ओम या स्वास्तिक का चिह्न बना हो। अगर आपके घर में कोई पुरानी राखी पड़ी है तो उसे ऐसे ही फेंकने की गलती ना करें, ऐसा करना राखी का अपमान माना जाता है. आप राखी को उतारकर बहती हुई नदी या पानी में प्रवाहित करे। *✡रक्षाबंधन (पौराणिक कथा)✡* पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, माता लक्ष्मी ने राजा बलि को सबसे पहले राखी बांधी थी। एक बार राजा बलि ने 100 यज्ञ पूरा करके स्वर्ग पर आधिपत्य का प्रयास किया, इससे इंद्र डर गए। वे भगवान विष्णु के पास गए और उनसे रक्षा का निवेदन किया। तब भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण किया। वे वामन अवतार में राजा बलि के पास गए और भिक्षा में तीन पग जमीन मांगी। बलि ने उनको तीन पग देने का वचन दिया। तब भगवान विष्णु ने दो पग में सारा भूलोक और ब्रह्मलोक नाप लिया। यह देखकर राजा बलि समझ गए कि यह वामन व्यक्ति कोई साधारण नहीं हो सकता है। उन्होंने अपना सिर आगे कर दिया। यह देखकर भगवान विष्णु राजा बलि से प्रसन्न हुए और उनसे वर मांगने को कहा। साथ ही बलि को पाताल लोक में रहने को कहा। तब राजा बलि ने कहा कि हे प्रभु! पहले आप वचन दें कि जो वह मांगेंगे, वह आप उनको प्रदान करेंगे। उनसे छल न करेंगे। भगवान विष्णु ने उनको वचन दिया। तब बलि ने कहा कि वह पाताल लोक में तभी रहेंगे, जब आप उनके आंखों के सामने हमेशा प्रत्यक्ष रहेंगे। यह सुनकर विष्णु भगवान दुविधा में पड़ गए। उन्होंने सोचा कि राजा बलि ने तो उनको वचन बन्धन में बाँध दिया। अपने वचन में बंधे भगवान विष्णु भी पाताल लोक में राजा बलि के यहां रहने लगे। इधर माता लक्ष्मी विष्णु भगवान का इंतजार कर रही थीं। काफी समय बीतने के बाद भी नारायण नहीं आए। इसी बीच नारद जी ने बताया ​कि वे तो अपने दिए वचन के कारण राजा बलि के पास रह रहे हैं। माता लक्ष्मी ने नारद से उपाय पूछा, तो उन्होंने कहा कि आप राजा बलि को भाई बना लें और उनसे रक्षा का वचन लें। तब माता लक्ष्मी ने एक महिला का रूप धारण किया और राजा बलि के पास गईं। रोती हुई महिला को देखकर बलि ने कारण पूछा। उन्होंने कहा कि उनका कोई भाई नहीं है। इस पर बलि ने उनको अपना धर्म बहन बनाने का प्रस्ताव दिया। जिस पर माता लक्ष्मी बलि को रक्षा सूत्र बांधीं और रक्षा का वचन लिया। दक्षिणा में उन्होंने बलि से भगवान विष्णु को मांग लिया। इस प्रकार माता लक्ष्मी ने बलि को रक्षा सूत्र बांधकर भाई बनाया, साथ ही भगवान विष्णु को भी अपने दिए वचन से मुक्त करा लिया

यज्ञोपवीत में तीन लड़, नौ तार और 96 चौवे ही क्यों

यज्ञोपवीत में तीन लड़, नौ तार और 96 चौवे ही क्यों? ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ यज्ञोपवीत के तीन लड़, सृष्टि के समस्त पहलुओं में व्याप्त त्रिविध धर्मों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करते हैं। तैत्तिरीय संहिता 6, 3, 10, 5 के अनुसार तीन लड़ों से तीन ऋणों का बोध होता है। ब्रह्मचर्य से ऋषिऋण, यज्ञ से देवऋण और प्रजापालन से पितृऋण चुकाया जाता है। ब्रह्मा, विष्णु और महेश यज्ञोपवीतधारी द्विज की उपासना से प्रसन्न होते हैं। त्रिगुणात्मक तीन लड़ बल, वीर्य और ओज को बढ़ाने वाले हैं, वेदत्रयी, ऋक, यजु, साम की रक्षा करती हैं। सत, रज व तम तीन गुणों की सगुणात्मक वृद्धि करते हैं। यह तीनों लोकों के यश की प्रतीक हैं। माता, पिता और आचार्य के प्रति समर्पण, कर्तव्यपालन, कर्तव्यनिष्ठा की बोधक हैं। सामवेदीय छान्दोग्यसूत्र में लिखा है-ब्रह्माजी ने तीन वेदों से तीन लड़ों का सूत्र बनाया विष्णु ने ज्ञान, कर्म, उपासना इन तीनों कांडों से तिगुना किया और शिवजी ने गायत्री से अभिमंत्रित कर उसमें ब्रह्म गांठ लगा दी। इस प्रकार यज्ञोपवीत नौ तार और ग्रंथियां समेत बनकर तैयार हुआ। यज्ञोपवीत के नौ सूत्रों में नौ देवता वास करते हैं-1. ओंकार-ब्रह्म, 2. अग्नि - तेज, 3. अनंत-धैर्य, 4. चंद्र-शीतल प्रकाश, 5. पितृगण-स्नेह, 6. प्रजापति-प्रजापालन, 7. वायु-स्वच्छता 8. सूर्य-प्रताप, 9. सब देवता- समदर्शन। इन नौ देवताओं के, नौ गुणों को धारण करना भी नौ तार का अभिप्राय है। यज्ञोपवीत धारण करने वाले को देवताओं के नौ गुण-ब्रह्म, परायणता, तेजस्विता, धैर्य, नम्रता, दया, परोपकार, स्वच्छता और शक्ति संपन्नता को निरंतर अपनाने के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए। यज्ञोपवीत के नौ धागे नौ सद्गुणों के प्रतीक भी माने जाते हैं। ये हृदय में प्रेम, वाणी में माधुर्य, व्यवहार में सरलता, नारी मात्र के प्रति पवित्र भावना, कर्म में कला और सौंदर्य की अभिव्यक्ति, सबके प्रति उदारता और सेवा भावना, शिष्टाचार और अनुशासन, स्वाध्याय एवं सत्संग, स्वच्छता, व्यवस्था और निरालस्यता माने गए हैं, जिन्हें अपनाने का निरंतर प्रयत्न करना चाहिए। वेद और गायत्री के अभिमत को स्वीकार करना और यज्ञोपवीत पहनकर ही गायत्री मंत्र का जाप करना। 96 चौवे (चप्पे) लगाने का अभिप्राय है, क्योंकि गायत्री मंत्र में 24 अक्षर हैं और वेद 4 हैं। इस प्रकार चारों वेदों के गायत्री मंत्रों के कुल ग

Sunday, August 11, 2024

Tulsidas

Tulsidas (1541-1623) was an Indian writer. He wrote many books which are manifestations of Sanatan dharma and Indian ideology. His most famous book is the Ramcharitmanas. This book was written in a language called Awadhi, a dialect of Hindi. The book tells the story of Lord Rama and his war and victory over Ravan, the king of Lanka. Rama fought for his wife Sita and brought her back from Lanka to Ayodhya. Another book written by Tulsidas is Kavitavali. Tulsidas was born in Soron sukar kshetra,kasganj, in what is now Uttar Pradesh, in Samvat 1589 or 1532 A.D. He was a Sarayuparina Brahmin by birth and is regarded as an incarnation of Valmiki, the author of the Ramayana. His father's name was Atmaram Dubey and his mother's name Hulsi. Tulsidas conceived of god in the form of Rama. Tulsidas's composition 'Ramcharitmanas.' written in Awadhi is important both as an expression of his devotion and as a literary work. His devotion to the literary world is very important. He founded the Sankatmochan Temple dedicated to Lord Hanuman in Varanasi. Tulsidas wrote several books which is famous among Indians and throughout the World. Tulsidas (born 1543?, probably Rajapur, India—died 1623, Varanasi) was an Indian Vaishnavite (devotee of the deity Vishnu) poet whose principal work, the Hindi Ramcharitmanas (“Sacred Lake of the Acts of Rama”), remains the most-popular version of the story of Rama. The Ramcharitmanas expresses the religious sentiment of bhakti (“loving devotion”) to Rama, a popular avatar (incarnation) of the Hindu deity Vishnu. Although Tulsidas was above all a devotee of Rama, he remained a Smarta Vaishnavite, following the more generally accepted traditions and customs of Hinduism rather than a strict sectarian outlook. His eclectic approach to doctrinal questions meant that he was able to rally wide support for the worship of Rama in northern India, and the success of the Ramcharitmanas has been a prime factor in the replacement of the cult of Krishna (another popular avatar of Vishnu) with that of Rama as the dominant religious influence in that area.Little is known about Tulsidas’s life. He lived most of his adult life at Varanasi. The Ramcharitmanas was written between 1574 and 1576/77. A number of early manuscripts are extant—some fragmentary—and one is said to be an autograph. The oldest complete manuscript is dated 1647. The poem, written in Awadhi, an Eastern Hindi dialect, consists of seven cantos of unequal lengths. Although the ultimate source of the central narrative is the Sanskrit Ramayana by the poet Valmiki, Tulsidas’s principal immediate source was the Adhyatma Ramayana, a late medieval recasting of the epic that had sought to harmonize Advaita (“Nondual”) Vedanta theology and the worship of Rama. The influence of the Bhagavata-purana, the chief scripture of Krishna worshipers, is also discernible, as is that of a number of minor sources. Eleven other works are attributed with some certainty to Tulsidas. These include Krishna gitavali, a series of 61 songs in honour of Krishna; Vinay pattrika, a series of 279 verse passages addressed to Hindu sacred places and deities (chiefly Rama and Sita); and Kavitavali, narrating several incidents from the story of Rama.