Wednesday, October 3, 2018

A road leading to my Home

A road leading to my Home
Ashok Handoo ‘Khamosh’
एक सड़क जो मेरे घर को जाती है
(अशोक हण्डू ‘खामोश’)


नहीं ! मेरा घर कहीं खो नहीं गया है

मैं ही खो गया हूँ

कई बरसों से

मैं चलता जा रहा हूँ

बे-तहाशा, बद-हवास

एक सड़क, एक और सड़क, फिर एक और सड़क

इन्ही सड़कों में से एक सड़क

मेरे घर को जाती है

सच-मुच जाती है

मैं उसे पहचान लूँगा एक दिन

और फिर उस पर दौड़ पडूँगा

मुझे मालूम है वह जगह

जहाँ बाएं से एक छोटी सी गली निकलती है

दो सीढ़ियाँ नीचे और मेरे घर का दरवाज़ा है

वहाँ से जेहलिम नदी दिखती है

पिछली बाढ़ में तो घर के आँगन तक पहुँच गयी थी

बस दस बारह सीढ़ियाँ नीचे

और जेहलिम का घाट है

मुझे आज फिर तैरना है

एक क्रॉस, दो क्रॉस, तीन क्रॉस

और नहीं, मैं थक जाऊँगा

पुल तक बह जाऊँगा

और बीच वाले पिल्लर पर थोड़ी देर सुस्ता लूँगा

फिर यह क्रॉस पूरा करूँगा

बहुत समय हो गया ना

हमारे घर की घडी बंद पड़ी है

कई बरसों से

घर पहुँचते ही पहले घडी ठीक करूँगा

अपनी डॉगी ‘रूबी’ तो अभी भी

दरवाज़े पर इंतज़ार कर रही होगी

अगली टांगों पर सर टिकाये

बीच बीच में सर उठा कर देखती होगी

कभी सड़क की और

कभी नदी की और

मैं यहीं कहीं से तो आऊँगा

सारे रास्ते बंद पढ़ गए

कितने बम फूटे

कितनी गोलियां चलीं

कितनी लाशें बिछ गयीं

कितनी आग, कितना धुआँ

लोग तो बस भाग रहे हैं

यह सड़क, वह सड़क

सब घर की सड़क ढूंढ रहे हैं

और वही नहीं मिल रही

कितने साल बीत गए

मैं अभी भी ढूंढ रहा हूँ घर की सड़क

‘भाईजी’ भी तो ढूंढ रहे थे

फिर अचानक किसी सड़क पर खो गए

घर नहीं पहुँच पाए

मैं नहीं खोऊँगा

मुझे पहुंचना है घर

क्रॉस तो पूरा करना है

नहीं तो बीच वाले पिल्लर पर ही रह जाऊंगा

न इधर का, न उधर का

मुझे ढूंढनी है वह सड़क

में कई बरसों से ढूंढ रहा हूँ

बे-तहाशा, बद-हवास

उस एक सड़क को
..............................
जो मेरे घर को ....
Ashok Handoo ‘Khamosh’ was born in 1952 in a modest Kashmiri Pandit family in the heart of Srinagar city of Kashmir. He graduated from Kashmir University in 1970 and worked in the Indian Audit & Accounts Department till his retirement in 2012.
He inherited his interest in literature from his father Shri Ram Chand Handoo ‘Raaz’ who was a teacher and a poet in his own right.

‘Khamosh’ has been writing poems and prose, predominantly about Kashmiri culture and ethos since early 1970s. In addition to his mother tongue Kashmiri, he writes in Hindi, Urdu and English. His poems and stories have been published in various journals and are also available to readers on ‘Facebook’ and on his blog post  
  
POSTED BY VIPUL KOUL 
 

No comments:

Post a Comment