Friday, February 3, 2017

आषाढ का "हार मण्डल"


AN ADORATION TO THE KASHMIRI HAAR MANDAL
आषाढ का "हार मण्डल"


मातृ चक्रोपशोभिताम्। भव चक्रोपशोभिताम्।
शिला चक्रोपशोभिताम्। दिव्य चक्रोपशोभिताम्।

अथर्वश्री चक्रोपशोभिताम्! श्री शिवाम् !



माता शारिके!

चक्र तुम ही हो,

आषाढ. की शुक्ल सप्तमी को

बनाते नित नवीन मण्डल----

मातृ चक्रोपशोभिताम्।------



मण्डल की चेतना है शाश्वत-- स्फुरित

जैसी निर्मल सुशोभित, प्रफ्फुलित

अनुभव दिलाती विश्व- माला की

केवल हो तू माता शारिके!मातृ चक्ररूपिणी!



प्रद्युम्न शिखरासीनां----

रूपिणी चक्र तुम ही हो,

प्रद्युम्न पीठ के शिखा पर

शिखरासीन मध्यमा हो भाव सहित भवानी



तुम ही हो आसीन

तुम हो,भवचक्र प्रतिपदा

पीठेश्वरीं शिला रूपा शारिकां प्रणमाम्यहम्॥

चक्रेश्वर वही पर पूजा जाता



जहां सर्व स्वरूप की गूँजती प्रज्ञा

शिलारूप---शैलपुत्री हो

जिस की कला कृति करते है हम

विभिन्न रंगों से सूर्य--वत निर्मित्त

बनाते प्रांगन में तेरे ही भव चक्र को

पीठेश्वरीं शिलां रूपा अन्न- पूर्णेश्वरी चोखाट में



अथवा पूजा के कक्ष में

चक्र की चेतना विकसित

संभावना को करती सुशोभित,

सम्भव अर्थ बताती--मन्त्र चक्र की



अक्षरों की गति में कलरव।

वर्णमाला की चेतना है शाश्वत--

स्फुरित साक्षी का संवित सौंदर्य

वही नाचती-- थिरकन करती



मन्द मुस्कान से

जहां देवता आते नृत्य करते

तुम्हारे ही आंगन में,

कहते जिसे देवी आंगन

प्रकाश एवं विमर्श की दिव्य अनुभूति

वशीभूत कला कृत्ति----

शारिकां प्रणमाम्यहम्॥



काल-- तत्व में नियति

निखिल के कण कण में अभिमन्त्रित चक्र की

शाश्वत-- स्फुरित सतीसर को संवारती

निज नयनों के पलकों में

नीरवता के भीतर शक्ति-पात का पान कराती

रोम रोम में इक प्रसन्न चित्त कलरव।

आषाढ का "हार - मण्डल" शाश्वत--

सुशोभित, संवर्तित्त, स्फुरित


Jaya Sibu

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