Wednesday, September 26, 2018

ॐ का अर्थ क्या होता है ? ॐ का महत्व क्या है ?

ॐ का अर्थ क्या होता है ? ॐ का महत्व क्या है ?

    क्या आपको मालूम है- ॐ शब्द की अपार दिव्यता


वर्तमान/आधुनिक विज्ञान जब प्रत्येक वस्तु, विचार और तत्व का मूल्यांकन करता है तो इस प्रक्रिया में धर्म के अनेक विश्वास और सिद्धांत धराशायी हो जाते हैं। विज्ञान भी सनातन सत्य को पकड़ने में अभी तक कामयाब नहीं हुआ है किंतु वेदांत में उल्लेखित जिस सनातन सत्य की महिमा का वर्णन किया गया है विज्ञान धीरे-धीरे उससे सहमत होता नजर आ रहा है।



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ॐ का अर्थ



ओम् ईश्वर का सर्वश्रेष्ठ नाम है। मुख्यत: यह समस्त ब्रह्मांड ईश्वर का विस्तृत रूप है। दृश्य ब्रह्मांड ईश्वर के कातिपय गुणों को प्रदर्शित करता है। जगत का प्रत्येक पदार्थ उस ईश्वर की रचना है। ओम् जो यह अक्षर है, यह सब उस ओम् का विस्तार है जिसे ब्रह्मांड  कहते हैं।

शब्द इस दुनिया में किसी ना किसी रूप में सभी मुख्य संस्कृतियों  का प्रमुख भाग है. ॐ के  उच्चारण  से ही शरीर के अलग अलग भागों मे कंपन शुरू हो जाती  है जैसे की ‘अ’:- शरीर के निचले हिस्से में (पेट के करीब) कंपन करता  है. ‘उ’– शरीर के मध्य भाग में कंपन होती  है जो की (छाती के करीब) . ‘म’ से  शरीर के ऊपरी भाग में यानी  (मस्तिक) कंपन होती  है. ॐ शब्द  के उच्चारण से  कई शारीरिक, मानसिक, और आत्मिक लाभ मिलते हैं. अमेरिका के एक FM रेडियो पर सुबह की शुरुआत  ॐ शब्द के उच्चारण से ही होती है.


भूत, वर्तमान और भविष्य में सब ओंकार ही है और जो इसके अतिरिक्त तीन काल से बाहर है, वह भी ओंकार है। समय और काल में भेद है। समय सादि और सान्त होता है परन्तु काल, अनादि और अनंत होता है। समय की उत्पत्ति सूर्य की उत्पत्ति से आरंभ होती है। वर्ष, महीने, दिन, भूत, वर्तमान और भविष्य आदि ये विभाग समय के हैं जबकि काल इससे भी पहले रहता है। प्रकृति का विकृत रूप तीन काल के अंदर समझा जाता है। प्रकृति तीन कालों से परे की अवस्था है, अत: उसे त्रिकालातीत कहा गया है। वह यह आत्मा अक्षर में अधिष्ठित है और वह अक्षर है ओंकार है और वह ओंकार मात्राओं में अधिष्ठित है।


हमारे ऋषि-मुनियों ने ध्यान और मोक्ष की गहरी अवस्था में ब्रह्म, ब्रह्मांड और आत्मा के रहस्य को जानकर उसे स्पष्ट तौर पर व्यक्त किया था। वेदों में ही सर्वप्रथम ब्रह्म और ब्रह्मांड के रहस्य पर से पर्दा हटाकर ‘मोक्ष’ की धारणा को प्रतिपादित कर उसके महत्व को समझाया गया था। मोक्ष के बगैर आत्मा की कोई गति नहीं इसीलिए ऋषियों ने मोक्ष के मार्ग को ही सनातन मार्ग माना है।

 ओम का यह चिह्न ‘ॐ’ अद्भुत है। यह पुरे ब्रह्मांड को प्रदर्शित करती है। बहुत सारी आकाश गंगाएँ ऐसे ही फैली हुई है। ब्रह्म का मतलब होता है विस्तार, फैलाव और बढ़ना । ओंकार ध्वनि ‘ॐ’ को दुनिया में जितने भी मंत्र है उन सबका केंद्र कहा गया है। शब्द के उच्चारण मात्र से शरीर में एक सकारात्मक उर्जा आती है | हमारे शास्त्र में ओंकार ध्वनि के 100 से भी ज्यादा मतलब समझाई गयी है | कई बार ऐसे देखा गया है कि मंत्रों में ऐसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है जिसका कोई अर्थ नहीं निकलता है ,लेकिन उससे निकली हुई ध्वनि शरीर के उपर अपना प्रभाव डालती हुई प्रतीत होती है।


ओम का यह चिन्ह 'ॐ' अद्भुत है। यह संपूर्ण ब्रह्मांड का प्रतीक है। बहुत-सी आकाश गंगाएँ इसी तरह फैली हुई है। ब्रह्म का अर्थ होता है विस्तार, फैलाव और फैलना। ओंकार ध्वनि के 100 से भी अधिक अर्थ दिए गए हैं। यह अनादि और अनंत तथा निर्वाण की अवस्था का प्रतीक है।


आइंसटाइन भी यही कह कर गए हैं कि ब्राह्मांड फैल रहा है। आइंसटाइन से पूर्व भगवान महावीर ने कहा था। महावीर से पूर्व वेदों में इसका उल्लेख मिलता है। महावीर ने वेदों को पढ़कर नहीं कहा, उन्होंने तो ध्यान की अतल गहराइयों में उतर कर देखा तब कहा।

को ओम कहा जाता है। उसमें भी बोलते वक्त 'ओ' पर ज्यादा जोर होता है। इसे प्रणव मंत्र भी कहते हैं। यही है √ मंत्र बाकी सभी × है। इस मंत्र का प्रारंभ है अंत नहीं। यह ब्रह्मांड की अनाहत ध्वनि है। अनाहत अर्थात किसी भी प्रकार की टकराहट या दो चीजों या हाथों के संयोग के उत्पन्न ध्वनि नहीं। इसे अनहद भी कहते हैं। संपूर्ण ब्रह्मांड में यह अनवरत जारी है।

तपस्वी और ध्यानियों ने जब ध्यान की गहरी अवस्था में सुना की कोई एक ऐसी ध्वनि है जो लगातार सुनाई देती रहती है शरीर के भीतर भी और बाहर भी। हर कहीं, वही ध्वनि निरंतर जारी है और उसे सुनते रहने से मन और आत्मा शांती महसूस करती है तो उन्होंने उस ध्वनि को नाम दिया ओम।

साधारण मनुष्य उस ध्वनि को सुन नहीं सकता, लेकिन जो भी ओम का उच्चारण करता रहता है उसके आसपास सकारात्मक ऊर्जा का विकास होने लगता है। फिर भी उस ध्वनि को सुनने के लिए तो पूर्णत: मौन और ध्यान में होना जरूरी है। जो भी उस ध्वनि को सुनने लगता है वह परमात्मा से सीधा जुड़ने लगता है। परमात्मा से जुड़ने का साधारण तरीका है ॐ का उच्चारण करते रहना।


ओम् (ॐ) परमपिता परमात्मा का वेदोक्त एवं शास्त्रोक्त नाम है। समस्त वेद-शास्त्र ओम् की ही उपासना करते हैं। अत: ओम् का ज्ञान ही सर्वोत्कृष्ट ज्ञान है। ईश्वर के सभी स्वरूपों की उपासना के मंत्र ओम से ही प्रारंभ होते हैं। ईश्वर के इस नाम को ओंकार एवं प्रणव आदि नामों से ही संबोधित किया जाता है।

‘‘ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्ण मेवा: शिष्यते॥’’


वे ओंकार स्वरूप परमात्मा पूर्ण हैं। पूर्ण से पूर्ण उत्पन्न होता है और पूर्ण में से पूर्ण निकल जाने पर पूर्ण ही शेष रह जाता है। ॐ तत् , सत्-ऐसे यह तीन प्रकार के सच्तिदानंदघन ब्रह्म का नाम है। उसी से दृष्टि के आदिकाल में ब्राह्मण वेद तथा यज्ञादि रचे गए। 

अक्षरं ब्रह्म परमं स्वभावोज्ध्यात्मुच्यते।’

ॐ नाम का महत्व
ॐ नाम का महत्व 



परम अक्षर अर्थात ॐ ब्रह्म है, अपना स्वरूप अर्थात् जीवात्मा अध्यात्म नाम से कहा जाता है।

श्रीमद भगवद् गीता में वर्णित है कि ‘ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म ॐ इति एकाक्षरं (एक अक्षर)ब्रह्म’ अर्थात एक अक्षर शब्द ही ब्रह्म है। तीन अक्षरों अ+उ+म का यह शब्द सम्पूर्ण जगत एवं सभी के हृदय में वास करता है।


हृदय-आकाश में बसा यह शब्द ‘अ’ से आदि कर्ता ब्रह्म, उ से विष्णु एवं म से महेश का बोध करा देता है। यह उस अविनाशी का शाश्वत स्वरूप है जिसमें सभी देवता वास करते हैं। ओम् का नाद सम्पूर्ण जगत में उस समय दसों दिशाओं में व्याप्त हुआ था जब युगों-पूर्व इस सृष्टि का प्रारंभ हुआ था। उस समय इस सृष्टि की रचना हुई थी। 


‘प्रजा पति समवर्तताग्रे, भूतस्य जातस्य पतिरेकासीत’ 


अर्थात सृष्टि के प्रारंभ होने के समय यह एक ब्रह्मनाद था। मनुष्य शरीर पांच तत्वों से बना है। पृथ्वी, जल, अग्रि, वायु तथा आकाश। यही आकाश तत्व ही जीवों में शब्द के रूप में विद्यमान है।


‘ओंकारों यस्य मूलम’ वेदों का मूल भी यही ओम् है। ऋग्वेद पत्र है, सामवेद पुष्प है और यजुर्वेद इसका इच्छित फल है। तभी इसे प्रणव नाम दिया गया है जिसे बीज मंत्र माना गया है। इस ओम् के उच्चारण में केवल पंद्रह सैकंड का समय लगता है जिसका आधार 8, 4, 3 सैकेंड के अनुपात पर माना गया है। अक्षर ‘अ’ का उच्चारण स्थान कंठ है और ‘उ’ एवं ‘म’ का उच्चारण स्थान ओष्ठ माना गया है। नाभि के समान प्राणवायु से एक ही क्रम में श्वास प्रारंभ करके ओष्ठों तक आट सैकंड का समय और फिर मस्तक तक उ एवं म् का उच्चारण करके 4, 3 के अनुपात का समय लगता है और यह प्रक्रिया केवल 15 सैकंड में समाप्त होती है। 

ओइमकारं बिंदु संयुक्तं नित्यं ध्यायन्ति योगिन :।
कामदं मोक्षदं चैव ओंकाराय नमो नम:॥


योगी पुरुष ओंकार का नाद बिंदू सहित सदा ध्यान करते हैं और इसका स्मरण करने से सभी प्रकार की कामनाएं पूर्ण होती है। इससे मोक्ष की प्राप्ति होती है। उपरोक्त मंत्र से ओंकार पूजा की जाती है। प्रणव का मन में स्मरण करके भक्त भगवान के किसी भी रूप में भगवद्मय में हो जाता है।


ॐ की ध्वनि से विकृत शारीरिक-मानसिक विचार निरस्त हो जाते हैं। भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं-‘‘प्रणव: सर्ववेदषु’ 


सम्पूर्ण वेदों में ओंकार मैं हूं। ओम् की इसी महिमा को दृष्टि में रखते हुए हमारे धर्म ग्रंथों में इसकी अत्याधिक उत्कृष्टता स्वीकार की गई है। जाप-पूजा पाठ करने से पूर्व ओम् का उच्चारण जीवन में अत्यंत लाभदायक है। सभी वेदों का निष्कर्ष, तपस्वियों का तप एवं ज्ञानियों का ज्ञान इस एकाक्षर स्वरूप ओंकार में समाहित है।                 



*त्रिदेव और त्रेलोक्य का प्रतीक : 

ॐ शब्द तीन ध्वनियों से बना हुआ है- अ, उ, म इन तीनों ध्वनियों का अर्थ उपनिषद में भी आता है। यह ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक भी है और यह भू: लोक, भूव: लोक और स्वर्ग लोग का प्रतीक है। 

*बीमारी दूर भगाएँ : तंत्र योग में एकाक्षर मंत्रों का भी विशेष महत्व है। देवनागरी लिपि के प्रत्येक शब्द में अनुस्वार लगाकर उन्हें मंत्र का स्वरूप दिया गया है। उदाहरण के तौर पर कं, खं, गं, घं आदि। इसी तरह श्रीं, क्लीं, ह्रीं, हूं, फट् आदि भी एकाक्षरी मंत्रों में गिने जाते हैं।

सभी मंत्रों का उच्चारण जीभ, होंठ, तालू, दाँत, कंठ और फेफड़ों से निकलने वाली वायु के सम्मिलित प्रभाव से संभव होता है। इससे निकलने वाली ध्वनि शरीर के सभी चक्रों और हारमोन स्राव करने वाली ग्रंथियों से टकराती है। इन ग्रंथिंयों के स्राव को नियंत्रित करके बीमारियों को दूर भगाया जा सकता है।

*उच्चारण की विधि : प्रातः उठकर पवित्र होकर ओंकार ध्वनि का उच्चारण करें। ॐ का उच्चारण पद्मासन, अर्धपद्मासन, सुखासन, वज्रासन में बैठकर कर सकते हैं। इसका उच्चारण 5, 7, 10, 21 बार अपने समयानुसार कर सकते हैं। ॐ जोर से बोल सकते हैं, धीरे-धीरे बोल सकते हैं। ॐ जप माला से भी कर सकते हैं। 

*इसके लाभ : इससे शरीर और मन को एकाग्र करने में मदद मिलेगी। दिल की धड़कन और रक्तसंचार व्यवस्थित होगा। इससे मानसिक बीमारियाँ दूर होती हैं। काम करने की शक्ति बढ़ जाती है। इसका उच्चारण करने वाला और इसे सुनने वाला दोनों ही लाभांवित होते हैं। इसके उच्चारण में पवित्रता का ध्यान रखा जाता है।

*शरीर में आवेगों का उतार-चढ़ाव : प्रिय या अप्रिय शब्दों की ध्वनि से श्रोता और वक्ता दोनों हर्ष, विषाद, क्रोध, घृणा, भय तथा कामेच्छा के आवेगों को महसूस करते हैं। अप्रिय शब्दों से निकलने वाली ध्वनि से मस्तिष्क में उत्पन्न काम, क्रोध, मोह, भय लोभ आदि की भावना से दिल की धड़कन तेज हो जाती है जिससे रक्त में 'टॉक्सिक' पदार्थ पैदा होने लगते हैं। इसी तरह प्रिय और मंगलमय शब्दों की ध्वनि मस्तिष्क, हृदय और रक्त पर अमृत की तरह आल्हादकारी रसायन की वर्षा करती है।

कहते हैं बिना ओम (ॐ) सृष्टि की कल्पना भी नहीं हो सकती है। माना जाता है कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्डसे सदा ॐ की ध्वनी निकलती है।

(ॐ) शब्द तीन अक्षरों से मिलकर बना है..अ उ म। अ का मतलब होता है उत्पन्न होना, उ का मतलब होता है उठना यानी विकास और म का मतलब होता है मौन हो जाना यानी कि ब्रह्मलीन हो जाना।

लेकिन इन सबके अलावा ओम (ॐ) शब्द से इंसान से शारीरिक लाभ भी होते हैं...आईये जानते हैं इन मायावी शब्द के फायदे... ॐ और थायरॉयड: ॐ का उच्चारण करने से गले में कंपन पैदा होती है जो कि थायरायड ग्रंथि पर सकारात्मक प्रभाव डालती है। ॐ और घबराहट: अगर आपको घबराहट महसूस होती है तो आप आंखें बंद करके 5 बार गहरी सांसे लेते हुए ॐ का उच्चारण करें। ॐ और तनाव: यह शरीर के विषैले तत्वों को दूर करता है इसलिए तनाव को दूर करता है।

# ओंकार जगत की परम शांति में गूंजने वाले संगीत का नाम है।
# ओंकार का अर्थ है – “दि बेसिक रियलिटी” वह जो मूलभूत सत्य है, जो सदा रहता है।
# जब तक हम शोरगुल से भरे है, वह सूक्ष्मतम् ध्वनि नहीं सुन सकते।

गुरु नानक देव  जी भी कहते हैं -  एक ओम सतनाम , करता , पुरुख - ईश्वर एक है जिसका नाम ओम है ।   अतः ओम शब्द का वास्तविक अर्थ जानने - समझने  की  जिज्ञासा बहुत पहले से पाल  रखी थी।  जो भी धर्माचार्य - विद्वान व्यक्ति मिला उससे  समझने की कोशिश की।  परमार्थ निकेतन ऋषिकेश के महामंडलेश्वर स्वामी असंगानंद महाराज जी  से कई बार मिला।  महर्षि दयानंद सरस्वती के ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश का  अध्यन  किया।  कई बार माण्डूक्योपनिषद पढ़ गया जो ओम पर ही है । "प्रणव बोध ", "ओमकार निर्ण निर्णय "  ऐसी  पुस्तकें जो ओम पर लिखी गई  है , को  समझने की  कोशिश  की।

ऊं – या सही मिश्रण में इन तीन ध्वनियों का उच्चारण, आपको वहां ले जाता है। यह आपको उसके परे नहीं ले जाता, मगर भौतिक प्रकृति की कगार तक ले जाता है। जब आप वहां खड़े होते हैं, तो अचानक ये सब लोग बहुत दूर नजर आते हैं। यह अच्छी बात है, मगर यह काफी नहीं है। जब आप ऊं का उच्चारण करते हैं, तो सबसे महत्वपूर्ण चीज यह होती है कि आपका शरीर बहुत सूक्ष्म रूप में एक सीध में आ जाता है। जब आप शारीरिक योग करते हैं, तो कुछ चीजें घटित होती हैं, मगर एक अलग रूप में। मगर जब आप ऊं का उच्चारण करते हैं, तो आपका शरीर एक खास तरह से सीध में, तालमेल में आ जाता है। जहां आप जब चाहें, छोर तक जा सकते हैं। या अगर आप पर्याप्त जागरूक हैं, तो छोर पर रह सकते हैं।

अगर हम चाहें, तो हम सिर्फ ऊं साधना बना सकते हैं। एक दिन, सात दिन। दिन में अठारह घंटे बस ऊं का जाप कीजिए। आप देखेंगे, कि यह आपको ऐसी जगह पर ले जाएगा, जहां आप हर समय इसी तरह रहेंगे। आप जिस चीज को भी देखेंगे, सब कुछ थोड़ा दूर नजर आएगा।

यह बहुत अच्छी बात है, क्योंकि एक दूरी से आप हर चीज को ज्यादा साफ-साफ देख सकते हैं। जब आप उन चीजों से जुड़े होते हैं, तो आप उन्हें उस तरह नहीं देख पाते। आप भी उस दृश्य का एक हिस्सा होते हैं। आप उस दृश्य या माहौल को उसके असली रूप में नहीं देख पाते। जब आप उस दृश्य से थोड़े दूर होते हैं, तो आप उसे बेहतर तरीके से देख पाते हैं। अपने आस-पास की हर चीज, जो जीवन है, उसे एक बेहतर नजरिये से देख पाते हैं।

र्इश्वर के निर्गुण तत्त्व से संबंधित है । र्इश्वर के निर्गुण तत्त्व से ही पूरे सगुण ब्रह्मांड की निर्मित हुई है । इस कारण जब कोई ॐ का जप करता है, तब अत्यधिक शक्ति निर्मित होती है । यह ॐ का रहस्य है।

यदि व्यक्ति का आध्यात्मिक स्तर कनिष्ठ हो, तो केवल ॐ का जप करने से दुष्प्रभाव हो सकता है; क्योंकि उसमें इस जप से निर्मित आध्यात्मिक शक्ति को सहन करने की क्षमता नहीं होती ।

ॐ के उच्चारण से मिलता है लाभ
यह ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक भी है और यह भू: लोक,और स्वर्ग लोग का प्रतीक भी माना जाता  है।

बीमारी दूर भगाएँ :
मंत्रों का उच्चारण जीभ, होंठ, तालू, दाँत, कंठ और फेफड़ों से निकलने वाली वायु के सम्मिलित प्रभाव से संभव होता है। इससे निकलने वाली ध्वनि शरीर के सभी चक्रों और हारमोन स्राव करने वाली ग्रंथियों से टकराती है। इन ग्रंथिंयों के स्राव को नियंत्रित करके बीमारियों को दूर भगाया जा सकता है।

इसके लाभ :
  • इससे शरीर और मन को एकाग्र करने में मदद मिलेगी।
  • दिल की धड़कन और रक्तसंचार व्यवस्थित होगा।
  • इससे मानसिक बीमारियाँ दूर होती हैं।
  • काम करने की शक्ति बढ़ जाती है।
  • इसका उच्चारण करने वाला और इसे सुनने वाला दोनों ही लाभांवित होते हैं।
  • इसके उच्चारण में पवित्रता का ध्यान रखा जाता है।


शरीर में आवेगों का उतार-चढ़ाव :
प्रिये तथा अप्रिय शब्दों से निकलने वाली ध्वनि से मस्तिष्क में उत्पन्न काम, क्रोध, मोह, भय लोभ आदि की भावना से दिल की धड़कन तेज हो जाती है जिससे रक्त में  विषाक्त पदार्थ पैदा होने लगते हैं। इसी तरह प्रिय और मंगलमय शब्दों ध्वनि मस्तिष्क, हृदय और रक्त पर अमृत की तरह लाभ करती है।

 उच्चारण की विधि :
प्रातः उठकर पवित्र होकर ओंकार ध्वनि का उच्चारण करें।
का उच्चारण पद्मासन, अर्धपद्मासन, सुखासन, वज्रासन में बैठकर कर सकते हैं।
आप शब्द को जोर से बोल सकते हैं,या फिर  धीरे-धीरे भी बोल सकते हैं।
जप माला से भी कर सकते हैं या बिना माला के भी ।


ये है शब्द की दिव्यता - तो जान गए ना के जाप का अपार लाभ तो आज से आप बिना किसी स्वार्थ के भगवान की भक्ति किजिए और ॐ का निरंतर करते रहें।
 
 
POSTED BY ; VIPUL KOUL
 

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