Saturday, July 7, 2018

कौन सा रुद्राक्ष पहने , किसके लिए है लाभ , रुद्राक्ष पहने के नियम ( Benefits of Rudraksh )

1 से 14 मुखी रुद्राक्ष की सम्पूर्ण जानकारी


रुद्राक्ष की खासियत यह है कि इसमें एक अनोखे तरह का स्पदंन होता है। जो आपके लिए ऊर्जा का एक सुरक्षा कवच बना देता है, जिससे बाहरी ऊर्जाएं आपको परेशान नहीं कर पातीं.हर इच्छा की पूर्ति करता है रुद्राक्ष - कहते हैं भगवान शिव को प्रसन्न करना बेहद आसान है। वह इतने भोले हैं कि जो भी उन्हें मन से याद करता है वह उसकी हर इच्छा को पूरी करते हैं। शायद यही वजह है कि विनाशक की भूमिका निभाने वाले भगवान शिव को उनके भक्त भोलेनाथ कहते हैं।



रुद्र का मतलब भगवान शंकर (शिव) है। अक्ष आंख को कहते हैं। इन दोनों शब्दों से रुद्राक्ष (Rudraksh) बना। रुद्राक्ष मूल रूप से पर्वतीय क्षेत्र में होता है। 

 शिव का अर्थ ही कल्याण है तो यह रुद्राक्ष कल्याण के लिए ही धरती पर आया है। इसके अनेक नाम हैं रुद्राक्ष, शिवाक्ष, भूतनाशक, पावन, नीलकंठाक्ष, हराक्ष, शिवप्रिय, तृणमेरु, अमर, पुष्पचामर, रुद्रक, रुद्राक्य, अक्कम, रूद्रचल्लू आदि।

माना जाता है कि रुद्राक्ष इंसान को हर तरह की हानिकारक ऊर्जा से बचाता है। इसका इस्तेमाल सिर्फ तपस्वियों के लिए ही नहीं, बल्कि सांसारिक जीवन में रह रहे लोगों के लिए भी किया जाता है। जानिए, कैसे इंसानी जीवन में नकारात्मकता को कम करने में मदद करता है रुद्राक्ष:

 रुद्राक्ष वृक्ष और फल दोनों ही पूजनीय हैं। मानव के अनेकों रोग, शोक, बाधा नष्ट करने की शक्ति रुद्राक्ष में है। इसमें चुम्बकीय और विद्युत ऊर्जा से शरीर को रुद्राक्ष का अलग-अलग लाभ होता है। 

 रुद्राक्ष की खासियत यह है कि इसमें एक अनोखे तरह का स्पदंन होता है। जो आपके लिए आप की ऊर्जा का एक सुरक्षा कवच बना देता है, जिससे बाहरी ऊर्जाएं आपको परेशान नहीं कर पातीं। इसीलिए रुद्राक्ष ऐसे लोगों के लिए बेहद अच्छा है जिन्हें लगातार यात्रा में होने की वजह से अलग-अलग जगहों पर रहना पड़ता है। आपने गौर किया होगा कि जब आप कहीं बाहर जाते हैं, तो कुछ जगहों पर तो आपको फौरन नींद आ जाती है, लेकिन कुछ जगहों पर बेहद थके होने के बावजूद आप सो नहीं पाते।

इसकी वजह यह है कि अगर आपके आसपास का माहौल आपकी ऊर्जा के अनुकूल नहीं हुआ तो आपका उस जगह ठहरना मुश्किल हो जाएगा। चूंकि साधु-संन्यासी लगातार अपनी जगह बदलते रहते हैं, इसलिए बदली हुई जगह और स्थितियों में उनको तकलीफ हो सकती है। उनका मानना था कि एक ही स्थान पर कभी दोबारा नहीं ठहरना चाहिए। इसीलिए वे हमेशा रुद्राक्ष पहने रहते थे। आज के दौर में भी लोग अपने काम के सिलसिले में यात्रा करते और कई अलग-अलग जगहों पर खाते और सोते हैं। जब कोई इंसान लगातार यात्रा में रहता है या अपनी जगह बदलता रहता है, तो उसके लिए रुद्राक्ष बहुत सहायक होता है।

रुद्राक्ष नकारात्मक ऊर्जा के बचने के एक असरदार कवच की तरह काम करता है। कुछ लोग नकारात्मक शक्ति का इस्तेमाल करके दूसरों को नुकसान पहुंचाते हैं। यह अपने आप में एक अलग विज्ञान है। अथर्व वेद में इसके बारे में विस्तार से बताया गया है कि कैसे ऊर्जा को अपने फायदे और दूसरों के अहित के लिए प्रयोग में लाया जा सकता है। 

रुद्राक्ष एक खास तरह के पेड़ का बीज है। ये पेड़ आमतौर पर पहाड़ी इलाकों में एक खास ऊंचाई पर, खासकर हिमालय और पश्चिमी घाट सहित कुछ और जगहों पर भी पाए जाते हैं। 

रुद्राक्ष का पेड़  - rudraksh tree in india

रुद्राक्ष का पेड़ 




अफसोस की बात यह है लंबे समय से इन पेड़ों की लकड़ियों का इस्तेमाल भारतीय रेल की पटरी बनाने में होने की वजह से, आज देश में बहुत कम रुद्राक्ष के पेड़ बचे हैं। आज ज्यादातर रुद्राक्ष नेपाल, बर्मा, थाईलैंड या इंडोनेशिया से लाए जाते हैं।

कई वर्षों तक तपस्या में लीन रहे भगवान शिव ने जब अपनी आंख खोली तब उनकी आंखों में से आंसू धरती पर गिरे। जहां पर शिव की आंख का आंसू गिरा था वहां एक रुद्राक्ष का पेड़ बन गया। शिव के आंसू कहे जाने वाले रुद्राक्ष 14 प्रकार के होते हैं जिनमें से प्रत्येक व्यक्ति की अलग-अलग इच्छाओं को पूरा करने की चमत्कारिक शक्ति रखता है। कहते हैं कि पूर्ण विधि-विधान और शिव के आशीर्वाद के साथ रुद्राक्ष को पहना जाए तो उसे पहनने मात्र से चिंताएं दूर हो जाती हैं।

रुद्राक्ष विभिन्न तरह के होते हैं और इसी के आधार पर इनक महत्व और उपयोगिता भी भिन्न-भिन्न होती है। लेकिन रुद्राक्ष धारण करने के कुछ नियम हैं जो समान हैं। आप किसी भी तरह का रुद्राक्ष क्यों ना धारण करने जा रहे हों, या किसी विशेष उद्देश्य के तहत रुद्राक्ष धारण करना हो...सभी के लिए कुछ नियम हैं जिनका पालन करना अत्यंत आवश्यक है। इन नियमों का पालन किए बिना रुद्राक्ष का सही फल प्राप्त नहीं होता।

सबसे पहले तो आपको इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि रुद्राक्ष धारण करने से पहले उसकी जांच अत्यंत आवश्यक है। अगर रुद्राक्ष असली है ही नहीं तो इसे धारण करने का कोई लाभ आपको प्राप्त नहीं होगा। खंडित, कांटों से रहित या कीड़ा लगा हुआ रुद्राक्ष कदापि धारण ना करें। अगर आपने रुद्राक्ष का प्रयोग जाप के लिए करना है तो छोटे रुद्राक्ष ही आपके लिए सही हैं, लेकिन अगर रुद्राक्ष धारण करना है तो बड़े रुद्राक्ष का ही चयन करें।रुद्राक्ष के आकार की तरह उसके दानों की संख्या का भी अपना महत्व है। अगर आपको रुद्राक्ष का जाप तनाव मुक्ति के लिए करना है तो 100 दानों की माला का प्रयोग करना चाहिए। अगर आपकी मनोकामना अच्छी सेहत और स्वास्थ्य से जुड़ी है तो आपको 140 दानों की माला का प्रयोग करना चाहिए। धन प्राप्ति के लिए 62 दानों की माला का प्रयोग करें और संपूर्ण मनोकामना पूर्ति के लिए 108 दानों की माला का प्रयोग करें।

रुद्राक्ष से संबंधित एक महत्वपूर्ण नियम के अनुसार आप जिस भी माला से जाप करते हैं उस माला को कदापि धारण ना करें और जिस माला को धारण करते हैं उसे कभी भी जाप के प्रयोग में ना लाएं।
रुद्राक्ष को बिना शुभ मुहूर्त के भी धारण ना करें। सर्वप्रथम उसकी प्राण प्रतिष्ठा करवाएं और उसके बाद ही रुद्राक्ष धारण करें।



हिन्दू शास्त्रों के अनुसार ग्रहण काल में, कर्क और मकर संक्रांति के दिन, अमावस्या, पूर्णिमा और पूर्णा तिथि पर रुद्राक्ष धारण करने से समस्त पापों से मुक्ति मिलती है।

जिन लोगों ने रुद्राक्ष धारण किया है, उनके लिए मांस, मदिरा या किसी भी प्रकार के नशे को करना वर्जित है। इसके अलावा लहसुन और प्याज के सेवन से भी बचना चाहिए।

रुद्राक्ष धारण करने से पूर्व उसे भगवान शिव के चरणों से स्पर्श करवाएं। वैसे तो शास्त्रों में विशेष स्थिति में कमर पर भी रुद्राक्ष धारण करने की बात कही गई है लेकिन सामान्यतौर पर इसे नाभि के ऊपरी हिस्सों पर ही धारण करें। रुद्राक्ष को कभी भी अंगूठी में धारण नहीं करना चाहिए, ऐसा करने से इसकी पवित्रता नष्ट हो जाती है।

रुद्राक्ष धारण किए हुए कभी भी प्रसूति गृह, श्मशान या किसी की अंतिम यात्रा में शामिल ना हों। मासिक धर्म के दौरान स्त्रियों को रुद्राक्ष उतार देना चाहिए। इसके अलावा रात को सोने से पहले भी रुद्राक्ष उतार दें।

रुद्राक्ष को दिव्य औषधि कहा गया है, जो सकारात्मक ऊर्जा और प्रभावी तरंगों से बनी है। इस औषधि का पूर्ण लाभ लेने के लिए नियमित तौर पर इसकी साफ-सफाई अनिवार्य है। जब कभी रुद्राक्ष शुष्क प्रतीत होने लगे तो इसे तेल में डुबोकर कुछ देर के लिए रख दें।

मूलत: रुद्राक्ष को सोने या चांदी के आभूषण में ही धारण करें, लेकिन अगर किसी कारणवश यह उपलब्ध नहीं है तो आपको ऊनी या रेशमी धागे की सहायता से रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।

रुद्राक्ष धारण करने की सम्पूर्ण विधि  - which rudraksha is best

रुद्राक्ष धारण करने की सम्पूर्ण विधि 



रुद्राक्ष धारण करने से पूर्व पूजाकर्म और जाप करना होता है, लेकिन सामान्य हालातों में इसे संभव कह पाना मुश्किल है इसलिए जब भी आपको रुद्राक्ष धारण करने का मन करे या ज्योतिष आपको सलाह दे तो सर्वप्रथम यह ध्यान रखें कि धारण करने का दिन सोमवार ही हो।

पहनने से पहले रुद्राक्ष को कच्चे दूध, गंगा जल, से पवित्र करें और फिर केसर, धूप और सुगंधित पुष्पों से शिव पूजा करने के बाद ही इसे धारण करें।


एक मुखी रुद्राक्ष

एकमुखी रुद्राक्ष दुर्लभ माना जाता है | एक मुखी रुद्राक्ष को शिव के सबसे करीब माना जाता है। वे लोग जो धन-दौलत और भौतिक चीजों का मोह रखते हैं उन्हें एक मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। रुद्राक्ष धारण करने से पहले ऊँ ह्रीं नम: मंत्र का जाप करना चाहिए। इस मंत्र का जाप 108 बार (एक माला) करना चाहिए तथा इसको सोमवार के दिन धारण करें।

इसका मूल्य विशेषतः अत्यधिक होता है। यह अभय लक्ष्मी दिलाता है। इसके धारण करने पर सूर्य जनित दोषों का निवारण होता है। नेत्र संबंधी रोग, सिर दर्द, हृदय का दौरा, पेट तथा हड्डी संबंधित रोगों के निवारण हेतु इसको धारण करना चाहिए। यह यश और शक्ति प्रदान करता है। इसे धारण करने से आध्यात्मिक उन्नति, एकाग्रता, सांसारिक, शारीरिक, मानसिक तथा दैविक कष्टों से छुटकारा, मनोबल में वृद्धि होती है। कर्क, सिंह और मेष राशि वाले इसे माला रूप में धारण अवश्य करें।



दो मुखी रुद्राक्ष

शिव का यह रुद्राक्ष हर इच्छा पूरी करता है।दोमुखी रुद्राक्ष को देवदेवेश्वर कहा गया है। सभी प्रकार की मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए इसे धारण करना चाहिए।  इसे धारण करते समय ॐ नम: का जाप करना चहिए।

यह चंद्रमा के कारण उत्पन्न प्रतिकूलता के लिए धारण किया जाता है। हृदय, फेफड़ों, मस्तिष्क, गुर्दों तथा नेत्र रोगों में इसे धारण करने पर लाभ पहुंचता है। यह ध्यान लगाने में सहायक है। इसे धारण करने से सौहार्द्र लक्ष्मी का वास रहता है। इससे भगवान अर्द्धनारीश्वर प्रसन्न होते हैं। उसकी ऊर्जा से सांसारिक बाधाएं तथा दाम्पत्य जीवन सुखी रहता है दूर होती हैं। इसे िस्त्रियों  के लिए उपयोगी माना गया है। संतान जन्म, गर्भ रक्षा तथा मिर्गी रोग के लिए उपयोगी माना गया है।

धनु व कन्या राशि वाले तथा कर्क, वृश्चिक और मीन लग्न वालों के लिए इसे धारण करना लाभप्रद होता है।



तीन मुखी रुद्राक्ष

तीन मुखी रुद्राक्ष को अनल (अग्न‍ि) के समान बताया गया है | शिवपुराण के अनुसार तीन मुखी रुद्राक्ष कठिन साधाना के बराबर फल देने वाला बताया गया है। जिन लोगों को विद्या प्राप्ति की अभिलाषा है | व्यक्ति की हर इच्छा को पूरा करने का सबसे तेज माध्यम है तीन मुखी रुद्राक्ष। इसे पहनने से जल्दी से जल्दी इच्छा पूरी होती है। इसे पहनते समय ऊँ क्लीं नम: का जाप करना चाहिए। इस मंत्र को प्रतिदिन 108 बार यथावत पढ़ें।

मंगल इसका अधिपति ग्रह है। मंगल ग्रह निवारण हेतु इसे धारण किया जाता है की प्रतिकूलता के। यह मूंगे से भी अधिक प्रभावशाली है। मंगल को लाल रक्त कण, गुर्दा, ग्रीवा, जननेन्द्रियों का कारक ग्रह माना गया है। अतः तीन मुखी रुद्राक्ष को ब्लडप्रेशर, चेचक, बवासीर, रक्ताल्पता, हैजा, मासिक धर्म संबंधित रोगों के निवारण हेतु धारण करना चाहिए। इसके धारण करने से श्री, तेज एवं आत्मबल मिलता है। यह सेहत व उच्च शिक्षा के लिए शुभ फल देने वाला है। इसे धारण करने से दरिद्रता दूर होती है तथा पढ़ाई व व्यापार संबंधित प्रतिस्पर्धा में सफलता मिलती है। अग्नि स्वरूप होने के कारण इसे धारण करने से अग्नि देव प्रसन्न होते हैं, ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है तथा शरीर स्वस्थ रहता है। मेष, सिंह, धनु राशि वाले तथा मेष, कर्क, सिंह, वृश्चिक, धनु तथा मीन लग्न के जातकों को इसे अवश्य धारण करना चाहिए। इसे धारण करने से सर्वपाप नाश होते हैं।


चार मुखी रुद्राक्ष

इस रुद्राक्ष को ब्रह्मा का स्वरूप कहा जाता है। इसे धारण करने से व्यक्ति को धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसे धारण करने का मंत्र है ऊँ ह्रीं नम:।

बुध ग्रह की प्रतिकूलता को दूर करने के लिए इसे धारण करना चाहिए। मानसिक रोग, पक्षाघात, पीत ज्वर, दमा तथा नासिका संबंधित रोगों के निदान हेतु इसे धारण करना चाहिए। चार मुखी रुद्राक्ष धारण करने से वाणी में मधुरता, आरोग्य तथा तेजस्विता की प्राप्ति होती है। इसमें पन्ना रत्न के समान गुण हैं। सेहत, ज्ञान, बुद्धि तथा खुशियों की प्राप्ति में सहायक है। इसे चारों वेदों का रूप माना गया है तथा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चतुर्वर्ग फल देने वाला है। इसे धारण करने से सांसारिक दुःखों, शारीरिक, मानसिक, दैविक कष्टों तथा ग्रहों के कारण उत्पन्न बाधाओं से छुटकारा मिलता है। वृष, मिथुन, कन्या, तुला, मकर व कुंभ लग्न के जातकों को इसे धारण करना चाहिए। सोमवार को यह मंत्र 108 बार जपकर धारण करें।


पांच मुखी रुद्राक्ष

पंचमुखी रुद्राक्ष को स्वयं रुद्र कालाग्नि‍ के समान बताया गया है. इसे धारण करने से शांत व संतोष की प्राप्त‍ि होती है | वे लोग जो अपनी हर परेशानी से छुटकारा पाना चाहते हैं उन्हें पांच मुखी रुद्राक्ष पहनना चाहिए। जिन भक्तों को सभी परेशानियों से मुक्ति चाहिए और मनोवांछित फल प्राप्त करने की इच्छा है, उन्हें पंचमुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। इसका मंत्र है ऊँ ह्रीं नम:। सोमवार की सुबह मंत्र एक माला जप कर, इसे काले धागे में विधि पूर्वक धारण करना चाहिए। यह रुद्राक्ष सभी प्रकार के पापों के प्रभाव को भी कम करता है।

बृहस्पति ग्रह की प्रतिकूलता को दूर करने के लिए इसको धारण करना चाहिए। इसे धारण करने से निर्धनता, दाम्पत्य सुख में कमी, जांघ व कान के रोग, मधुमेह जैसे रोगों का निवारण होता है। पांच मुखी रुद्राक्ष धारण करने वालों को सुख, शांति व प्रसिद्धि प्राप्त होते हैं। इसमें पुखराज के समान गुण होते हैं। यह हृदय रोगियों के लिए उत्तम है। इससे आत्मिक विश्वास, मनोबल तथा ईश्वर के प्रति आसक्ति बढ़ती है। मेष, कर्क, सिंह, वृश्चिक, धनु, मीन वाले जातक इसे धारण कर सकते हैं।



छ: मुखी रुद्राक्ष

इस रुद्राक्ष को कार्तिकेय का रूप कहा जाता है। कार्तिकेय भगवान शिव के पुत्र हैं।वे लोग जो इसे धारण करते हैं उन्हें ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति मिलती है। इसे धारण करने का मंत्र है ॐ ह्रीं हुम नम:। इसे धारण करने के पश्चात् प्रतिदिन ‘ऊँ ह्रीं हु्रं नमः’ मंत्र का एक माला जप करें।

शुक्र ग्रह की प्रतिकूलता होने पर इसे अवश्य धारण करना चाहिए। नेत्र रोग, गुप्तेन्द्रियों, पुरुषार्थ, काम-वासना संबंधित व्याधियों में यह अनुकूल फल प्रदान करता है। इसके गुणों की तुलना हीरे से होती है। यह दाईं भुजा में धारण किया जाता है। इसे प्राण प्रतिष्ठित कर धारण करना चाहिए तथा धारण के समय ‘ऊँ नमः शिवाय’ मंत्र का जप अवश्य करना चाहिए। इसे हर राशि के बच्चे, वृद्ध, स्त्री, पुरुष कोई भी धारण कर सकते हैं। गले में इसकी माला पहनना अति उत्तम  है। कार्तिकेय तथा गणेश का स्वरूप होने के कारण इसे धारण करने से ऋद्धि-सिद्धि की प्राप्ति होती है। इसे धारण करने वाले पर माँ पार्वती की कृपा होती है।

आरोग्यता तथा दीर्घायु प्राप्ति के लिए वृष व तुला राशि तथा मिथुन, कन्या, मकर व कुंभ लग्न वाले जातक इसे धारण कर लाभ उठा सकते हैं। 

सात मुखी रुद्राक्ष

सात मुखी रुद्राक्ष को अनंग बताया गया है वे लोग जिन्हें अत्याधिक धन की हानि हुई है और उनके पास इससे उबरने का कोई तरीका नहीं है, उन्हें इस रुद्राक्ष को पहनना चाहिए। इसे धारण करने से पहले ऊँ हुं नम: का जाप करना चाहिए। जो लोग गरीबी से मुक्ति चाहते हैं | इस रुद्राक्ष को धारण करने से गरीब व्यक्ति धनवान बन सकता है। इसका मंत्र है- ऊँ हुं नम:। इस मंत्र के साथ यह रुद्राक्ष धारण करें।  

इस रुद्राक्ष के देवता सात माताएं व हनुमानजी हैं। यह शनि ग्रह द्वारा संचालित है। इसे धारण करने पर शनि जैसे ग्रह की प्रतिकूलता दूर होती है तथा नपुंसकता, वायु, स्नायु दुर्बलता, विकलांगता, हड्डी व मांस पेशियों का दर्द, पक्षाघात, सामाजिक चिंता, क्षय व मिर्गी आदि रोगों में यह लाभकारी है। इसे धारण करने से कालसर्प योग की शांति में सहायता मिलती है। यह नीलम से अधिक लाभकारी है तथा किसी भी प्रकार का प्रतिकूल प्रभाव नहीं देता है। इसे गले व दाईं भुजा में धारण करना चाहिए। इसे धारण करने वाले की दरिद्रता दूर होती है तथा यह आंतरिक ज्ञान व सम्मान में वृद्धि करता है। इसे धारण करने वाला  प्रगति पथ पर चलता है तथा कीर्तिवान होता है। मकर व कुंभ राशि वाले, इसे धारण कर लाभ ले सकते हैं।


आठ मुखी रुद्राक्ष


शिवपुराण के अनुसार अष्टमुखी रुद्राक्ष भैरव महाराज का रूप माना जाता है। जो लोग इस रुद्राक्ष को धारण करते हैं, वे अकाल मृत्यु से शरीर का त्याग नहीं करते हैं। ऐसे लोग पूर्ण आयु जीते हैं। वे लोग जो रोग मुक्त जीवन जीना चाहते हैं उनके लिए आठ मुखी रुद्राक्ष एकदम उपयुक्त है। इस रुद्राक्ष के लिए मंत्र है ॐ हुम नम:।

आठ मुखी रुद्राक्ष में कार्तिकेय, गणेश और गंगा का अधिवास माना जाता है। राहु ग्रह की प्रतिकूलता होने पर इसे धारण करना चाहिए। मोतियाविंद, फेफड़े के रोग, पैरों में कष्ट, चर्म रोग आदि रोगों तथा राहु की पीड़ा से यह छुटकारा दिलाने में सहायक है। इसकी तुलना गोमेद से की जाती है। आठ मुखी रुद्राक्ष अष्ट भुजा देवी का स्वरूप है। यह हर प्रकार के विघ्नों को दूर करता है। इसे धारण करने वाले को अरिष्ट से मुक्ति मिलती है। इसे सिद्ध कर धारण करने से पितृदोष दूर होता है। मकर और कुंभ राशि वालों के लिए यह अनुकूल है। मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, कुंभ व मीन लग्न वाले इससे जीवन में सुख समृद्धि प्राप्त कर सकते हैं।



नौ मुखी रुद्राक्ष

इस रुद्राक्ष को नौ देवियों का स्वरूप कहा जाता है। यह रुद्राक्ष महाशक्ति के नौ रूपों का प्रतीक है। जो लोग नौमुखी रुद्राक्ष धारण करते हैं, वे सभी सुख-सुविधाएं प्राप्त करते हैं। इन लोगों को समाज में मान-सम्मान प्राप्त होता है।  समाज में प्रतिष्ठा की चाह रखने वाले लोगों को नौ मुखी रुद्राक्ष पहनना चाहिए। इसका मंत्र है- ऊँ ह्रीं हुं नम:। इस मंत्र के साथ यह रुद्राक्ष धारण करें। केतु ग्रह की प्रतिकूलता होने पर इसे धारण करना चाहिए। ज्वर, नेत्र, उदर, फोड़े, फुंसी आदि रोगों में इसे धारण करने से अनुकूल लाभ मिलता है। इसे धारण करने स केतु जनित दोष कम होते हैं। यह लहसुनिया से अधिक प्रभावकारी है। ऐश्वर्य, धन-धान्य, खुशहाली को प्रदान करता है। धर्म-कर्म, अध्यात्म में रुचि बढ़ाता है। मकर एवं कुंभ राशि वालों को इसे धारण करना चाहिए।


दस मुखी रुद्राक्ष

इसे विष्णु का स्वरूप माना जाता है।दस मुखी रुद्राक्ष में भगवान विष्णु तथा दसमहाविद्या का निवास माना गया है।  हर प्रकार की खुशियों को पाने की चाह रखने वाले लोगों को इस रुद्राक्ष को पहनना चाहिए जिसका मंत्र है ॐ ह्रीं नम:। जो लोग अपनी सभी इच्छाएं पूरी करना चाहते हैं, वे दसमुखी रुद्राक्ष पहन सकते हैं।  

इसे धारण करने पर प्रत्येक ग्रह की प्रतिकूलता दूर होती है। यह एक शक्तिशाली रुद्राक्ष है तथा इसमें नवरत्न मुद्रिका के समान गुण पाये जाते हैं। यह सभी कामनाओं को पूर्ण करने में सक्षम है। जादू-टोने के प्रभाव से यह बचाव करता है। ‘ऊँ नमः शिवाय’ मंत्र का जप करने से पूर्व इसे प्राण-प्रतिष्ठित अवश्य कर लेना चाहिए। मानसिक शांति, भाग्योदय तथा स्वास्थ्य का यह अनमोल खजाना है। सर्वग्रह इसके प्रभाव से शांत रहते हैं। मकर तथा कुंभ राशि वाले जातकों को इसे प्राण-प्रतिषिठत कर धारण करना चाहिए।


ग्यारह मुखी रुद्राक्ष

शिवपुराण के अनुसार ग्यारहमुखी रुद्राक्ष भगवान शिव के अवतार रुद्रदेव का रूप है। जो व्यक्ति इस रुद्राक्ष को धारण करता है, वह सभी क्षेत्रों में सफलता प्राप्त करता है। शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। ग्यारह मुखी रुद्राक्ष को रुद्रदेव का स्वरूप माना जाता है। हर क्षेत्र में सफलता पाने के लिए इसे पहनना चाहिए। इसका मंत्र है ॐ ह्रीं हुम नम:। जो इसे श‍िखा में धारण करता है, उसे कई हजार यज्ञ कराने का फल मिलता है.

ग्यारह मुखी रुद्राक्ष भगवान इंद्र का प्रतीक है। यह ग्यारह रुद्रों का प्रतीक है। इसे शिखा में बांधकर धारण करने से हजार अश्वमेध यज्ञ तथा ग्रहण में दान करने के बराबर फल प्राप्त होता है। इसे धारण करने से समस्त सुखों में वृद्धि होती है। यह विजय दिलाने वाला तथा आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करने वाला है। दीर्घायु व वैवाहिक जीवन में सुख-शांति प्रदान करता है। विभिन्न प्रकार के मानसिक रोगों तथा विकारों में यह लाभकारी है तथा जिस स्त्री को संतान प्राप्ति नहीं होती है इसे विश्वास पूर्वक धारण करने से बंध्या स्त्री को भी सकती है संतान प्राप्त हो। इसे धारण करने से बल व तेज में वृद्धि होती है। मकर व कुंभ राशि के व्यक्ति इसे धारण कर जीवन-पर्यंत लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

बारह मुखी रुद्राक्ष

इस रुद्राक्ष को बालों में पहना जाता है। इसे धारण करने का मंत्र है ऊँ क्रौं क्षौं रौं नम:। जो लोग बाहरमुखी रुद्राक्ष धारण करते हैं, उन्हें बारह आदित्यों की विशेष कृपा प्राप्त होती है। बारहमुखी रुद्राक्ष विशेष रूप से बालों में धारण करना चाहिए।

बारह मुखी रुद्राक्ष को विष्णु स्वरूप माना गया है। इसे धारण करने से सर्वपाप नाश होते हैं। इसे धारण करने से दोनों लोकों का सुख प्राप्त होता है तथा व्यक्ति भाग्यवान होता है। यह नेत्र ज्योति में वृद्धि करता है। यह बुद्धि तथा स्वास्थ्य प्रदान करता है। यह समृद्धि और आध्यात्मिक ज्ञान दिलाता है। दरिद्रता का नाश होता है। बढ़ता है मनोबल। सांसारिक बाधाएं दूर होती हैं तथा ऐश्वर्य की प्राप्ति होती हैेे तथा असीम तेज एवं बल की प्राप्ति होती है।



तेरह मुखी रुद्राक्ष


विश्वदेव के स्वरूप में देखे जाने वाले इस रुद्राक्ष को पहनने वाले लोगों का सौभाग्य चमकने लगता है। इसे धारण करने से पहले ॐ ह्रीं नम: मंत्र का जाप करना चाहिए। इस रुद्राक्ष को धारण करने से व्यक्ति भाग्यशाली बन सकता है। तेरहमुखी रुद्राक्ष से धन लाभ होता है। 

 यह समस्त कामनाओं एवं सिद्धियों को प्रदान करने वाला है। निः संतान को संतान तथा सभी कार्यों में सफलता मिलती है अतुल संपत्ति की प्राप्ति होती है तथा भाग्योदय होता है। यह समस्त शक्ति तथा ऋद्धि-सिद्धि का दाता है। यह कार्य सिद्धि प्रदायक तथा मंगलदायी है। 


चौदह मुखी रुद्राक्ष

इसे स्वयं शिव का स्वरूप कहा जाता है जो समस्त पापों से मुक्ति दिलाता है। इसका मंत्र है ॐ नम:। इस रुद्राक्ष को भी शिवजी का रूप माना गया है। इसे धारण करने वाले व्यक्ति को सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिल जाती है। चौदह मुखी रुद्राक्ष धारण करने से मनुष्य श‍िव के समान पवित्र हो जाता है.

यह भगवान शंकर का सबसे प्रिय रुद्राक्ष है। यह हनुमान जी का स्वरूप है। धारण करने वाले को परमपद प्राप्त होता है। इसे धारण करने से शनि व मंगल दोष की शांति होती है। दैविक औषधि के रूप में यह शक्ति बनकर शरीर को स्वस्थ रखता है। सिंह राशि वाले इसको धारण करें, तो उत्तम रहेगा।


कौन सा रुद्राक्ष पहने , किसके लिए है लाभ , रुद्राक्ष पहने के नियम ( Benefits of Rudraksh )

हर रुद्राक्ष का है एक विशेष मंत्र, पढ़ें विशेष जानकारी




******************************************************
रुद्राक्ष एक अमूल्य मोती है जिसे धारण करके या जिसका उपयोग करके व्यक्ति अमोघ फलों को प्राप्त करता है. भगवान शिव का स्वरूप रुद्राक्ष जीवन को सार्थक कर देता है इसे अपनाकर सभी कल्याणमय जीवन को प्राप्त करते हैं.रुद्राक्ष की अनेक प्रजातियां तथा विभिन्न प्रकार उपल्बध हैं, परंतु रुद्राक्ष की सही पहचान कर पाना एक कठिन कार्य है.


आजकल बाजार में सभी असली रुद्राक्ष को उपल्बध कराने की बात कहते हैं किंतु इस कथन में कितनी सच्चाई है इस बात का अंदाजा लगा पाना एक मुश्किल काम है. लालची लोग रुद्राक्ष पर अनेक धारियां बनाकर उन्हें बारह मुखी या इक्कीस मुखी रुद्राक्ष कहकर बेच देते हैं.

कभी-कभी दो रुद्राक्ष को जोड़कर एक रुद्राक्ष जैसे गौरी शंकर या त्रिजुटी रुद्राक्ष तैयार कर दिए जाता हैं. इसके अतिरिक्त उन्हें भारी करने के लिए उसमें सीसा या पारा भी डाल दिया जाता है, तथा कुछ रुद्राक्षों में हम सर्प, त्रिशुल जैसी आकृतियां भी बना दी जाती हैं.

रुद्राक्ष की पहचान को लेकर अनेक भ्रातियां भी मौजूद हैं. जिनके कारण आम व्यक्ति असल रुद्राक्ष की पहचान उचित प्रकार से नहीं कर पाता है एवं स्वयं को असाध्य पाता है. असली रुद्राक्ष का ज्ञान न हो पाना तथा पूजा ध्यान में असली रुद्राक्ष न होना पूजा व उसके प्रभाव को निष्फल करता है. अत: ज़रूरी है कि पूजन के लिए रुद्राक्ष का असली होना चाहिए.


रुद्राक्ष के समान ही एक अन्य फल होता है जिसे भद्राक्ष कहा जाता है, और यह रुद्राक्ष के जैसा हो दिखाई देता है इसलिए कुछ लोग रुद्राक्ष के स्थान पर इसे भी नकली रुद्राक्ष के रुप में बेचते हैं. भद्राक्ष दिखता तो रुद्राक्ष की भांति ही है किंतु इसमें रुद्राक्ष जैसे गुण नहीं होते.

असली रुद्राक्ष की पहचान के कुछ तरीके बताए जाते हैं जो इस प्रकार हैं.


रुद्राक्ष की पहचान के लिए रुद्राक्ष को कुछ घंटे के लिए पानी में उबालें यदि रुद्राक्ष का रंग न निकले या उस पर किसी प्रकार का कोई असर न हो, तो वह असली होगा.

रुद्राक्ष को काटने पर यदि उसके भीतर उतने ही घेर दिखाई दें जितने की बाहर हैं तो यह असली रुद्राक्ष होगा. यह परीक्षण सही माना जाता है,किंतु इसका नकारात्मक पहलू यह है कि रुद्राक्ष नष्ट हो जाता है.

रुद्राक्ष की पहचान के लिए उसे किसी नुकिली वस्तु द्वारा कुरेदें यदि उसमे से रेशा निकले तो समझें की रुद्राक्ष असली है.

दो असली रुद्राक्षों की उपरी सतह यानि के पठार समान नहीं होती किंतु नकली रुद्राक्ष के पठार समान होते हैं.

एक अन्य उपयोग द्वारा रुद्राक्ष के मनके को तांबे के दो सिक्कों के बीच में रखा जाए, तो थोड़ा सा हिल जाता है

क्योंकि रुद्राक्ष में चुंबकत्व होता है जिस की वजह से ऐसा होता है.

एकमुखी रुद्राक्ष को ध्यानपूर्वक देखने पर उस पर त्रिशूल या नेत्र के चिन्ह का आभास होता है. रुद्राक्ष के दानों को तेज धूप में काफी समय तक रखने से अगर रुद्राक्ष पर दरार न आए या वह टूटे नहीं तो असली माने जाते हैं.

रुद्राक्ष को खरीदने से पहले कुछ मूलभूत बातों का अवश्य ध्यान रखें  जैसे की  रुद्राक्ष में किडा़ न लगा हो, टूटा-फूटा न हो, पूर्ण गोल न हो,  जो रुद्राक्ष छिद्र करते हुए फट जाए इत्यादि रुद्राक्षों को धारण नहीं करना चाहिए .

अगर आप अपने जीवन को शुद्ध करना चाहते हैं तो रुद्राक्ष उसमें मददगार हो सकता है। जब कोई इंसान अध्यात्म के मार्ग पर चलता है, तो अपने लक्ष्य को पाने के लिए वह हर संभव उपाय अपनाने को आतुर रहता है। ऐसे में रुद्राक्ष निश्चित तौर पर एक बेहद मददगार जरिया साबित हो सकता है।

रुद्राक्ष धारण करने की सम्पूर्ण विधि 


यदि किसी कारणवश रुद्राक्ष के विशेषरुद्राक्ष मंत्रों से धारण न कर सके तो इस सरल विधि का प्रयोग करके धारणकर लें। रुद्राक्ष के मनकों को शुद्ध लाल धागे में माला तैयार करने के बादपंचामृत (गंगाजल मिश्रित रूप से) और पंचगव्य को मिलाकर स्नान करवाना चाहिए और प्रतिष्ठा के समय ॐ नमः शिवाय इस पंचाक्षर मंत्र को पढ़ना चाहिए। उसके पश्चात पुनः गंगाजल में शुद्ध करके निम्नलिखित मंत्र पढ़तेहुए चंदन, बिल्वपत्र, लालपुष्प, धूप, दीप द्वारा पूजन करके अभिमंत्रित करे और “ॐ तत्पुरुषाय विदमहे महादेवाय धीमहि तन्नो रूद्र: प्रचोदयात”। 108 बार मंत्र का जाप कर अभिमंत्रित करके धारण करना चाहिए।
 SOURCES :my UNIVERSE 
POSTED BY : VIPUL KOUL
 
 

No comments:

Post a Comment