Saturday, January 28, 2017

शाह कलंदर और माता श्री रुपभवानी

शाह कलंदर और माता श्री रुपभवानी
मणिग्राम के बाद माता श्री रुपभवानी की तपस्या का अगला पडाव लार था l
लार में माता श्री रुपभवानी शाहकाल नदी के किनारे एक कुटिया में रह कर तपस्या करने लगी l इस स्थान पर सूफी संत शाह कलंदर भी रहते थे l
माता श्री रुपभवानी कभी कभी घास की चटाई पर बैठ कर नदी के उस पार जाया करती थी l शाह कलंदर के शिष्यों ने पानी पर नदी में माता श्री रुपभवानी को कई बार देखा था और इसकी चर्चा शाहकलंदर से भी की थीl एक बार शाह कलंदर नदी के किनारे धूप सेंक रहे थे वे भवानी के इस चमत्कार के देखने के लिए अतिउत्सुक थे l भवानी जैसे ही चटाई पर बैठ कर नदी की दूसरी ओर आ रही थी तो
शाहकलंदर ने पूछा : नाव क्या छुय?(नाम क्या है ?)
भवानी ने कहा: रौफ(रूपा)
माता श्री रुपभवानी ने अपनी चटाई रोक ली l
शाहकलंदर ने फिर द्विअर्थी शब्द कहे: योदवय योर तरख सोन सपदकl(यदि इस ओर आ जाओगी तो सोना बन जाओगीl)
माता श्री रुपभवानी के यह कह कर शाह कलंदर अपने ज्ञान और इस्लाम से उसे प्रभावित करना चाहते थे l
माता श्री रुपभवानी ने छूटते ही जवाब दिया ; योदवय चिय योर तरख मोख्त सपदकl(अगर तू ही इस तरफ आएगा तो मोती बना दूंगी l माता रुपभवानी का कहना था यदि मेरी शरण में आएगा तो मोती बना दूंगी l
लार पहुँच कर ही माता श्री रूप भवानी ने गेरुए वस्त्र पहनने प्रारम्भकर दिए थे l इन वस्त्रों को देख एक दिन शाह कलंदर ने कहा था :
रुपे..यिह क्या रंग ?( भवानी रूपा यह कौन सा रंग है ? जिसक दूसरा अर्थ यह था कि भवानी तपस्या के किस रंग में हो ?
भवानी ने गंभीर भाव से कहा :""ज़ाग, सुरठ त मज़ेठ" यानी सुरक्त और मंजिष्ठा को मिला कर गेरुआ रंग बना है l दार्शनिक भाषा मेंइस का दूसरा अर्थ था : जागृत हो कर उस अपने अभिन्न परमब्रह्म के स्वरूप को धारण कर l व्यर्थ के वाद- विवाद को छोड़l कहते है यह सुनने के..........................continued

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