Saturday, June 8, 2013

विभीषण से भी पहले इस राक्षस ने राम को बताया रावण के अंत का 1 अहम सूत्र!

विभीषण से भी पहले इस राक्षस ने राम को बताया रावण के अंत का 1 अहम सूत्र!
अच्छी बातें और संगत किस तरह से जीवन के बुरे समय में गलत दिशा में भटकाव से बचाकर सफलता, सहयोग और सुख लाती है, इस बात की अहमियत हिन्दू धर्मशास्त्र वाल्मीकि रामायण से अच्छी तरह समझा जा सकता है। असल में, रामायण का हर प्रसंग जीवन को अनुशासित करने का बेहतरीन सूत्र है।

वाल्मीकि रामायण के ही एक प्रसंग के मुताबिक रावण द्वारा सीता के अपहरण के बाद श्रीराम-लक्ष्मण द्वारा सीता की खोज के दौरान कबन्ध नामक राक्षस ने दोनों भाईयों को जो उपाय सुझाया वह न केवल रावण की लंका ढहाने का अहम सूत्र साबित हुआ, बल्कि व्यावहारिक जीवन में बुरे वक्त के संघर्ष के लिए भी प्रेरणादायी है। जानिए कौन था और उसने राम-लक्ष्मण को क्या व कौन सा अहम उपाय सुझाया -

वाल्मीकि रामायण के मुताबिक सीता की खोज के दौरान जटायु का अंतिम संस्कार कर श्रीराम और लक्ष्मण आगे बढ़े तो उनका सामना बड़े ही अजीबो-गरीब रूप वाले राक्षस कबन्ध से हुआ। कबन्ध राक्षस का न सिर था, न गर्दन बल्कि केवल धड़ था। उसके पेट में उसका मुंह और छाती में मस्तक और आग की तरह दहकती आंखे थी। उसका डील-डौल हाथी के समान था। उसकी दोनों हाथों में वह जंगली जीव-जन्तु रोके रास्ता में पड़ा था।

राम-लक्ष्मण पर नजर पड़ते ही उसने दोनों का पकड़ लिया। राम-लक्ष्मण ने पलटवार कर उसकी दोनों भुजाएं काट दी। निढाल पड़े राक्षस ने जब राम-लक्ष्मण का परिचय पाया तो उसने बताया कि पूर्वजन्म में वह वीर होते हुए भी ऋषि-मुनियों को राक्षस बन भयभीत करता था। उनके ही श्राप से मुझे ऐसा रूप मिला। उन्होंने इस मुक्ति श्रीराम के हाथों ही बताई थी, जो अब मिली।

भगवान राम ने राक्षस कंबध की मृत्यु के पहले रावण द्वारा सीता के अपहरण की बात बताई और रावण और उसके ठिकाने के बारे में जानकारी चाही, तो राक्षस कं बध ने राम को बड़ा ही अहम सूत्र बताया, जो आखिरकार लंका विजय में अहम साबित हुआ। जानिए क्या था वह खास सूत्र -

राक्षस कंबध ने श्रीराम को रावण की शक्ति और स्थान के बारे में बताते हुए कहा कि वह बड़ा ही ताकतवर है और उससे देव-दानव सभी डरते हैं। इसलिए उससे निपटने के लिए नीति जरूरी होगी। इसके लिए कबंध ने अहम सूत्र श्रीराम को दिया। वाल्मीकि रामायण में लिखा है कि -

गच्छ शीघ्रमितो वीर सुग्रीवं तं महाबलम्।
वयस्यं तं कुरु क्षिप्रमितो गत्वाद्य राघव।।

इस श्लोक में कबन्ध द्वारा राम-लक्ष्मण को ऋष्यमूक पर्वत पर महाबली सुग्रीव के पास जाकर फौरन ही उनसे मित्रता का सुझाव दिया गया। क्योंकि सुग्रीव भी पराक्रमी, बुद्धिमान, निडर, नीति व कार्य कुशल, विनम्र और धैर्यवान थे।

इस श्लोक में छुपा सूत्र यही है कि व्यावहारिक जीवन में बुरे वक्त या आगे बढऩे के लिए गुणी व बलवान की संगत फायदेमंद साबित हो सकती है। इसका अर्थ यह नहीं कि स्वार्थ के वशीभूत हो मित्रता की जाए। बल्कि गुणी और बलवान की शक्ति बुरे वक्त से गुजर रहे इंसान की कमजोर हुई ताकत और गुणों के लिए सहारा बन जाती है। जिससे बड़ी से बड़ी समस्या और बाधाओं से निपटना आसान हो जाता है। ठीक राम की लंका विजय की भांति। रामायण का यह बेहतरीन सूत्र जीवन के हर क्षेत्र में अपनाया जा सकता है।

इस तरह सुख और तरक्की के लिए विवेक का सी उपयोग कर नि:स्वार्थ भाव, विश्वास और आत्मसम्मान रख शक्ति संपन्न से हाथ मिलाना सूझबूझ भरा फैसला साबित हो सकता है।...............from  danik bhaskar
POATED BY......................................VIPUL KOUL

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