Saturday, June 8, 2013

भगवान दत्तात्रेय

FROM DANIK BHASKAR ...........आज बहुत कम लोग ऐसे हैं, जो यह बात जेहन में रख दिन की शुरुआत करते होंगे कि कुदरत से हमें जो भी मिलता है, बिना शर्त मिलता है। धर्म के नजरिए से भी गौर करें तो प्रकृति की हर क्रिया हर रोज नि:स्वार्थ होकर जीने को प्रेरित करती है। प्रकृति हवा, पानी हो या फिर रोशनी सब कुछबेशुमार और बिना अपेक्षा के लुटाती है। शास्त्रों के मुताबिक ईश्वर का ज्ञान स्वरूप व शक्ति गुरु के रूप में पूजनीय है। इसलिए गुरु सेवा, भक्ति या स्मरण मात्र से मिले ज्ञान, सत्य, प्रेरणा व शक्ति से ही जागा बुद्धि और विवेक जीवन की तमाम परेशानियों से उबारने वाला भी माना गया है।

हिंदू धर्म परंपराओं में गुरु व परब्रह्म के विलक्षण स्वरूप में त्याग, तप, ज्ञान व प्रेम की साक्षात् मूर्ति भगवान दत्तात्रेय को माना जाता है। वे महायोगी व त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु व महेश का त्रिगुण स्वरूप भी माने जाते हैं। लिखा गया है कि -

आदौ ब्रह्मा मध्येविष्णुरन्तेदेव: सदाशिव:

आज के दौर में गलाकाट प्रतियोगिता के नाम पर स्वार्थ के वशीभूत कई लोग प्रकृति, इंसान या फिर इन दोनों को जोड़ने वाले हर रिश्तों से जुड़ी कई अहम जिम्मेदारियों व बातों को दरकिनार करते चले जाते हैं और आखिरकार इनको नजरअंदाज करने के कई बुरे नतीजे भी भुगतते हैं।

ऐसी सोच व हालात से बचने के लिए हिन्दू धर्मग्रंथ श्रीमद्भागवदपुराण कुदरत व ईश्वर से जुड़े कई रहस्यों के जरिए जीने के सलीके व सही तौर-तरीकों को उजागर करता है


खासतौर पर इस महापुराण में उजागर एक महायोगी से जुड़ा प्रसंग आज के दौर में इंसान व प्रकृति या फिर इंसानी रिश्तों में बढ़ते टकराव, तनाव से निपटने के लिए कुदरत से जुड़े ऐसे 24 रहस्य उजागर करता है, जिन पर आमतौर पर कई लोग गौर नहीं करते -पौराणिक मान्यता के मुताबिक ब्रह्मदेव के मानस पुत्र महर्षि अत्रि व कर्दम ऋषि की कन्या तथा सांख्यशास्त्र के प्रवर्तक कपिल मुनि की बहन सती अनुसूया इनके पिता व माता हैं। अत्रि मुनि का पुत्र होने की वजह से भी इनको आत्रेय भी पुकारा गया और दत्त व आत्रेय को मिलाकर दत्तात्रेय नाम हुआ।

वे त्रिदेवों में भगवान विष्णु के सतगुणी अंश बताए गए हैं। इससे जुड़े प्रसंग के मुताबिक त्रिदेवों द्वारा ली गई देवी अनुसूया की सतीत्व की परीक्षा में सफलता के फलस्वरूप त्रिदेवों में ब्रह्मा, विष्णु व महेश के रज, सत व तमोगुणी अंशों से क्रमशः सोम, दत्तात्रेय व दुर्वासा का जन्म हुआ।भगवान दत्तात्रेय स्मर्तृगामी हैं। यानी वह अपने शरणागत भक्त के बुलाने या स्मरण करने भर से फौरन संकट दूर करते हैं। मार्गशीर्ष पूर्णिमा इनकी प्राकट्य तिथि है। मान्यता है कि वे रोज सवेरे काशी में गंगा स्नान करते हैं। इनका बीजमन्त्र द्रां है ।

महायोगी दत्तात्रेय अवधूत व श्री विद्या के आदि आचार्य हैं। दत्तात्रेय ने शिवजी के पुत्रों श्रीगणेश व कार्तिकेय को कई विद्याएं सिखाई। परशुराम को श्रीविद्या प्रदान की। कार्तवीर्य अर्जुन को तन्त्रविद्या सिखाई। भक्त प्रहलाद को अनासक्ति योग की शिक्षा देकर श्रेष्ठ राजा बनाया। सांकृति मुनि को भी अवधूत विद्या प्रदान की।

रसायनज्ञ नागार्जुन को रसायन विद्या भी दत्त कृपा से ही मिली। गुरु गोरखनाथ को प्राणायाम, आसन, मुद्रा व समाधि, चतुरंग योग का मार्ग योगी दत्तात्रेय ने ही सिखाया।

इसी कड़ी में श्रीमद्भागवदपुराण में राजा यदु को योग और अध्यात्म के उपदेश के दौरान खासतौर पर भगवान दत्तात्रेय का 24 गुरुओं से सबक सीखने का प्रसंग प्रकृति के अद्भुत रहस्यों के साथ जीवन में गुरु की अहमियत को रोचक तरीके से उजागर करता है। क्योंकि ये 24 गुरु मात्र इंसान ही नहीं बल्कि इनमें पशु, पक्षी व कीट-पतंगे भी शामिल हैं।
श्रीमद्भागवद महापुराण के प्रसंग के मुताबिक महायोगी दत्तात्रेय ने राजा यदु की अनासक्त व मोह से दूर जीवन से जुड़ी जिज्ञासाओं को दूर करते हुए बताया कि मेरी नजर जहां भी पड़ी मैंने वहां गुरु को पाया। इसी कड़ी में पशु-पक्षी व मानवीय जीवन में इन 24 गुरुओं के जरिए कई रहस्य उजागर कर यह भी सबक दिया कि ज्ञान के लिए गुरु के साथ खुद का बुद्धि व विवेक भी बेहद जरूरी है -

1.पृथ्वी- महायोगी दत्तात्रेय के मुताबिक पृथ्वी से क्षमा, सहनशीलता व परोपकार की भावना सीखनी चाहिए। क्योंकि इसमें डाला एक बीज वह कई बीजों में बदल देती है और की गई तमाम गंदगी को भी ढोती है और खुद में समा लेती है।
2. वायु – जिस तरह हवा अच्छी या बुरी जगह के संपर्क में वैसे ही गुण ग्रहण कर लेती है, किंतु इसके बाद भी वायु का मूल रूप स्वच्छ रहता है। इसी तरह अच्छे-बुरों के साथ या वक्त में भी अपनी अच्छाइयों को कायम रखें।
3. आकाश – आकाश पंचतत्वों के रूप में अंदर भी है और बाहर भी। यानी हर जगह है। ठीक आत्मा भी इसी तरह हर जगह मौजूद होती है। इसलिए हर देश- काल स्थिति में अछूते रहें, यानी जुड़कर भी लगाव से दूर रहें।
4. जल – जल पवित्र होता है और उसका अपना कोई आकार नहीं होता। हर प्राणी को पवित्र रहना चाहिए और स्थितियों के मुताबिक ढलना चाहिए।
5. अग्नि – जिस तरह अलग-अलग तरह की लकड़ियों के बीच भी आग का ताप, प्रकाश और तेज एक जैसा रूप ले लेता है, उसे कोई समेट या दबा नहीं सकता, उसी तरह हर टेढ़े-मेढ़े हालात में ढलकर अपने में दोष नहीं आने देना चाहिए।

6. चन्द्रमा – आत्मा लाभ-हानि से परे है। वैसे ही जैसे कला के घटने-बढ़ने से चंद्रमा की चमक व शीतलता वही रहती है।

7. सूर्य – जिस तरह एक होने पर भी अलग-अलग माध्यमों में सूरज अलग-अलग दिखाई देता है। आत्मा भी एक है, पर कई रूपों में दिखाई देती है। जैसे सूरज अपनी किरणों से समुद्र से खारा जल खींचकर बादलों के जरिए मीठा पानी बरसाता है, उसी तरह ज्ञानी लोगों को इंद्रिय संयम के जरिए बटोरे ज्ञान को लुटा देना चाहिए।
8. कबूतर – कबूतर का जोड़ा जाल में फंसे अपने बच्चों को देखकर मोहवश खुद भी जाल में जा फंसता है। सबक मिलता है कि किसी से भी ज्यादा मोह व स्नेह दुःख की वजह होता है।

9. अजगर – मनुष्य अजगर से संतोष करना सीखे, यानी जो मिल जाए उसे स्वीकार कर ले। साधक में भी अजगर की तरह शरीर में ताकतवर, मनोबल व इंद्रिय बल होता है। इसलिए उसे उनका सार्थक उपयोग करना चाहिए।
10. समुद्र- जीवन के उतार-चढ़ाव में खुश व संजीदा रहें। यानी प्रसन्न और गंभीर रहे।
11. पतंगा- जिस तरह पतंगा आग की तरफ आकर्षित हो जल जाता है, उसी तरह किसी स्त्री के रूप-रंग के आकर्षण व मोह में न उलझें।
12. भौंरा या मधुमक्खी - भौरें से सीखा कि जहां भी थोड़ी सार्थक बात सीखने को मिले, फौरन अपना लें।
13. हाथी - जिस तरह हाथी नकली हथिनी के चक्कर में जाल में फंस जाता है, इंसान को भी काम आसक्ति से बचना चाहिए।
14. मधुआ या छत्ते से शहद निकालने वाला – जिस तरह मधुआ मधुमक्खियों का बटोर शहद उनके खाने के पहले ही साफ कर देता है, उसी तरह इंसान को भी कुछ भी संचित या इकट्ठा करने की वृत्ति से बचना चाहिए। यानी संचित ही न करें, बल्कि उसका सदुपयोग भी करे। अन्यथा नुकसान हो सकता है।
15 हिरण - जैसे हिरण शिकारी द्वारा छेड़े गीत-संगीत के मद में फंसकर पकड़ा जाता है, उसी तरह संन्यासी को भी विषय-सुख से जुड़ी बातों से बचना चाहिए। सांसारिक नजरिए से उछल-कूद, संगीत, मौज-मस्ती में न खोएं रहें।
16. मछली - जैसे स्वाद के वशीभूत मछली कांटे में फंस जाती है, उसी तरह भौतिक सुख-सुविधाओं में खासतौर पर स्वाद इंद्रियों के वशीभूत न रहें, क्योंकि इससे व्यक्ति सारी इंद्रियों पर वश खो देता है।
17. पिंगला वेश्या - पिंगला नाम की वेश्या से सबक लिया जा सकता है कि केवल पैसों की आस में न जीएं, क्योंकि पैसा पाने के लिए वह पुरुषों की राह में दुखी व बेचैन हुई और इससे ज्ञान जागने पर कि इतना वक्त ईश्वर स्मरण में करती तो कल्याण हो जाता, यह सोच पुरुषों की उम्मीद छोड़ने पर उसने चैन से नींद ली।
18. कुरर पक्षी - चीजों को पास में रखने की सोच छोड़ना यानी अकिंचन रहें, क्योंकि कुरर पक्षी के पास मांस का टुकड़ा होने पर दूसरे पक्षियों ने हमला किया और छोड़ने पर उसे इससे छुटकारा मिल गया।
19. बालक - चिंतामुक्त व प्रसन्न रहना।
20. कुमारी कन्या – अकेला रह काम करना या आगे बढ़ना। इससे जुड़ा प्रसंग है कि धान कूटते हुए इस कन्या की चूड़ियां आवाज कर रही थी। बाहर मेहमान बैठे होने से उसने चूड़ियां तोड़ दोनों हाथों में बस एक-एक चूड़ी रखी और बिना शोर के धान कूट लिया। इसमें सीख है कि ज्यादा लोग होने पर कलह ज्यादा होता है, दो के होने पर भी विवाद हो सकता है, इसलिए अकेले काम करना सुगम होता है।
21. शरकृत या तीर बनाने वाला - अभ्यास और वैराग्य से मन को वश में करना।
22. सांप – एकाकी जीवन, एक ही जगह न बसें।
23. मकड़ी – भगवान भी माया जाल रचते हैं और उसे मिटा देते हैं।
24. भृंगी (बिलनी) कीड़ा –अच्छी हो या बुरी, जहां जैसी सोच में मन लगाएंगे, मन वैसा ही हो जाता है, क्योंकि भृंगी कीड़ा अन्य कीड़े को ले जाकर और दीवार पर रखकर अपने रहने की जगह को बंद कर देता है, लेकिन वह कीड़ा भय से उसी भृंगी कीड़े का चिंतन करते-करते, अपने पहले शरीर का त्याग किए बिना ही उसी शरीर की तरह रूप ले लेता है

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